हम क्या थे क्या हो गए आज
भारतीय संसद एक जमाने में अपनी शालीनता के लिए मशहूर थी आज वहां जो कुछ हो रहा है उस पर न केवल दुख होता है बल्कि हंसी भी आती है और चिंता भी होती है। अब सोमवार की ही बात है उड़ीसा के मोदी कहे जाने वाले प्रताप चंद्र सारंगी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में मोदी की तुलना स्वामी विवेकानंद से कर दी। इस पर कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने कहा "कहां गंगा मां कहां गंदी नाली" दोनों की तुलना ठीक नहीं है। इसके बाद उन्होंने कहा कि हमारा मुंह मत खुलवाओ। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्पष्ट रूप में कहा कि बयान का विवादित हिस्सा कार्रवाई से निकाल दिया जाएगा। यद्यपि अधीर रंजन चौधरी ने बाहर निकल कर कहा कि वे खुले आसमान के नीचे माफी मांगते हैं ।प्रधानमंत्री को ठेस पहुंचाने के लिए यह नहीं कहा था। साथ ही उन्होंने राजग को ऊंची दुकान फीके पकवान कहा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को अपनी प्रशंसा सुनने का नशा है।
इतना ही नहीं संसद में जिस दिन से शपथ ग्रहण हुआ उसी दिन से ऐसी - ऐसी घटनाएं घट रही हैं जो अब तक नहीं हुई। भारत का संविधान इस देश को एक धर्मनिरपेक्ष देश घोषित करता है ,लेकिन उसी संविधान की शपथ लेते हुए हमारे माननीय सांसदों ने धार्मिक नारे लगाए । लोकतंत्र के सबसे पवित्र मंदिर में "जय श्री राम और अल्लाह हू अकबर " नारे गूंज रहे हैं । देश के बड़े हिस्से में सूखा पड़ा है। गर्मी जिंदगियों को लील रही है। बिहार में बच्चे रहस्यमय बुखार से मर रहे हैं और जनतंत्र में जन की पीड़ा और उनकी चित्कार धर्म के नारों में डूब रही है। महत्वपूर्ण बहस का समय धार्मिक बिंबों से आज के आदमी की तुलना में बर्बाद हो रहा है। यही नहीं हर महत्वपूर्ण मौके पर विपक्ष की आवाज को दबाने या उसे व्यर्थ साबित करने में गवाया जा रहा है। यद्यपि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की न्यून संख्या हो देखते हुए बेहद उदारता का परिचय दिया है। उन्होंने कहा, लोकसभा में संख्या नहीं देखी जाएगी बल्कि सब के विचार सुने जाएंगे। सभी दलों को और सभी सदस्यों को बराबर महत्व दिया जाएगा। मोदी जी ने कई ऐसे कार्य किये जिससे यह महसूस हो रहा है कि विपक्ष को महत्त्व दिया जा रहा है। लेकिन, विपक्ष का क्या हाल है? विपक्ष का संख्या बल तो कम है ही लेकिन उसमें नेतृत्व के गुणों और जोश के साथ संघर्ष करने इच्छा भी नहीं है। वह इच्छा गायब है । अब इसे क्या कहेंगे कि इसी संसद में भाजपा ने 2 सीटें पाकर भी सरकार को अपनी उपस्थिति एहसास करा दिया था, लेकिन इस बार एक अजीब दृश्य देखने को मिला। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के दौरान अपने फोन से उलझे रहे। उनकी उदासीनता को देखते हुए ऐसा लगता है कि कांग्रेस दुविधा की स्थिति में है। पिछले साल कांग्रेस की हालत खराब नहीं थी। तीन महत्वपूर्ण राज्यों में उसकी सरकार थी और उम्मीद थी इस बार बड़ा प्रदर्शन कर पाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं । रणनीतिक गठबंधन के नाकाम होने उसे देख कर राष्ट्रीय विमर्श में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में विफल रहने तक कई मौके कांग्रेस ने गंवा दिए ।
लोकतंत्र का प्रभाव बना रहे हो इसके लिए एक विपक्ष की जरूरत है । लेकिन चुनाव में पीछे छूट जाने के बाद संसद में असंतुलन स्पष्ट दिख रहा है और उस असंतुलन के कारण जबान बेलगाम होती जा रही है । ऐसी ऐसी बातें सुनने में आ रहे हैं जिसकी उम्मीद नहीं थी। विचारधारा का अभाव दोनों तरफ दिख रहा है। ऐसा होगा यह बहुत पहले ही एहसास हो गया था। क्योंकि चुनाव के ठीक पहले कई नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया इसका साफ मतलब है आज के भारत में वैचारिक हनुमान कूद कोई समस्या नहीं है । कम्युनिस्ट पार्टियां अब इतिहास में समा जाने को तैयार हैं लेकिन किसी भी अन्य पार्टी का भाजपा के प्रति विचारधारा पर आधारित रुख नहीं दिखाई पड़ रहा है। ऐसा लगता है की विपक्ष को लेकर चलने और उनकी पीठ थपथपाते रहने की जिम्मेदारी भाजपा पर ही है और उसमें भी खास तौर पर प्रधानमंत्री के ऊपर । बेशक भाजपा का यह विचार हो सकता है कि वह बिना मजबूत प्रतिबद्धता वाले नेताओं को अपनी और आकर्षित करे। लेकिन इससे लोकतंत्र को कोई लाभ नहीं मिलेगा।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि संसद में आज जो कुछ भी हो रहा है वह आमजन के बीच प्रशंसनीय नहीं होगा। बेशक अपनी -अपनी पार्टी के आधार पर लोग एक दूसरे की खिल्ली उड़ा रहे हैं लेकिन इससे समाज में सौहार्दता का अभाव बढ़ता जाएगा और एक दिन ऐसा आएगा कि हम सब कुछ अपनी विचारधारा से मिलती-जुलती राजनीतिक पार्टी के नजरिए से देखने और आकलन करने लगेंगे। यह विविधता पूर्ण राष्ट्र के लिए खतरनाक मोड़ हो सकता है। यहां के बाद अलगाववाद के नारे सुनने को मिल सकते हैं । खास करके ऐसी सामाजिक स्थिति में जब गरीबी, कुपोषण , बीमारी के साथ साथ एनआरसी और मोब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर विचार करें तो हालत बहुत खराब नजर आएगी। तब भी हमें एक अच्छे समाज की गठन की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए और लगातार रचनात्मक प्रयास करना चाहिए।
हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी आओ विचारे आज मिलकर यह समस्याएं सभी
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