मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और कई आतंकी कार्रवाई को अंजाम देने वाले कुख्यात आतंकी हाफिज सईद को आतंकवाद के लिए नाजायज फंडिंग के दो अलग-अलग मामलों में साढे़ 5 साल की अलग-अलग सजा सुनाई गई। यह दोनों सजाएं एक साथ शुरू होंगी। पाकिस्तान में मेलजोल और शांति के पैरोकार के रूप में मीडिया में प्रचारित हाफिज सईद को लाहौर के आतंकवाद विरोधी अदालत ने लाहौर और गुजरांवाला में दायर दो मामलों में सजा सुनाई। हाफिज सईद जमात-उद-दावा का प्रमुख है और उसका साथी जफर इकबाल दोनों पर आतंकवाद के लिए गैर कानूनी ढंग से धन इकट्ठा करने और मुहैया कराने का आरोप है। हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा पर बंदिशें हैं और उन पाबंदियों के बावजूद उसने पाकिस्तान में अपनी कारगुजारियां बंद नहीं की। हालांकि सईद और उसके साथी ने इन आरोपों को गलत बताया है और कहा है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण यह सब हुआ है। सईद की गिरफ्तारी साल भर पहले पंजाब के लाहौर में हुई थी और पंजाब पुलिस के काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट ने पिछले साल 17 जुलाई को हाफिज सईद और उसके संगठन के नेता जफर इकबाल को पंजाब के शहर गुजरांवाला से गिरफ्तार किया था।
हालांकि इस सजा के बावजूद पाकिस्तान के कट्टरपंथी धार्मिक नेता सईद को सुरक्षा देने की बात कर रहे हैं। पाकिस्तान के गृह राज्य मंत्री शहरयार अफरीदी मिल्ली ने कई नेताओं के साथ मिलकर इस पर बात की है। सईद की पार्टी को चुनाव आयोग से मान्यता मिलनी थी लेकिन नहीं मिली। पाकिस्तानियों को संदेह है कि अमेरिकी दबाव के कारण ऐसा हुआ है। पाकिस्तान के कुछ मंत्रियों का मानना है कि हाफिज सईद पाकिस्तान और धर्म के हक में है। इसलिए उस का साथ देना जरूरी है। वे उसे संसद में लाना चाहते हैं।
अब सईद को सजा मिल गई है। लेकिन जबसे उसे गिरफ्तार किया गया तब से इसमें अमेरिका की भूमिका पर उंगली उठाई जा रही है। उसकी गिरफ्तारी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की वाशिंगटन यात्रा से कुछ दिन पहले हुई थी माना जा रहा है इस कार्रवाई से पाकिस्तान संदेश देना चाहता था कि वह आतंकियों - चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई में जुटा हुआ है। इस कार्रवाई पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया था कि 10 साल की तलाश के बाद मुंबई हमलों के कथित मास्टरमाइंड को पाकिस्तान में सजा दे ही दी। जब से हाफिज सईद को गिरफ्तार किया गया है तब से आलोचक इस कार्रवाई पर संदेह की नजर रखे हुए हैं। रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन के मुताबिक पाकिस्तान ने भले ही उस पर कार्यवाही की है लेकिन उसकी नीति में कोई बुनियादी परिवर्तन आया हो इसके संकेत नजर नहीं आ रहे हैं। अभी यह कहना जल्दी बाजी होगी कि सजा पूरी करेगा या नहीं इसके पहले भी कई बार देखा गया है कि जब दबाव पैदा होता है तो पाकिस्तान कुछ इस तरह की कार्रवाई करता है और जब समय के साथ दबाव कम होने लगता है तो वह अपने आप मामला खत्म हो जाता है। पिछले 15-20 सालों में पाकिस्तान की ओर से ऐसी कार्रवाई या करीब 6 या 7 बार हो चुकी है। मुंबई हमलों के बाद भी हाफिज सईद को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद कई बार उसे हिरासत में लिया गया और नजरबंद किया गया। कुछ दिन मुकदमा चला कर छोड़ दिया गया। साल 2008 में जब सबसे पहले हाफिज सईद और उनके सहयोगियों पर कार्रवाई हुई थी तो उस समय भी ऐसा लगा था अब कड़ी कार्रवाई होगी लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। इसलिए किसी भी एक कार्रवाई से यह मान लेना कि पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद का समर्थन करने वाले इस संगठन पर या ऐसे संगठनों पर ठोस कार्रवाई की शुरुआत होगी यह गलत है। इमरान खान बेहद चुनौतीपूर्ण हालात में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे और उन्होंने वादा किया था नए पाकिस्तान का। लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं रहा है। इस समय पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव है। आईएमएफ और फाइनेंशियल फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स पाकिस्तान पर लगातार दबाव बन रहा है। टास्क फोर्स ने तो अक्टूबर तक समय दिया था यही वजह है कि पाकिस्तान ने पिछले दिनों आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले संगठनों की संपत्तियों और अकाउंट को जप्त करने और फ्रिज करने की कार्रवाई की। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया।
वैसे रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की कार्रवाई दिखावा है। केवल हाफिज सईद के संगठन ही नहीं लश्कर-ए-तैयबा और फलाहे इंसानियत जैसे संगठनों पर भी अर्से से मुकदमे चल रहे हैं। लेकिन, कोई नतीजा नहीं निकला है। यह भी वैसा ही होगा। हाल के मामलों से पता चला है कि पूरी दुनिया में स्वीकार्य आतंकवाद की अवधारणा को पाकिस्तान ने पहली बार स्वीकार किया है। पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों को विभिन्न प्रकारों से बांटता था ,जैसे जो पाकिस्तान में एक्टिव हैं या नहीं और जिन से सीधे पाकिस्तान को खतरा है या नहीं। पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की हालिया बैठक में पाकिस्तान ने कहा था यह संगठन आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं है। इनसे ज्यादा खतरा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या आईएसआईएस जैसे खतरनाक समूहों से है। हालांकि वैश्विक समुदाय का मानना है की इन सभी संगठनों से समान तरह के खतरे हैं। आज जो अंतरराष्ट्रीय स्थिति है इसमें पाकिस्तान को अपनी नीतियों में बदलाव लाना ही बेहतर होगा ताकि उसे वैश्विक दबाव के सामने झुकना ना पड़े और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह अलग-थलग नजर नहीं आए। बेहतर होगा पाकिस्तान अन्य संगठनों पर भी कार्रवाई करे। जब तक वैसा नहीं करता है तब तक उस पर वैश्विक दबाव बना रहेगा।
Thursday, February 13, 2020
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