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Sunday, June 16, 2019

हड़ताली डॉक्टरों की पीड़ा

हड़ताली डॉक्टरों की पीड़ा

पश्चिम बंगाल में विगत चार दिनों से डॉक्टरों की हड़ताल चल रही है । मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने डाक्टरतों की बात मान ली है और बात चीत के लिए बुलाया भी है पर अभी भी डाक्टर हड़ताल पर हैं। राज्य में स्वास्थ्य सेवायें चरमरा गयीं हैं। मुख्यमंत्री  ममता बनर्जी ने मंत्रियों के एक दल और स्वास्थ्य विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को डाक्टरों  से वार्ता के लिए भेजा था पर  डॉक्टरों ने उनसे मुलाकात नहीं की।   मुख्य मंत्री ने हड़ताली डॉक्टरों से अपील की है कि वे सांविधानिक निकाय का आदर करें। उन्होंने कहा कि 10 जून को डॉक्टरों पर जो हमले हुए वह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन ऐसे मामलों को सुलझाने का यह सही तरीका नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य में जल्द से जल्द स्वास्थ्य सेवाएं सामान्य हो जाएं यही अच्छा है। स्वास्थ्य सचिव का कहना है कि डाक्टरों पर हमले के दोषी लोगों पर कार्रवाई की जाएगी और घायल डॉक्टरों के इलाज का सारा खर्च सरकार उठाएगी। राज्य में इन दिनों अस्थिरता का माहौल है । राजनीतिक हिंसा की घटनाओं के बाद डॉक्टरों की इस हड़ताल ने रही सही कसर पूर्ति कर दी। ममता बनर्जी ने डॉक्टरों के प्रति नरम रुख अपनाते हुए कहा कि वे वैसा कुछ नहीं करना चाहती जैसा णय राज्यों  में डॉक्टरों खिलाफ़ किया गया है। उनका इआशारा जमा की ओर था। उनका कहना है कि इससे डॉक्टरों के कैरियर पर आंच आएगी।
     पूरी घटना को अगर देखें तो इसमें सियासत की बू आती है। मरीजों को हिंदुओं और मुसलमान में तकसीम किया जा रहा है। हालात बिगड़ते जा रहे हैं और यहां तक कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी इसमें समर्थन देने का मूड बना लिया है। आरोप प्रत्यारोप का बाजार गर्म है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी इसके राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और मुख्य मंत्री को दोषी बताया है। मामला धीरे धीरे राजनीतिक होता जा रहा है और कुछ राजनीतिज्ञों के बयान ने आग मेडिन घी का काम किया है। भाजपा के राज्य प्रमुख दिलीप घोष का कहना है कि डॉक्टरों पर हमले के लिए एक समुदाय के असामाजिक तत्वों का हाथ है।उधर बिहार में  भा ज पा के सहयोगी जे डी यू के पूर्व प्रवक्ता डॉ. अजय आलोक ने ट्वीट किया कि " वेस्ट बंगाल में एक डॉक्टर की 200 रोहिंगय पिटाई करते हैं और इस  के विरूद्ध अगर डॉक्टर हड़ताल पर जाएं और देश भर के डाक्टर उनके समर्थन में आ जाएं तो गलत क्या है। "   बंगाल के मेडिकल कालेजों में इसके पहले भी डॉक्टरों के साथ हल्की फुल्की गाली गलौज होती रही है। पुलिस रेकॉर्ड के अनुसार पिछले साल ऐसी लसगभसग 50 घटनाएं हुईं। आम तौर पैर जूनिया डॉक्टर जी आपात व्यवस्था के लिए तैनात होते हैं। मामला बिगड़ने पर वही सारा दर्द झेलते हैं। जिनमें सबसे ज्यादा भय महिला डॉक्टरों को रहता है।   लेकिन यह पहला वाकया है जब  किसी मरीज और उसके परिवार वालों की उसके धर्म के आधार पर चर्चा  हो रही है।  उधर यह मामला अदालत तक भी पहुंच चुका है और एक डॉक्टर की याचिका पर हाई कोर्ट की एक पीठ ने सरकारको निर्देश दिया है कि वह इसे शीघ्र खत्म करवाये। राजपाल केसरी नाथ त्रिपाठी इस सम्पूर्ण मसमले को लेकर अत्यंत सक्रिय हैं।
    यह सब घटना का एक पक्ष है। आज बंगाल है तो सबके निशाने पर है और इसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। लेकिन, अगर गौर से देखें तो इसमें डॉक्टरों का कोई ज्यादा दोष नहीं है। राज्य जितने भी सरकारी अस्पताल हैं उनमें डॉक्टरों और अन्य जरूरी सुविधाओं की भयानक कमी है। यह केवल बंगाल की बात नहीं है। इंडियन मेडिकल एसोशिएशन के आंकड़े बताते हैं कि 10,.2 लाख डॉक्टर उससे पंजीकृत हैं लेकिन सरकार के रिकार्ड के अनुसार केवन 8,2 लाख डॉक्टर ही सक्रिय सेवा में हैं। यानी 1.3 अरब की आबादी के  लिए महज 8.2 लाख डॉक्टर। इसके बाद अन्य सुविधाओं का भारी अभाव। लगभग एक दशक पहले क्लिनिकल  इस्टैब्लिशमेंट एक्ट पारित हुआ लेकिन अबतक किसी भी सरकारी अस्पताल में वह लागू नहीं  हो सका है। डॉक्टरों का कहना है कि रोगी की मौत के बात गुस्साए उनके परिजन उतने दोषी नहीं हैं जितनई संसाधन की कमी है। डॉक्टर अपनी सुरक्षा चाहते हैं इसमें उनकी खास गलती नहीं है। सरकार को इसके लिए पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए।

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