बिहार में मरते बच्चे
बिहार के मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस से मरने वाले बच्चों की संख्या 100 से ज्यादा हो गई है। इसे लेकर बिहार की राजनीति भी गरमा रही है । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल का दौरा करने गए थे। मुजफ्फरपुर वासियों ने नीतीश कुमार को देखते ही "वापस जाओ- वापस जाओ" के नारे लगाने शुरू कर दिए और काले झंडे भी दिखाए। इसके पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे तथा बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे भी मुजफ्फरपुर का दौरा कर आए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को राज्य के वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों से मुलाकात की और उनसे स्थिति को समझा तथा कई कदम उठाने का निर्देश दिए। नीतीश कुमार ने मरने वाले बच्चों के परिजनों को चार-चार लाख रुपए का अनुदान देने तथा इलाज का खर्च सरकार द्वारा वहन करने की घोषणा भी की है। इस बीच मुजफ्फरपुर प्रशासन द्वारा मंगलवार की सुबह जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि कुल 107 बच्चों की मृत्यु हुई है। जिनमें 88 बच्चे सरकारी क्षेत्र के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरे हैं तथा 19 बच्चों की मृत्यु निजी क्ष्रेत्र के केजरीवाल मेटरनिटी अस्पताल में इंसेफेलाइटिस से मृत्यु हुई है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने निर्देश दिए हैं। इधर इसकी आंच दिल्ली तक पहुंचने लगी है और मंगलवार को ही दिल्ली में बिहार भवन के समक्ष कई कार्यकर्ताओं ने एकत्र होकर नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग की है। उन्होंने इस बीमारी के फैलने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को जिम्मेदार ठहराया है।
इस बीमारी के कई कारण बताए जा रहे हैं । अभी कोई पुख्ता अनुसंधान इस दिशा में नहीं हो पाया है लेकिन विशेषज्ञ हैं बता रहे हैं कि यह बीमारी बिहार में चल रही भयानक लू कुपोषण और खाली पेट में लीची खाने से फैली है ।
यहां यह जानना जरूरी है इंसेफेलाइटिस क्या है? सबसे पहले 1995 में यह बीमारी मुजफ्फरपुर में फैली थी। इसके बाद हर वर्ष ऐसा होता रहा है । आंकड़े बताते हैं कि बिहार में इस बीमारी से 2015 में 11 बच्चे, 2016 में 4 बच्चे, 2017 में 11 बच्चे और 2018 में 7 बच्चे मरे हैं।
साइंस डायरेक्ट पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बीमारी का कारण खाने पीने की आदत, आर्थिक अवस्था और सामाजिक पृष्ठभूमि है। लेकिन, इसका सही कारण अभी तक नहीं जाना जा सकता है। जिन 123 मामलों पर इस शोधपत्र में अध्ययन किए गए उनमें अधिकांश के परिवार वाले अनपढ़ थे और उनकी जीविका का मुख्य साधन खेती बारी थी। इसके अलावा बच्चे या उनके परिजन साफ- सफाई के बारे में बहुत ज्यादा जागरूक नहीं थे। डॉक्टरों का मानना है कि कुपोषण और साफ पानी नहीं पीने के कारण यह हो रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य डॉक्टर अनिल कुमार के अनुसार इस मामले का सही कारण अभी तक अज्ञात है।
इन मौतों पर जद यू के सांसद दिनेश वर्मा ने कहा है कि "मुजफ्फरपुर की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है ,लेकिन हर साल गर्मी में बच्चे बीमार पड़ जाते हैं और मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है। सरकार इलाज की व्यवस्था करती है। बारिश शुरू होते सब बंद हो जाएगा।"
इन मौतों को लेकर बिहार में राजनीति आरंभ हो गई है। राजद के प्रवक्ता मनोज झा का कहना है कि यह सब जानते हैं कि गोरखपुर से लेकर मुजफ्फरपुर के बीच का क्षेत्र इंसेफेलाइटिस के लिए घातक है। 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अतिरिक्त बेड लगाने की योजना की घोषणा की थी। लेकिन वह अभी तक नहीं हो सका । मनोज झा का कहना है कि विपक्ष नहीं चाहता है कि बच्चों की मौत पर सियासत की जाए लेकिन यह भी स्पष्ट हो चुका है कि नीतीश कुमार की सरकार इसकी कोई परवाह नहीं करती। जद यू और भाजपा गठबंधन को यह भरोसा है कि स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान दिए बिना ही वह चुनाव जीत जाएंगे। उधर इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है की यह सब प्रकृति की देन है। वे भी लीची को इसके लिए जिम्मेदार बता रहे हैं । यहां यह बता देना जरूरी है की बिहार के मुजफ्फरपुर में देश में सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन होता है। डॉक्टरों ने इसका कारण बताते हुए कहा है कि जो बच्चे कुपोषण का शिकार हैं वे जब लीची खाते हैं तो उनके खून में शर्करा की कमी हो जाती है और इससे वे बीमार पड़ जाते हैं। अब इसे कई स्तरों पर देखा जाए तो बड़ी हैरत होती है कि बिहार में खास करके इस क्षेत्र में कुपोषण तथा शिक्षा का अभाव इत्यादि प्रमुख है । ऐसी स्थिति में जब बच्चे खाली पेट लीची खाते हैं तो हालत और बिगड़ जाती है। पिछले वर्ष महिला आवास गृह को लेकर मुजफ्फर पुर सुर्खियों में था जहां बच्चियों के साथ कुकर्म किए गए और उनकी हत्या तक कर दी गयी। शासन का बुनियादी कर्तव्य है शिक्षा और स्वास्थ्य मुहैया कराना। अब अगर यह भी नहीं होता है तो इस शासन व्यवस्था को क्या कहा जा सकता है । नीतीश कुमार की सरकार अपना कर्तव्य नहीं पूरा कर पा रही है । यह अच्छी खबर नहीं है बच्चे खास करके गरीबों के बच्चे ज्यादा बीमार पड़ते हैं। अब अगर उन्हें स्वास्थ्य सुविधा नहीं मुहैया कराई जाती है तो क्या होगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। कुपोषण, स्वास्थ्य सेवा का अभाव और क़ानून और व्यवस्था गिरती अवस्था राज्य के लिए अत्यंत घातक हो सकती है । नीतीश कुमार को चाहिए कि वह शासन व्यवस्था में अविलंब सुधार करने की कोशिश करें। खासकर, स्वास्थ्य सेवा के मामले में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
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