प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए कहा कि देश के विभाजन के लिए सत्ता का लोभ कारक तत्व है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू का नाम लिए बिना कहा कि किसी को प्रधानमंत्री बनना था सिर्फ इसलिए हिंदुस्तान का बंटवारा कर दिया गया और जमीन पर लकीर खींच कर एक पाकिस्तान और एक हिंदुस्तान बना दिया गया। पाकिस्तान में लाखों हिंदुओं और सिखों पर जुल्म और जबरदस्ती हुई इस जुल्म और जबरदस्ती की कल्पना आज की पीढ़ी नहीं कर सकती है। वह नागरिकता संशोधन कानून के संदर्भ में बोल रहे थे।
जिन्होंने भारत के इतिहास को गंभीरता से पढ़ा होगा और समझा होगा वे इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि बंटवारे के लिए जिम्मेदार कौन था? 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के पूर्व देश के राजनीतिक क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा था और मुस्लिम लीग एक ताकतवर प्रतियोगी के रूप में उभर रही थी। भारत छोड़ो आंदोलन के बाद से ही स्थितियां बदलने लगीं। जिन्ना के पक्ष में और मुस्लिम लीग के पक्ष में सत्ता का संतुलन झुकने लगा। गांधी को अपनी ज़िद से हटना पड़ा। के एम मुंशी ने अपनी पुस्तक "इंडियन कांस्टीट्यूशनल डेवलपमेंट" में लिखा है कि परिवर्तन यानी मुस्लिम लीग के पक्ष में सत्ता के संतुलन का कारण चाहे जो हो गांधी का पक्ष कमजोर होना बंटवारे का मुख्य कारण है। एक तरफ तो भारतीय राजनीति में गांधी की कोशिशों के बावजूद उच्च वर्गीय समुदाय का वर्चस्व था। उसमें निम्न वर्ग की यूं ही कोई खास कदर नहीं थी। वह केवल मरने मारने या फिर धरने प्रदर्शन के लिए उपयोग में लाए जाते थे। भारतीय समाज परंपराओं और धर्म से जुड़ा हुआ है ,इसलिए आज भी राजनीति की किसी बात को संप्रदायिकता या धर्म का एंगल दे दिया जाता है और बात बढ़ने लगती है। अभी सीएए तथा एनआरसी के बारे में ही देखिए। बात को कुछ इस तरह मोड़ दी गई है कि इससे देश के अल्पसंख्यक समुदाय को हानि होगी और लोगों ने इस पर विश्वास कर लिया तथा सरकार के विरोध में प्रदर्शन , उपद्रव इत्यादि होने लगे। कभी किसी ने सोचा नहीं या उन्हें सोचने का मौका नहीं दिया गया यह जो बात फैलाई जा रही है उसका उद्देश्य फिर दूसरा भी हो सकता है और वह दूसरा उद्देश्य क्या है? इसको जानना पहले जरूरी है। प्रधानमंत्री के लाभ समझाने के बावजूद ग्रास रूट अस्तर के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं उन्हें इस सच्चाई के बारे में बहुत कम जानकारी है या कहें सच उन तक पहुंचने ही नहीं दिया जाता है। उन तक पहुंचने के पहले इसके कितने पहलू बना दिए जाते हैं कि गंभीर कन्फ्यूजन हो जाता है।
ठीक बंटवारे के पहले समाज कि कुछ ऐसी ही स्थिति थी। सत्ता के लोभ में तत्कालीन कांग्रेसी नेता कुछ भी करने को तैयार थे। जिन बच्चों को काट दिया गया ,नौजवानों को फांसी पर चढ़ा दिया गया उन्हें शहादत का लबादा पहनाकर महिमामंडित किया गया। आज सरकार के खिलाफ कुछ ऐसे ही वातावरण की रचना करने की कोशिश की जा रही है। कोई यह नहीं सोचता कि इंसानी वजूद और पीड़ा प्रमुख है । आज शाहीन बाग और उस तरह के अन्य शहरों में प्रदर्शन को अगर राजनीति की इंटरप्ले के नजरिए से मूल्यांकन करें तो बात समझ में आएगी। इसका सच क्या है? यह कांग्रेस की आदतों में शुमार है। जब जब उसकी सत्ता को खतरा महसूस हुआ है तब तब उसने कुछ इसी तरह की सामाजिक साजिशों की रचना कर सत्ता को हथियाने की कोशिश की है। लोग इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं या समझते भी भी जानबूझकर अनजान बने हुए हैं कि किसी भी क्रिया के बराबर विपरीत प्रतिक्रिया होती है। नेहरू के भीतर सत्ता का लोभ पनपा और उसी के प्रतिक्रिया स्वरूप जिन्ना भी अपनी जगह पर अड़ गए। नतीजा हुआ कि भारत बंट गया और बंटवारे के नाम पर बनी नियंत्रण रेखा। उसकी लकीर से अभी भी हिंदुओं और सिखों का खून रिस रहा है।
मोहब्बत करने वालों में झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
Friday, February 7, 2020
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