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Wednesday, June 19, 2019

..... खबरें अभी और  आएंगी

..... खबरें अभी और  आएंगी

बिहार के मुजफ्फरपुर में रहस्यमय चमकी बुखार से बच्चों की लगातार मौत के कारणों के बारे में तो वैज्ञानिक रूप से कुछ पता नहीं चला है लेकिन मोटे तौर पर डॉक्टरों का कहना है कि यह मौतें कुपोषण और अशिक्षा के कारण हो रही हैं। मसला यह नहीं है की मौतें हो रही हैं। मसला यह है कि कुपोषण के कारण हो  रही हैं।  अगर इस पर तुरंत ध्यान भी दिया जाता है तब भी कुछ खास लाभ नहीं होने वाला है। क्योंकि, कुपोषण का उपचार इतना शीघ्र नहीं किया जा सकता।  दुख है भविष्य में और बच्चों की मौत खबरें और आएंगी।
विवश देखती मां आंचल से नींद तड़प उड़ जाती
अपना रक्त पिला देती ,यदि फटती आज बज्र की छाती 

अब से 5 साल पहले 2014 में भी स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन मुजफ्फरपुर आए थे। यही कोई 20 जून के आसपास। उस साल 139 बच्चे मरे थे और उन्होंने कई घोषणाएं की थीं।  उन घोषणाओं पर आज तक पूरी तरह अमल नहीं हो सका।  इस बार फिर शोक जताने वह आए हैं। उनसे पूछना चाहिए कि उन घोषणाओं का क्या हुआ? लेकिन इन सबसे अलग बिहार में इन मौतों का जो मुख्य कारण है वह है कुपोषण। अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। आश्चर्य होता है कि राज्य में 38 पोषण पुनर्वास केंद्र हैं। इसके बावजूद 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 5 लाख बच्चे कुपोषित हैं बिहार में। जिनमें केवल 0.3 प्रतिशत ही बच्चों का इलाज मुमकिन है। यानी 346 कुपोषित बच्चों में से केवल एक ही इलाज हो सकता है।  ऐसे में मौतों के सिवा और कोई खबर नहीं है
कब्र - कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है
दूध - दूध की कदम कदम पर सारी रात होती है

आंकड़े बताते हैं कि बिहार के हर जिले में एक पोषण पुनर्वास केंद्र है । जिनमें कम से कम 10 बेड हैं।  एक बच्चे के इलाज में लगभग 20 दिन लगते हैं। यानी कुल पोषण केंद्रों में  0.3 प्रतिशत के हिसाब से 13,870  कुपोषित बच्चों का एक साथ इलाज हो सकता है। अगर मेडिकल नजरिये से देखा जाए तो कुपोषण के कई प्रकार होते हैं। यानी, उम्र के हिसाब से लंबाई कम हो जाना, उम्र के मुकाबले वजन कम हो जाना  इत्यादि। बिहार में एक लाख से ज्यादा बच्चे फिलहाल गंभीर रूप से कुपोषित हैं। जिनका  विकास दर सबसे कम है। परिणाम स्वरूप इन बच्चों के मौत का खतरा सबसे ज्यादा है।

दूध - दूध दुनिया सोती है लाऊं दूध कहां किस घर से 
दूध - दूध है देव गगन  के कुछ बूंदे टपका अंबर से

2015 में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक 1 वर्ष से 5 वर्ष के आयु के कुपोषित बच्चों की संख्या के मामले में भारत एशिया में तीसरा स्थान में और दुनिया में 24 वे स्थान  पर है। केवल कुपोषण ही नहीं बच्चों की मौत के लिए भीषण गर्मी  और लू भी जिम्मेदार है। झुलसा देने वाली गर्मी से बिहार में अब तक 200 लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों भरती हैं अस्पतालों में। हाल इतना बुरा है कि कई जगह सरकार को धारा 144 लागू करनी पड़ी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने लोगों को सलाह दी है कि जब तक गर्मी कम ना हो जाए तब तक बाहर ना निकलें। क्या विडंबना है घर में खाने को है नहीं और बाहर निकलना वर्जित कर दिया गया। आखिर  कब तक चलेगा। यह केवल बिहार की आदत नहीं है। विदर्भ तटीय आंध्र प्रदेश, तेलंगना , पश्चिम बंगाल, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मराठवाड़ा, छत्तीसगढ़, तमिल नाडु और पुडुचेरी के कई इलाके भयंकर गर्मी की चपेट में है और वहां ताप लहर चल रही है । मौसम विभाग के अनुसार देश के कई हिस्सों में कल से यानी मंगलवार से बारिश होने की बात कही गई थी कहीं-कहीं तो छींटे पड़े लेकिन बिहार और बंगाल के अधिकांश भागों में ताप लहर जारी रही । कई राज्यों का तापमान 45 डिग्री से ऊपर चला गया। राजस्थान के चूरू में 1 जून को तापमान  50.8 डिग्री रहा। दिल्ली में 10 जून को 48 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान रिकॉर्ड किया गया था।
         इस गर्मी के कारण सूखा पड़ रहा है। देश का करीब 50% भाग सूखे की चपेट में है। पानी की लगातार कमी हो रही है। केंद्रीय जल आयोग रिपोर्ट के मुताबिक देश के 21 शहरों के 91  जलाशयों में चौथाई से भी कम पानी रह गया है। मार्च से मई के बीच केवल 23% बारिश हुई है । विगत 65 वर्षों में ऐसा दूसरी बार हुआ है। भयानक गर्मी उसके बाद  सूखा और फिर बाढ़ इनसे बचा तो चक्रवाती तूफान  और अकाल। यह सब हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया है। सर्दियों में आने वाली फुहारे गायब होती जा रहीं हैं । इसका असर खेती पर पड़ रहा है मौसम का यह सामान्य चक्र अर्थव्यवस्था से लेकर हमारे वजूद तक को संकट पैदा कर रहा है । ऐसी स्थिति की पृष्ठभूमि में हम कुपोषण की बात करते हैं। आखिर पोषण का क्या तरीका हो सकता है। यहां एक सवाल और सामने आ रहा है कि मौसम की यह मार क्या केवल कुदरती है क्या इसके पीछे कोई इंसानी हाथ नहीं है?
         सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक शोध के मुताबिक इसकी वजह इंसान  है।  गवर्नेंस भी है। योजनाहीन शहरीकरण, भवन निर्माण में कंकरीट का जबरदस्त इस्तेमाल, पेड़ों की कटाई, पानी की फिजूलखर्ची इत्यादि बड़ी वजह है। शहरों में और गांव में जिस तरह जमीन का पानी खींचा जा रहा है और वन्य संपदा तथा हरीतिमा का जिस तरह विनाश हो रहा है उसे आने वाले संकट की आहट साफ महसूस हो रही है। मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि देश में पिछले साल ज्यादातर हिस्सों में तापमान सामान्य से ऊपर रहा। यहां तक कि हिल स्टेशन भी गरम हो रहे हैं। ऐसे में मानसून की देरी क्या संकट ला सकती है इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है । लेकिन कुदरत के चक्र में इंसानी  दखलंदाजी अखिल कैसे चलेगी। दुनिया भर के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी दी है। जिसके चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्रों का तापमान बढ़ रहा है। इसका असर भी लंबे सूखे की मार बेवक्त बारिश भयंकर तूफान इत्यादि  के रूप में सामने आ रहा है। भारत की ही बात लें। पिछले 9 महीनों में तीन बड़े चक्रवात भारत के तटों से टकराए हैं। अक्टूबर में तितली आई जिससे करीब 3000 करोड़ का नुकसान हुआ और 60 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। इस तूफान की वजह से 60 से ज्यादा लोग मारे गए। फिर नवंबर में गज की तबाही हुई। इस साल मई में फिर चक्रवाती तूफान आया और करीब 9000 करोड़ रुपए का नुकसान कर गया। डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हो गए सारे तूफानों का निशाना भारत का पूर्वी तट ही रहा है। तमिलनाडु से लेकर आंध्र प्रदेश ,उड़ीसा, पश्चिम बंगाल में इसका असर दिखा। समुद्र का तापमान जैसे-जैसे बढ़ेगा वैसे-वैसे साइक्लोन ज्यादा विनाशकारी होता जाएगा। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो अगले 10 वर्षों में भयानक  प्रलय की आशंका है और भारत पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। भारत के हिस्से वाले हिमालय में करीब 10 हजार ग्लेशियर हैं जो पिघल रहे हैं । समुद्र तट  के किनारे लगभग 30 करोड़ लोग रहते हैं जिनका मुख्य आधार खेती  या सागर आधारित है। नीति आयोग का कहना है अगले साल तक 21 शहरों का भूजल समाप्त हो जाएगा। यानी 10 करोड़ की आबादी के पास पानी नहीं रहेगा। ऐसे में लू या सूखे का क्या असर होगा इसका अंदाजा खुद लगाया जा सकता है।
पर शिशु का क्या सीख ना पाया अभी जो आंसू पीना
चूस -चूस सूखा स्तन मां का सो जाता रो -विलाप नगीना

         कुदरत की मार का मुकाबला काफी महंगा होता है। बड़ी संख्या में विस्थापन, उनकी रोजी-रोटी इन सब का इंतजाम कितना कठिन है यह सब समझते हैं । अभी तो केवल  लू चल रही है और गर्मी पड़ रही है। इस देश के विकास पर भयानक असर पड़ रहा है । अगर अगले 10 सालों तक यही जारी रहा तो इसके मुकाबले के लिए कम से कम 70  करोड़ चाहिए। विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कुदरत की हमार भारत की जीडीपी को अगले 30 वर्षों में 2.8% तक की चोट पहुंचा सकता है। अब बिहार  की लू हो या अन्य जगहों का जल संकट इसका उपाय तो खोजना ही पड़ेगा। वरना  मुजफ्फरपुर  की तरह देश के अन्य भागों से भी बच्चों की मौत की खबरें आने लगे  तो कोई हैरत नहीं । दिनकर ने कहा था 
हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं 
दूध -दूध हे वत्स तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं

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