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Tuesday, February 4, 2020

शाहीन बाग प्रदर्शन: संयोग नहीं प्रयोग है

शाहीन बाग प्रदर्शन: संयोग नहीं प्रयोग है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को दिल्ली के सीबीडी ग्राउंड में चुनावी रैली में कहा कि शाहीन बाग में बीते कई दिनों से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन संजोग नहीं प्रयोग हैं । उन्होंने कहा कि इसके पीछे राजनीति का एक ऐसा डिजाइन है जो राष्ट्र के सौहार्द को खंडित करेगा। यह सिर्फ इसी कानून के विरोध का प्रदर्शन का मामला होता तो सरकार के आश्वासन के बाद समाप्त हो चुका होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। संविधान और तिरंगे की ओट में असली साजिश से ध्यान हटाया जा रहा है। प्रधानमंत्री का यह कहना बिल्कुल सही है। कहते हैं, दिल्ली में कम से कम 9 शहर हैं और यहां की अधिकांश आबादी दूसरे शहरों से या दूसरी जगहों से आकर बसी है। अखबारों को सही मानें तो महिलाएं शाहीन बाग में दिन-रात प्रदर्शन कर रहीं  है और प्रतिरोध की कविताएं गा रही हैं ,क्रांति के गीत सुन रही साथ ही  हड्डियों तक पहुंचने वाली सर्द रातों में बच्चों को लोरियां भी सुना रहीं हैं। वह बच्चों को ठंड में भी लेकर आई हैं। प्रदर्शन करने वाली महिलाएं गरीब हैं और बच्चों के लिए दाईयां नहीं रख सकती हैं। उन महिलाओं के बारे में टीवी रपटों को देखा जाए तो यह कहते सुना जा सकता है कि वे संविधान बचाने के लिए प्रदर्शन कर रही हैं।
    जिन लोगों ने जमाना देखा है उन्हें यह मालूम होगा कि प्रदर्शन क्या होते हैं। 80 के दशक में बिहार का प्रदर्शन सामाजिक और राज्य का विरोध के लिए चक्का जाम कर दिया जाना और सड़क परिवहन को ठप किया कर दिया जाना उस समय की मामूली बात थी। आडवाणी जी को गिरफ्तार किए  जाने के बाद लगे कर्फ्यू को तो सब ने महसूस किया होगा। हाईस्कूल की परीक्षाओं में हममें से बहुतों ने सरकार की नीतियों  के निर्देशात्मक सिद्धांत और मूलभूत सिद्धांत पर लेख लिखे होंगे। 2011 में अमेरिका में ओकूपाई मूवमेंट शुरू हुआ था। यह मूवमेंट आर्थिक असमानता का था। टाइम पत्रिका में इस मूवमेंट के बारे में बड़ी अच्छी तस्वीर छपी थी। जिसमें एक दरवाजे पर लिखा था "आप घर छोड़ चुके हैं" और दूसरे पर लिखा था "वेलकम टू लाइफ।" एक तरह  से यह मूवमेंट लोगों को राजनीति में सीधे सक्रिय होने का एहसास कराने वाला था जो लोग इसमें शामिल हो रहे थे वह नए उत्साह से भरे हुए थे। 2012 में फिलाडेल्फिया में "ओकूपाई द हुड" शुरू हुआ था।
      शाहीन बाग के इसी प्रदर्शन के बीच गणतंत्र दिवस भी आया। फूल बरसाते   हेलीकॉप्टर और राजपथ पर निकली झांकियों के बीच फूल से महरूम शहीन बाग की झांकी देखकर  वर्षों पहले लिखी  हरिशंकर परसाई की कविता "सत्यमेव जयते" याद आती है, जिसमें कहा गया है कि "यह हमारा मोटो है लेकिन झांकियां झूठ बोलती हैं।" इन सबके बावजूद मोदी जी का यह कहना कि "यह प्रदर्शन  संजोग नहीं एक प्रयोग है," बिल्कुल सही लगता है। क्योंकि इस प्रदर्शन का असर हमारे समाज पर बहुत दिनों तक रहेगा। इस तरह के प्रदर्शन अक्सर समाज के सोच को बदलते हैं और वर्चस्व स्थापना की ओर कदम बढ़ाने के लिए उकसाते हैं। जब -जब भी इस तरह के सार्वजनिक प्रदर्शन हुए हैं तब -तब व्यवस्था प्रभावित हुई है। भारत में इस तरह का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन सिपाही विद्रोह के बाद लोगों का अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर आना था। उसके बाद नमक आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन , जयप्रकाश के संपूर्ण क्रांति आंदोलन इत्यादि। सब में व्यवस्था को प्रभावित होते देखा गया है और सारे इस तरह की आंदोलन अपने आप में एक प्रयोग के तौर पर थे। वह प्रयोग व्यवस्था को प्रभावित करने वाला था। शाहीन बाग का यह प्रदर्शन एक वैसा ही प्रयोग है। लेकिन इस प्रयोग में समाज को और उसके सौहार्द को दो हिस्से में बांटने  की साजिश दिखाई पड़ती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय रहते हैं देश की जनता को चेतावनी दी है।
   इस आग को राख से बुझाइए
इस दौरे सियासत का अंधेरा मिटाइए।


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