जिस देश का बचपन भूखा हो
मुजफ्फरपुर के अस्पताल में अगर बीमार बच्चों को ध्यान से देखें तो डर लगने लगा है और जब तक यह एहसास होगा कि हमारे देश के अस्पतालों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा है ही नहीं तब तक न जाने कितने अस्पतालों में कितने बच्चे मर चुके होंगे। इस बीच संसद में जय श्रीराम के नारे से लेकर कर बंगाल में हिंसा की कई घटनाएं हुई लेकिन इंसानी सोच को झकझोर देने वाली इस घटना की बराबरी नहीं हो सकती । भारतीय बच्चों की जिंदगी कितनी सस्ती हो गई है यह इन्हीं आंकड़ों से पता चलता है कि हर मिनट 21 बच्चे मामूली रोगों से मर जाते हैं। ऐसे रोगों से जिनसे बचा जा सकता है। जन्म लेने वाले प्रति 1000 बच्चों में 61 बच्चे 5 बरस की उम्र तक नहीं जी पा रहे हैं। मुजफ्फरपुर में सौ- डेढ़ सौ बच्चों की मौत क्या कीमत रखती है हमारे देश में। हालांकि ये आंकड़े भयभीत करने वाले हैं। 2 साल पहले इन्हीं गर्मियों में इसी बीमारी से गोरखपुर में 63 बच्चे केवल इसलिए काल के गाल में समा गए कि जिन अस्पतालों में उनका इलाज चल रहा था उनमें ऑक्सीजन नहीं था। भारत बदल रहा है अब से 3 साल पहले जो कुछ भी होता था वह अब नहीं हो रहा है। भारत में कई बेहतरीन प्राइवेट अस्पताल हैं जो दुनिया के किसी भी अस्पताल की बराबरी करते हैं। इसी के साथ-साथ हमारे देश में कई बेहद खस्ताहाल सरकारी अस्पताल भी हैं यह कितना दर्दनाक है। क्यों नहीं हमारे सरकारी अफसरों और राजनीतिज्ञों को सरकारी अस्पतालों की दुरावस्था के कारण दंडित किया जाता है? केवल इसलिए न कि ये बड़े लोग इन सरकारी अस्पतालों में उपचार नहीं कराते। अतः प्रधान मंत्री को यह अनिवार्य कर देना चाहिए कि सभी सरकारी अफसरों और राजनीतिज्ञ चाहे वे निर्वाचित हो अथवा और निर्वाचित अपना और अपने परिवार का इलाज सरकारी अस्पतालों में ही कराएं । जब वह देखेंगे उनके बीमार बच्चे भीड़ भरे अस्पतालों में एक ही बेड पर चार चार बीमार बच्चों के साथ पड़े हैं और भयानक गंदगी में उनकी बेटियां या बीवियां गंदे फर्श पर बैठी डॉक्टरों का इंतजार कर रही हैं तो हालात खुद ब खुद बदल जाएंगे। हो सकता है कि बिहार में सुधार सबसे आखिर में आए। क्योंकि बिहार में अक्सर राजनेताओं का हुकुम चलता है और उन राजनेताओं में इंसानियत का भारी अभाव हुआ करता है। चूंकि बिहार के अधिकांश लोग गरीबी से जूझ रहे हैं अतः वे इन घटनाओं को भूल जाते हैं। हममें से बहुतों को याद होगा अब से पांच-छह बरस पहले बिहार के ही एक गांव में 23 बच्चे स्कूल में दोपहर का विषैला भोजन खाकर मर गए थे। यह घटना सुशासन बाबू के राज में हुई और लोग इसे इस कदर भूल गए के 2015 में वे फिर बहुमत से सत्ता में आ गए।
मुजफ्फरपुर की घटना भी भूल सकते हैं बिहार के लोग। लेकिन शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं बदलेंगे। अगर नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवा को उतना ही महत्व दिया जितना उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में स्वच्छ भारत अभियान को दिया था तो उम्मीद है कि भारत के बच्चे ऐसी बीमारियों से नहीं मरेंगे जिन्हें रोका जा सकता है। यह कहा जाना की स्वास्थ्य राज्य का विषय है बेकार की बात है। आज मोदी जी के साथ देश के अधिकांश राज्य हैं, खासकर के बड़े राज्य। अतः जब वे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में बुनियादी बदलाव के आदेश देंगे तो उन पर अमल होगा ही। वे स्वच्छ भारत के अर्थ को स्वच्छता के दायरे से निकाल कर व्यापक भी बना सकते हैं। बिहार में जो बच्चे मरे वे कुपोषण और अशिक्षा के कारण उत्पन्न स्थितियों से मरे। कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी मच्छरों के काटने से भी फैली। यह सभी जानते हैं कि मच्छर जमा हुए गंदे पानी में ही अंडे देते हैं। अगर स्वच्छता हो तो देश के अधिकांश बच्चे 5 वर्ष की उम्र पूरी करने के बाद भी हंसते खेलते रहेंगे। सुधार और भी हैं जिसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए। खास करके मेडिकल कॉलेजों के खोले जाने में लाइसेंस राज को तुरंत खत्म किया जाना चाहिए। देश में डॉक्टरों की भयानक कमी है और यह कम इसलिए है कि हमारे यहां मेडिकल कॉलेज कम हैं। जो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खुले हैं उनमें लूट मची हुई है । 90 - 90 लाख रुपए तक डोनेशन देने के बाद नामांकन कराया जाता है और यह सहज सोचा जा सकता है कि जो लोग इतना रुपया खर्च कर डॉक्टरी के पेशे में जाएंगे वह उपचार नहीं व्यापार करेंगे। देश में मेडिकल की पढ़ाई को विस्तार देना जरूरी है।
केवल यही हो तो कोई बात नहीं इसके अलावा भी बहुत कुछ हो रहा है हमारे देश में। जैसे लाखों लोग केवल पानी की तलाश में अपना घर बार छोड़कर दूसरी जगह जाकर बस रहे हैं और हमारी सरकार, हमारी मीडिया राम ,अल्लाह ,हिंदुस्तान ,इंकलाब, ममता जैसे मामलों में उलझी हुई है । सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 2030 तक भारत की एक चौथाई आबादी के पास पीने का पानी नहीं रहेगा और अगले साल तक देश के 21 शहर जल विहीन हो जाएंगे । प्रधानमंत्री ने कहा है कि वे अगले 5 साल में सब जगह जल पहुंचाएंगे लेकिन कोई उनसे यह नहीं पूछ रहा है कि यह पानी आएगा कहां से, नदी या तालाब से।यह सब तो सूख रहे हैं या प्रदूषण से भरे जा रहे हैं । लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। हम योग दिवस में या तीन तलाक के मामले में उलझे अपनी-अपनी डफली बजा रहे हैं। निपा वायरस ,कुपोषण और इंसेफेलाइटिस जैसे मसायल हमारी प्राथमिकता सूची में नहीं हैं। सरकार थोड़ी सी रकम बैंक खाते में डाल देती है और यह बताती है कि हमने आर्थिक मदद दी। लेकिन आर्थिक मदद पाने वाली और गरीब लोग उन रुपयों का उपयोग कैसे करेंगे? जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता है ही नहीं ।पीने का पानी दूर-दूर तक मयस्सर नहीं है।
कहां तो तय था चरागां हर घर के लिए
यहां रोशनी मयस्सर नहीं है शहर भर के लिए
सरकार को इन सब काल्पनिक निदानों को छोड़कर कुछ ठोस करना चाहिए जिससे कम से कम हमारे देश के बच्चों का जीवन बच सके बच्चे ही इस देश के भविष्य हैं।
मिलती नहीं कमीज पांवों से पेट ढक लेंगे कितने मुनासिब हैं ये लोग इस सफर के लिए
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