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Monday, June 17, 2019

सबकी निगाहें लोकसभा पर

सबकी निगाहें लोकसभा पर

अब 17वीं लोकसभा  का अधिवेशन सोमवार को आरंभ हो   गया। 2019 के चुनाव में निर्वाचित 543 सांसद अगले 5 वर्षों के लिए इस देश का मुकद्दर तय करेंगे। यह 5 वर्ष हमारे भारत के लिए एक गौरवशाली अवधि  भी है, क्योंकि इसी 5 वर्ष में  हमारे लोकतंत्र के  75 वर्ष पूरे होने वाले हैं। बहुतों के लिए यह हैरत में डालने वाला तथ्य भी है। क्योंकि इसी अवधि में दुनिया के कितने ही लोकतांत्रिक देश तानाशाही में बदल गए। संसद के लगभग 275 सांसद दोबारा चुने गए हैं। लेकिन,  इस बार अन्य तथ्य है कि यह सदन एक नए चरित्र को परिलक्षित करेगा।  भारत में भारतीय जनता पार्टी  के बहुमत के बाद देश के जनमानस  में बदलाव का यह प्रतिबिंब होगा। यह पहला अवसर होगा जब भारतीय जनता पार्टी लगातार दूसरी बार 5 वर्षों के लिए गठबंधन का नेतृत्व करेगी। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को विजय दिलाई थी और वह बहुमत के साथ संसद में आई थी। इस बार फिर वह संसद में आई है। लेकिन बहुमत बहुत ज्यादा है। इस वजह से भाजपा ने यह साबित कर दिया की उसकी पहली विजय  किसी संयोग   का नतीजा नहीं थी।  देश का जनमानस बदल रहा है और वह भारतीय जनता पार्टी  के विचारों  की दिशा में सोच रहा है ।  राष्ट्र का वैचारिक ढांचा परिवर्तित हो रहा है।
          लोकसभा में दो तिहाई से ज्यादा बहुमत हासिल करके इस समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अत्यंत शक्तिशाली स्थिति में है। अगले 2 वर्षों में इस गठबंधन को राज्यसभा में भी बहुमत ने आ जाने  की उम्मीद है और इससे उसकी राजनीतिक हैसियत और बढ़ जाएगी। लेकिन इन सब बातों के बीच या कहें इतनी बड़ी विजय के बाद देश ने इस पार्टी पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी सौंप दी है।  सबसे बड़ी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी को  सौंपी गई है कि  उन्होंने देश के  मानस में जो उम्मीद जगाई उसे वह पूरा करके दिखाएं। इसके अलावा लोकसभा में अधिकारों के  बंटवारे  की जो विषम फितरत है वह विपक्षी दलों पर भी रोशनी डालती है। चुनाव अभियान के दौरान वे एकजुट हुए फिर टुकड़े टुकड़े हो गए । कई तरह के गठबंधन बने जो मोदी को पछाड़ देने का दम भरते थे लेकिन नहीं चल पाए। कांग्रेस पार्टी , जिसने पहली बार राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव  में जोर  आजमाया था,  ने प्रचार के दौरान  प्रधानमंत्री मोदी और अन्य बड़े नेताओं के खिलाफ बहुत कुछ   अशालीन भी कहा फिर भी वह भी कुछ नहीं कर सकी । चुनाव में इतनी बड़ी पराजय के दो अर्थ होते हैं। पहला कि विपक्ष  की कोई आवाज नहीं रह गई है और दूसरा कि उसका कारण है कांग्रेस का अपना नजरिया। वैसे कांग्रेस आज भी संसद में सबसे बड़ी पार्टी है। उसके पुराने सांसद भी चुनाव हार गए। इससे  राहुल गांधी के बारे में एक बात समझ में आती है राहुल गांधी अपने पारिवारिक चुनाव क्षेत्र से हारे और आज केरल के वायनाड से प्रतिनिधि हैं। राहुल गांधी ने चुनाव में बहुत कुछ अशोभनीय कह कर नरेंद्र मोदी से भी अपने व्यक्तिगत संबंध खराब कर लिए। इससे दोनों के बीच थोड़ी दूरी बन गई । इस स्थिति ने एक भय पैदा कर दिया है कि शायद ही संसद आराम से चल सके। उसमें लगातार शोर शराबा होने की संभावना है । इससे विधेयकों के बनाने और उसे पारित करने यह अवसरों पर कठिनाई पैदा हो सकती है । जिससे आम जनता को  इतनी जल्दी  लाभ नहीं मिल सकता है  जितनी जल्दी की उम्मीद की जाती है ।
इस स्थिति से बचने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को एक सर्वदलीय सभा का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने सभी दलों से अपील की कि वे राजनीतिक मतभेद भुलाकर जनता की भलाई के लिए होने वाले कार्यों में सहयोग करें ताकि संसद का अधिवेशन ठीक से चल सके। उन्होंने कहा  कि हम जनता के लिए हैं और संसद  की कार्रवाई को अवरुद्ध करके हम लोगों का दिल नहीं जीत सकते। सभी दलों को अपने राजनीतिक मतभेद भूलकर देश को विकास की दिशा में ले जाने वाले कार्यों में सहयोग करना चाहिए। मोदी जी ने कहा  कि सभी  दलों के सांसद आत्म निरीक्षण करें  कि क्या वे जनता के प्रतिनिधि होकर उनकी अपेक्षाओं को पूरा करते हैं या नहीं। सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने विधाई एजेंडा भी प्रस्तुत किया और विपक्षी दलों ने किसानों एवं जलापूर्ति से संबंध मामलों को  उठाया । 
सोमवार को जो अधिवेशन आरंभ होने वाला है उसमें कई महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत किए जाएंगे इसमें धारा 356 भी है। इसके अलावा केंद्रीय शैक्षिक संस्थान विधेयक और आधार तथा अन्य कानून विधेयक 2019 भी शामिल हैं।
       16वीं लोकसभा के भंग होने पर 46 विधेयकों की अवधि समाप्त हो गई थी जो दोनों सदनों में विभिन्न चरणों में थे। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों को उठाने और संसद में लाने की संभावना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी नेताओं और सरकार के साथ सहयोग करने और 2022 तक एक नए भारत का निर्माण करने  के प्रयास में "सबका साथ सबका विकास"  का वास्तविक अर्थ प्राप्त करने की अपील की।
         संसद का यह सत्र सोमवार 17 जून से शुरू होकर 26 जुलाई तक चलेगा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 20 जून को अभिभाषण देंगे । 4 जुलाई को आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया जाएगा और 5 जुलाई को देश का  बजट। प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों की बुधवार को एक बैठक बुलाई है जिसमें "एक देश एक चुनाव " के मसले पर बातचीत की जाएगी। बृहस्पति वार को लोकसभा  और राज्यसभा के सांसदों की बैठक बुलाई गई है।
17वीं लोकसभा में 78 महिला सांसद है इनमें 16 पिछली लोकसभा में भी रह  चुकी थी फिलहाल जो सबसे महत्वपूर्ण है  वह है देश का बजट जो 5 जुलाई को प्रस्तुत किया जाएगा और इसे एक महिला सांसद प्रस्तुत करेंगी। तकनीकी तौर पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इंदिरा गांधी के बाद पहली महिला वित्त मंत्री हैं। इंदिरा जी प्रधानमंत्री थी और उन्होंने वित्त मंत्री का भी अतिरिक्त प्रभार संभाल रखा था। महिला वित्त मंत्री का असर संसद के भीतर और बाहर दोनों तरफ दिखाई पड़ेगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस लोकसभा में बदलाव की ताकत है। देखना यह है स्थिति कैसी आती है आधे भरे हुए गिलास की या आधे खाली गिलास की।

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