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Tuesday, February 11, 2020

अब चुनाव में लड़ाई लंबी होनी चाहिए

अब चुनाव में लड़ाई लंबी होनी चाहिए 

दिल्ली में एक बार फिर "कमल" का सपना चकनाचूर हो गया और स्वप्न जो फूल से झरे थे उन पर झाड़ू फिर गई।  केजरीवाल का "अरविन्द " तीसरी बार दिल्ली में खिल रहा है। अरविन्द केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बन रहे हैं। यह करिश्मा से कम नहीं है।  एक ही व्यक्ति लगातार तीसरी बार देश के सबसे महत्वपूर्ण और सजग विधानसभा  में सरकार बनाने जा रहा है। दिल्ली कहते हैं दिलवालों का शहर है और लोग अपनी बातों का एक साथ दबंग अंदाज में खुलकर इजहार करते हैं। केंद्र सरकार की लगातार कोशिशों के बावजूद दिल्ली उसके हाथ नहीं लग रही है। चुनाव के पहले एक सॉनेट बड़ा प्रचारित हुआ था,

निकले करने विकास सूरज की सुर्ख गवाहीमें
आज खुद टिमटिमा रहे जुगनू से नौकरशाही में

लेकिन, अरविंद केजरीवाल ने यह प्रमाणित कर दिया कि वह जुगनू से नहीं टिमटिमा रहे हैं। इस चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण यह जानना है कि भाजपा के विशाल आकार और पूर्णत: साधन संपन्न होने के बावजूद वह क्यों पराजित हो गई और तुलनात्मक रूप में बहुत छोटी पार्टी "आम आदमी पार्टी " कैसे जीत गई? बेशक इसकी वजह अरविंद केजरीवाल हैं। 2019 के चुनाव में पराजय के बाद अरविंद केजरीवाल ने बहुत महत्वपूर्ण सबक सीखी। दिल्ली में यह बात फैलाई गई "केंद्र में नरेंद्र मोदी  का कोई तोड़ नहीं है " और उसी संदर्भ में जब भी केजरीवाल वोटरों के बीच गए तो उन्होंने ने वोटरों को यह समझाने की कोशिश की कि " दिल्ली में केजरीवाल का कोई विकल्प नहीं है।"
   भाजपा की सबसे बड़ी कमी है कि विधानसभा चुनाव में पेश करने के लिए उसके पास वैसे विराट चेहरे नहीं है जैसे केंद्र में बैठे हैं। यही कारण था कि भाजपा को दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र ,हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों में भी धूल चाटनी पड़ी। यहां तक कि आम चुनाव से पहले राजस्थान चुनाव में भी ऐसा ही नारा था "वसुंधरा तेरी खैर नहीं, मोदी तुझसे बैर नहीं।" इन तमाम कारणों से यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा के लिए राज्यों में अच्छे नेता नहीं हैं। दिल्ली में पिछले चुनाव में भी भाजपा के समक्ष यही संकट था। हिंदी में एक कहावत बहुत लोकप्रिय है कि " दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है।" 2015 में किरण बेदी को पेश कर राजधानी में 70 में से 3 सीटों पर सिमटी भाजपा ने इस बार किसी को सामने रखने का जोखिम नहीं उठाया और केजरीवाल के मुकाबले ऐसे अनजान चेहरों को उतारा जिनके हारने से कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की सरगोशियों पर ध्यान दें तो इसके संकेत मिल सकते हैं दोनों दलों के बड़े नेताओं में चुपके-चुपके  ही सही लेकिन स्पष्ट कहा जा रहा था  कि वह केजरीवाल के मुकाबले किसी मजबूत कैंडिडेट को खड़ा करके उसको खत्म नहीं करेंगे। यानी ,उन्हें यह भरोसा था शायद ही जीत सकें।
     चमकीली कोठियों और चौड़े राजपथों की दिल्ली का बहुत बड़ा हिस्सा झुग्गियों और सिंगल बैडरूम की सीलन भारी कोठारिया में रहता है। सरकार के द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं और चीजों की जहां उच्च मध्यवर्ग आलोचना करता है वही यह निम्न मध्यवर्ग और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले मजदूरों के किए एक बहुत बड़ी नेमत है या फिर उनके बीच खूब चलते हैं। यह  वोटर झुग्गियों और अनधिकृत कालोनियों में रहते हैं। आम चुनाव में बुरी तरह पराजित होने के बाद केजरीवाल ने मुफ्त की चीजों का ऐलान करना शुरू कर दिया।जब उन्होंने बस और मेट्रो को महिलाओं के लिए मुफ्त करने की घोषणा की तो यह लगभग  धमाके की तरह था। महिलाओं के लिए बस फ्री कर दी मेट्रो में अभी तक यह सुविधा नहीं मिली है। इसके बाद इस तरह की कई घोषणाएं ,जिसमें सबसे महत्वपूर्ण 200 यूनिट बिजली की खपत पर जीरो बिल। यह घोषणा सोशल मीडिया से सड़क तक चर्चा का विषय रही और ऑटो वालों तक ने कहना शुरू कर दिया "केजरीवाल मेरा हीरो, बिजली का बिल मेरा जीरो।" जिन्होंने पिछले चुनाव के बाद दिल्ली की यात्रा की है उन्होंने ऑटो के पीछे स्लोगन को लिखा देखा होगा और स्लोगन से एक खास वर्ग के लोगों की भावनाओं का साफ साफ पता चलता है।  इस बार वोटों की गिनती में यह भावनाएं वोट में बदलती देखी गई, फलस्वरूप केजरीवाल तीसरी बार सीएम बन गए। हाल में देश में कुछ खासकर दिल्ली में कुछ घटनाएं हुईं। जिनमें से सी ए ए और अन्य नागरिकता संबंधी  से उन मुद्दों को राष्ट्र प्रेम के मुद्दे में बदलने में लगी भाजपा दिखी। लेकिन केजरीवाल ने सारे सकारात्मक प्रयोग किए।  बिजली, पानी, स्कूल, स्वास्थ्य इत्यादि को अपना मुद्दा बनाया। आप  ने पूरा चुनाव मुद्दों पर लड़ा। वह  जैसे मसले को अखबार बनाते रहे और आदमी पार्टी वायदे पूरे करने पर काम करती रही। वोटरों को भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दों की जगह 'आप' के स्थानीय मुद्दे ज्यादा पसंद आए। यद्यपि भाजपा ने कैंपेन में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन 'आप ' ने लगभग रोजाना प्रेस कॉन्फ्रेंस करके एक टेंपो बनाए रखा। 'आप' ने भारतीय चुनाव अभियान प्रणाली में एक नया अध्याय जोड़ा कि आज के चुनाव में प्रचार यानी लड़ाई लंबी लड़नी होगी। कुछ हफ्तों या पखवाड़े में लड़ाई खत्म नहीं होती है।  यही कारण है कि 'आप' ने चुनाव की घोषणा होने से पहले से अपना अभियान आरंभ कर दिया और उसे जारी रखा। पिछले दो चुनावों में बुरी तरह पराजित होने के बावजूद कांग्रेस ने कोई सबक नहीं सीखा।  उसने लगभग हथियार डाल दिए।
    केजरीवाल ने चुनाव से ठीक पहले हनुमान चालीसा का पाठ किया जिसकी चर्चा बहुत है। हालांकि यह चर्चा नेगेटिव है फिर भी यह कहा जा सकता है की बेशक उनकी सफलता यह बताती है की किसी काम के पहले अगर हनुमान चालीसा पढ़ी जाए तो सफलता जरूर मिलती है:
       प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं
     जलाधि लांघ गए अचरज नाहीं


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