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Monday, February 10, 2020

आलोचना के पहले सोचना होगा

आलोचना के पहले सोचना होगा 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कहा है कि बजट में 2024 25 तक देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाने की आधारशिला रखी गई है। उन्होंने कोलकाता में संवाददाताओं से कहा वित्त वर्ष 2020 - 21 में बजट में खपत बढ़ाए जाने के उपाय किए गए हैं। साथ ही यह सुनिश्चित किया गया है कि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए निवेश करे। इससे आखिरकार देश की अर्थव्यवस्था को 5000 अरब डालर का बनाने में मदद मिलेगी। वित्त मंत्री ने कहा कि हमने खपत बढ़ाने और पूंजीगत निवेश को सुनिश्चित करने की नींव डाली है। सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने पर खर्च करेगी इसका लघु एवं दीर्घ अवधि में व्यापक असर देखने को मिलेगा।
       वित्त मंत्री के इस कथन के परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाए तो बहुत उम्मीदें जगती हैं हालांकि कुछ टीकाकारों का कहना है कि अर्थव्यवस्था के मामले में वर्तमान सरकार का काम ठीक नहीं रहा है। लगभग आम सहमति इस बात पर है 2014 के चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री जी ने जो वायदे किए थे उन्हें पूरा नहीं किया जा सका।  निकट भविष्य के आसार बहुत अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। बेशक इस बात को कहने का कोई फायदा नहीं है कि आने वाले दिनों में भी बहुत कुछ अच्छा होगा। सरकार तमाम प्रमुख आर्थिक पहल करने में पिछड़ गई है और वह संरक्षणवाद की ओर मुड़ गई है। रोजगार और व्यापार के मोर्चों पर उसका कामकाज ठीक नहीं है ,लेकिन अगर इस बात का विश्लेषण करें तो सबसे पहले एक बात मान कर चलना होगा कि इस साल वृद्धि दर 5% रही और अगले साल 6% रहेगी। 2020- 21 तक के  3 वर्षों में औसत वृद्धि दर महज 5.7% ही रहेगी। यह आंकड़ा मनमोहन सिंह सरकार के आखरी 3 वर्षों में औसतन वृद्धि दर के आंकड़े की तुलना में काफी कमजोर रही। मनमोहन सरकार के अंतिम 3 वर्षों में वृद्धि दर 6.2% थी इस आंकड़े को नई सदी के शुरुआती वर्षों के बाद कभी नहीं छुआ जा सका है। इसलिए आलोचकों को पूरा आधार मिल गया है। इसका अंदाजा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के भाषण से नहीं लगता है। आखिर सरकार के पहले 4 वर्षों में वृद्धि दर 7.7% थी और दोनों कार्यकालों को जोड़ कर देखा जाए तो 7 वर्षों में औसत वृद्धि दर 6.9% थी। यह उठना गिरना लगभग चौथाई सदी से जारी है। मनमोहन सरकार के आखिरी 3 वर्षों की कमजोर दर से पहले के 3 वर्षों में यह दर प्रशंसनीय थी। उस अवधि में यह दर 7.5 प्रतिशत रही और सब हासिल हुआ था जब दुनिया आर्थिक संकट से जूझ रही थी। इसी तरह 2003 में 4.2% गिरावट दर्ज की गई। लेकिन इसके बाद के 3 साल में इसका औसत 4.23 प्रतिशत का रहा था और फ़िर गति तेज हो गई थी। अगर संक्षेप में कहें तो फिर गति तेज हो गई थी फिर सुस्त हो गई फिर तेज हो जा सकती है। इसकी वजह आपस में जुड़ी हुई है। फिलहाल जिसे सुस्ती कहा जा रहा है उसकी सबसे और सामान्य बात है यह बिना किसी बाहरी कारण के आई है। जैसा कि पिछले 50 वर्षों में आई सुस्ती के दौरों के साथ हुआ। यह वर्तमान दौर की सुस्ती को तुलनात्मक रूप से ज्यादा गंभीर बना देता है। अगर भारतीय अर्थव्यवस्था ठीक नहीं होती है तो जाहिर है कि व्यवस्था में ही कमजोरी है।
         अब इसके बाद आलोचना की ओर दूसरा कदम उठाने से पहले इस बात पर गौर करना  होगा कि मोदी सरकार ने क्या-क्या सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन किए  वित्तीय सेवाओं में। रसोई के लिए साफ-सुथरे ईंधन, शौचालय ,बिजली, डिजिटल लेनदेन को आसान बनाया और अब किसानों को नगद में भुगतान तथा मुफ्त मेडिकल सेवा भी मुहैया कराई । अब जैसा कि वित्त मंत्री ने बताया की मूल मुद्रास्फीति सहित माइक्रोइकोनॉमिक बैलेंस अच्छी अवस्था में है । मोदी जी के आलोचक सामाजिक बदलावों को और उसके महत्व को लगभग समझ नहीं पाते हैं। इसकी वजह यह हो सकती है की विफलता है तो दिख जाती है। जैसे गंभीर होती बेरोजगारी, उपभोग में गिरावट और इसका निवेश पर असर , निर्यात में गतिरोध नीतिगत  सुधारों के प्रमुख पदों पर कानूनी निष्क्रियता ,किसानों के समक्ष चुनौतियां इत्यादि इत्यादि।HH अब इसमें जो ज्यादा बाल की खाल निकालते हैं वह संस्थाओं के हरा जैसी समस्याओं को भी जोड़ सकते हैं तू बात वित्त मंत्री ने कही है वाह 1 दिन में तो हो नहीं सकता किसी के पास कोई जादू की छड़ी तो होती नहीं है लेकिन इन तथ्यों की समीक्षा करने वालों के लिए यह जरूरी है कि वे आक्रामक रुख ना अपनाएं बेरोजगारी जैसी समस्या से बेशक निपटना होगा क्योंकि यह बढ़ती विषमता और विकास के लाभ के असमान वितरण से उत्पन्न हुई है। इसकी मूल में वही बातें हैं । कई मोर्चों पर ज्यादा काम करने की जरूरत है। जैसा कि वित्त मंत्री ने कहा है कि  इंफ्रास्ट्रक्चर  को सुधारना होगा और अगर ऐसी स्थिति में आर्थिक वृद्धि रफ्तार पकड़ती है तो मोदी सरकार को दाद देनी होगी। क्योंकि इससे सरकार का आर्थिक रिकॉर्ड चमक सकता है। लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो तेज वृद्धि का अगला चरण शुरू होने में देर हो सकती है। फिर भी वित्त मंत्री की है बात आशा जनक है एवं उम्मीद करनी चाहिए कि विकास होगा। क्योंकि हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर की सबसे बड़ी कमी है। अगर इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होगा तो  अर्थव्यवस्था को विकसित होने के प्रचुर आधार नहीं मिलेंगे। अर्थव्यवस्था पर असर बहुत धीरे-धीरे होता है इसलिए सरकार की आलोचना करने से पहले कुछ सोचना जरूरी है।


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