आर्थिक विकास के लिए जरूरी
प्रधान मंत्री का चुनाव प्रचार स्पष्ट तौर पर रोजी रोटी का संदेश था। इस संदेश ने मतदाताओं को अर्थव्यवस्था पर सोचने ही नहीं दिया। अब विशाल जनादेश के साथ दूसरे दौर के कार्यकाल में उन्है एक सुचिंतित आरफ्थीक सुधार की रणनीति तय करनी होगी। सरकार के नायें कार्यकाल के पहले दिन या कहें चार दिन पहले आये आंकड़े बताते हैं कि विगत पांच सालों की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद जी डी पी 2018-19 में नीचे खिसक कर 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गया। 2017- में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होकर यह 6.1 प्रतिशत पहुंच गए। जो कि पर्याप्त नहीं हैं। कृषि थोक मूल्य का जोड़ जनवरी- मार्च तिमाही में 3.1 प्रतिशत हो गया। निवेश और उत्पादन में मंदी , ग्रामीण संकट , अलाभकारी कृषि आय , अवरुद्ध निर्यात , रोजगार संकट और बैंकिंग गड़बड़ी से अर्थव्यवस्था जूझ रही है। मोटर कर इत्यादि की बिक्री घट रही है। ऐसी स्थिति में मोदी के इस कार्यकाल की सर्वोच्च आर्थिक प्राथमिकता अर्थव्यवस्था की धारा में सुधार होनी लक्ष्य तय किया जाना होना चाहिए। मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में शुरुआत तो बहुत अच्छी की पर शीघ्र ही भटक गयी।सरकार ने श्रमिक और भूमि कानूनों में सुधार के साथ उत्पादन में वृद्धि और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं की घोषणा की। पहले तो लगा कि यह योजना की ब्लू प्रिंट है पर उसे बहुत दूर तक अमल में नहीं लाया जा सका और 2015 के अंत तक उसे त्याग दिया गया।
आर अम्भिक ऊर्जा और उत्साह का उपयोग नोटबन्दी और जी एस टी जैसी जैसी योजनाओं में होने लगा।वित्त मंत्रालय के अफसरों द्वारा वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं और पुरानी पड़ चुकी बैंकिंग व्यवस्थाओं के बारे बार कहे जाने के बावजूद बहुत कम ध्यान दिया गया।यहां तक कि इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी जैसे सुधार पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका। मोदी जी और मनमोहन सिंह जैसे उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों द्वारा सुधारो को लगातार वर्षों तक अनदेखा किये जाने के कारण विकास की क्षमता और जनता की अपेक्षाएं दोनों नाकाम हो गयी।
आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए जल्दबाजी में संविधान संशोधन किया गया। इसके अलावा फरवरी में जो बजट उसे देख कर यह स्पष्ट हो गया कि मोदी जी आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों से अनजान नहीं हैं। लेकिन, अभी क्या वे आवेश्यक समाधानों के बारे में कही जाने वाली बातों को सुन रहे हैं? आर्थिक समस्याओं का समाधान राजनीतिक मरहम से नहीं किया जा सकता ,इन समस्याओं के समाधान के लिए पूर्ण निदान जरूरी है। सार्वजनिक शौचालय, रसोई गैस कनेक्शन , मनरेगा और आय पूरक योजनाएं इत्यादि स्थाई समाधान नहीं हैं। ये योजनाएं गरीबों को जिंदा रहने में मददगार हो सकती हैं। यह सब गरीबी खत्म करने या कम करने की कोई आर्थिक रणनीति नहीं है। गरीबी काम करने के लिए जरूरी है आर्थिक विकास जो गरीबों के लिए स्थाई जिपं यापन के साधन मुहैय्या करा सके। इसे कर पुनर्वितरण नीति से समाप्त नहीं किया जा सकता। कई स्थायी कारण हैं जिसके चलते गरीब कौशल का विकास नहीं कर सकते, अच्छी शिक्षा नहीं हासिल कर सकते , स्वास्थ्य के लिए चिकित्सा के अलावा सही वातावरण नहीं प्राप्त कर सकते। उदाहरणस्वरूप मोदी जी की "मेक इन इंडिया" पहल एक सही दिशा में पहल थी ।
देश में संगठित क्षेत्र में कुछ नौकरियां निकलती हैं क्योंकि यहां पूंजीगत उत्पादन को प्राथमिकता मिलती है। लेकिन, बेरोजगारी ज्यादा होने के कारण मजदूर मोलभाव नहीं कर सकते। अगर उत्पादन में पूंजी काम लगती तो संगठित क्षेत्र में ज्यादा नौकरियां निकलतीं और फिर मज़दूरों को मोलभाव करने का अवसर प्राप्त होता। सभी सरकारों ने उद्योग लॉबी को खुश रखने के लिए इस ढांचागत कमजोरी को बढ़ावा दिया। मोदी सरकार का पहला कार्यकाल इससे अलग नहीं था। " मेक इन इंडिया" की पृष्ठभूमि में जो आर्थिक समर्नीति थी थी उसे पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया। मौद्रिक नीतियों को सुधारने से देश का विकास नहीं हो सकता इसके लिए बैंकिंग, भूमि और श्रमिक नीतियों में सुधार की जरूरत है। अभी तक कोई सरकार ऐसा नहीं कर सकी है। यहां सवाल उठता है कि क्या मोदी जी अतीत की लोकलुभावन नीतियों को कायम रखेंगे या 1990 के बाद से बकाया आर्थिक सुधारों को पूरा करेंगे? एक मजबूत अर्थव्यवस्था उनकी नीतियों की पहचान बनेगी या फिर वही अप्रभावशाली उपाय किये जायेंगे।
छोटी कंपनियां भी रोजगार के अवसर मुहैय्या करती हैं और उनका संचालन तथा पूंजी का बंदोबस्त भी आसानी से हो सकता है।टैक्स नियम सरल हो तो उन्हें आसानी हो सकती है बनिस्पत जी एस टी जैसी जटिल नियमों वाली व्यवस्था के।
नीतियों का कोई भी नमूना तबतक संभव नहीं हो सकता जबतक सरकारी आंकड़ों के संग्रहण और आकलन में साख नहीं हो। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बेरोजगारी तथा सकल घरेलू उत्पाद पर सवाल उठाए गए थे पर सरकार की ओर से उसका संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। रचनात्मक आलोचना के उत्तर के लिए एक परिपक्व तरीके को गढ़ा जाना जरूरी है। तभी सरकार जन के प्रति उन्मुख हो सकेगी और देश आर्थिक कल्याण हो सकेगा।
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