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Monday, June 24, 2019

युद्ध का परिणाम अंतिम ध्वंस है

युद्ध का परिणाम अंतिम ध्वंस है

अरबी प्रायद्वीप में युद्ध के बादल उमड़ रहे हैं और ऐसा लगता है कि अब युद्ध भड़का। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ हुआ नहीं है। हालांकि अमरीका लगातार इरान को हड़का रहा है। रविवार को डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर युद्ध हुआ तो हम इरान को बर्बाद कर देंगे। दो दिन पहले डोनाल्ड ट्रंप ने खुद ट्वीट करके कहा था कि हमारी फौज ने बंदूकें तैयार कर रखी हैं और हमने तीन तरफ से ईरान को घेर लिया है  जैसे ही मार्चिंग आर्डर मिलेगा गोलियां चलने लगेंगी तथा वास्तविक युद्ध आरंभ हो  इसके पहले महज 10 मिनट में लगभग डेढ़ सौ लोग मारे जाएंगे। लेकिन उन्होंने फौज को रोक लिया है। स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई है कि लगता है कि फिर डेढ़ दशक पहले इराक का युद्ध पुनः दोहराया ना जाए। इराक का युद्ध गलत सूचनाओं के आधार पर भड़का था । अभी एक ही सवाल चारों तरफ से पूछा जा रहा है कि क्या सचमुच जंग होगी? लेकिन निश्चित रूप से कुछ भी कह पाना फिलहाल कठिन है। अमरीका इराक भर आरोप लगा रहा है उसने 13 जून को  ओमान की खाड़ी में दो अमरीकी तेल टैंकरों पर हमला किया । जबकि तेहरान इससे इंकार कर रहा है। इसके बाद गुरुवार को ईरान ने एक अमरीकी ड्रोन को मार गिराया। इरान का दावा था कि वह ड्रोन ईरानी वायु सीमा में उड़ रहा था जबकि अमरीका का कहना है कि वह ड्रोन अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में गश्त लगा रहा था। दोनों तरफ से आ रहे बयानों से स्थिति तनावपूर्ण हो गई है । यद्यपि निकट भविष्य में युद्ध के लक्षण नहीं दिखाई पड़ रहा है लेकिन हालात बेहद तनावपूर्ण है और कभी भी विस्फोट हो सकता है।
          भू राजनीतिक नजरिए से देखें तो पहला सवाल उठता है कि युद्ध कौन चाहता है या चाह रहा है। अमरीकी राजनीतिक बिरादरी का शायद बहुत बड़ा हिस्सा खास करके ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन के बहुत से लोग तथा संपूर्ण अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा टीम युद्ध की इच्छुक है । हालांकि, राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और उनके सचिव  माइक पॉम्पियो का मानना है कि ईरान में सत्ता परिवर्तन जरूरी है और किसी भी तरह से वर्तमान सत्ता को हटाकर अपने पसंदीदा व्यक्ति को वहां का सत्ताधारी बनाया जाना चाहिए ।   2003 में जब इराक से युद्ध हुआ था जॉन बोल्टन ने ही महा विनाश के हथियारों की झूठी खबर फैलाई थी। जबकि इराक के सर्वनाश होने के बाद वैसे हथियार कहीं मिले नहीं । अमरीकी सत्ता तंत्र में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो ईरान का कद छोटा करने और अरबी प्रायद्वीप में अपना वर्चस्व बढ़ाने की गरज से यह युद्ध चाह रहे हैं।
             अमरीका और उसके आसपास या उसके साथ के कुछ मुल्क नहीं चाहते यह जंग हो।  2003 में जब अमरीका इराक पर हमले की तैयारी कर रहा था तो दुनिया भर में फैले अमरीकी राजनयिकों ने 40 देशों को अपने साथ तैयार किया था। लेकिन युद्ध का जो परिणाम हुआ उसे देखते हुए अब शायद ही कोई देश अमरीका के साथ खड़े होने इच्छा प्रदर्शित करें। ट्रंप खुद नहीं चाहते की युद्ध हो। वह स्वयं अपने  चुनाव अभियान में इराक युद्ध के विनाश का प्रचार कर कर रहे हैं। वे यहां तक कहते सुने गए हैं कि किसी को भी दुनिया का पुलिसमैन नहीं बनना चाहिए। उनके सलाहकारों का कहना है यद्यपि वे युद्ध नहीं चाहते लेकिन अहम की लड़ाई के मामले में वे बहुत संवेदनशील हैं।
जो आप तो लड़ता नहीं,
कटवा किशोरों को मगर,
आश्वस्त होकर सोचता,
शोणित बहा,  लेकिन, गई बच 
लाज सारे देश की।
     अगर युद्ध होता है तो इसे बहुत कुछ हासिल नहीं होगा ,केवल लाशों और घायलों की लंबी फेहरिस्त के अलावा। इसलिए ऐसा नहीं लगता कि अमरीका सचमुच जंग चाहता है। बोल्टन और पॉम्पियो ईरान में सत्ता परिवर्तन के तरफदार हैं लेकिन ईरान राजनीतिक  और  सैनिक दृष्टि से इराक के मुकाबले बहुत ताकतवर मुल्क है ।  ऐसी स्थिति में यदि युद्ध होता है तो कितने लोग मारे जाएंगे इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है । इसके अलावा ईरान की ज्यादातर आबादी वर्तमान सत्ता की समर्थक है और जो भी नई सत्ता वहां स्थापित होगी उसे आमजन का समर्थन आवश्यक है । लोग अमरिकी कठपुतली बर्दाश्त नहीं करेंगे । अमरीका पर उलट पर हमला करने हैं क्षमता ईरान में है। इस तरह के युद्धों के बाद भी नई स्थिति पैदा होती है । इस्लामिक स्टेट इसका जीता जागता उदाहरण है।
सबके मूल में रहता हलाहल है वही
फैलता है जो घृणा से स्वार्थ में विद्वेष से
           
अब यहां प्रश्न उठता है भारत के लिए इस युद्ध का क्या अर्थ है ? खास करके भारत में आने वाले तेल के परिप्रेक्ष्य में । भारत का इरान से सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध है और एक जमाने में भारत ईरान के तेल का सबसे बड़ा खरीदार था। लेकिन, अमरीकी प्रतिबंध के बाद यह कम हो R । भाRरत ने अब दूसरी जगह से तेल खरीदना शुरू कर दिया है लेकिन आगे चलकर यदि युद्ध होता है तो वह भारत के तेल की आपूर्ति को प्रभावित करेगा। क्योंकि और वह स्थिति उस समय खतरनाक बनी रहेगी। भारत इसी खाड़ी के रास्ते अधिकांश तेल का आयात करता है । यही नहीं भारतीय नागरिकों पर भी इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। अरबी प्रायद्वीप में लगभग 70 लाख भारतीय रहते हैं। अमरिका का कुवैत ,कतर बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान में सैनिक अड्डा है और इन देशों में सबसे ज्यादा भारतीय नागरिक रहते हैं अगर युद्ध होता है तो पलट कर वार करने ईरान की क्षमता बहुत ज्यादा है और इससे संपूर्ण प्रायद्वीप पर भयानक प्रभाव पड़ेगा।
युद्ध का उन्माद संक्रमशील है
एक चिंगारी कहीं जागी अगर
उपभोक्ता  पवन उनचास हैं
तोड़ के हंसती उबलती आग चारों ओर से

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