देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को यह फैसला दिया के दागी उम्मीदवारों को चुनाव का टिकट देने के कारणों को स्पष्ट करना होगा और उनके संपूर्ण चुनावी इतिहास के बारे में अखबारों में विज्ञापन देने होंगे। राजनीति में अपराधियों की बढ़ती दखलंदाजी से पूरा का पूरा वातावरण है अपराधमय दिखने लगा था । अगर आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि स्थिति कितनी बिगड़ती जा रही है। भारत में 2004 में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की संख्या 24% थी जो 2009 में बढ़कर 30% हो गई और 2014 में यह संख्या 34% हो गई। हैरत होती है 2019 में यह अनुपात बढ़कर 41% हो गया। इसका मतलब है लगभग आधे लोग आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं।
आगे क्या होगा? लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उम्मीद की जाती है की ऐसे चलन पर रोक लगेगी। खुद को साफ सुथरा और अपराध से दूर बताने वाले यह राजनीतिज्ञ किस पैमाने तक अपराध के दलदल में फंसे हैं यह अंदाजा लगाना मुश्किल है। यह आंकड़े तो उनके हैं जो सजायाफ्ता हैं। अपराध शास्त्र के अनुसार सबसे खतरनाक होता है अपराध किस दिशा में सोचना। आपराधिक सोच वाले राजनीतिज्ञ देश के साथ कुछ भी कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट तो सिर्फ उन्हीं पर रोक लगा रहा है जो सजा पा चुके हैं। कोर्ट के इस फैसले से अपराधिक पृष्ठभूमि वालों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बेशक दूर रखने में मदद मिलेगी लेकिन इससे दूर होना बड़ा कठिन है। न्यायिक व्यवस्थाओं का ही नतीजा है कि अदालत से 2 साल से अधिक की सजा होते ही अब ऐसे सांसदों- विधायकों की सदस्यता समाप्त हो रही है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। देश की राजनीति को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले तत्वों से मुक्त करने की कल्पना को साकार करने के लिए राजनीतिक दलों के सक्रिय सहयोग की अपेक्षा की जाती है। लेकिन, किसी भी तौर पर सत्ता को हासिल करने की लालसा की वजह से यह लक्ष्य हासिल करने में कितनी सफलता मिलेगी यह तो आने वाला समय बताएगा।
इस लक्ष्य को हासिल करने की विदिशा में तरह-तरह के तर्क और कुतर्क दिए जा सकते हैं। लेकिन, इन तर्कों से जनता के बीच राजनीतिक दलों की छवि किसी भी तरह सुधर नहीं रही है । बल्कि जनता के बीच यह धारणा तेजी से बन रही है कि सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। कोई किसी से कम नहीं है। आज राजनीतिज्ञ का मतलब है दबंग होना है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 27 अगस्त 2014 के फैसले को देखना उचित होगा। जिसमें संविधान पीठ ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को सुझाव दिया था कि बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों तथा भ्रष्टाचार के आरोपों में अदालत में मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्तियों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि जब न्यायपालिका और प्रशासनिक सेवाओं में संदिग्ध छवि वाले व्यक्तियों की नियुक्ति नहीं हो सकती है तो सरकार में कैसे जगह दी जा सकती है। लेकिन, अदालत के इस सुझाव की ओर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई गई। चुनाव आयोग और अदालत में चुनावी प्रक्रिया में दागी उम्मीदवारों की भागीदारी पर अंकुश लगाने के लिए कई आदेश दिए इनकी वजह से हालात कितने बदले हैं यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। लेकिन अभी भी चुनाव में ऐसे नेताओं की जमात दिख सकती है जिन पर गंभीर किस्म के अपराध के आरोप हैं। आपराधिक छवि वाले नेताओं के कारण ही आपराधिक मामलों के निपटारे में देरी हो रही है और देश की लगभग हर अदालत में लंबित मामलों की फेहरिस्त और लंबी होती जा रही है। अदालत या चुनाव आयोग चाहता है राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने के लिए अपना उम्मीदवार नहीं बनाए लेकिन इस विषय पर राजनीतिक दलों में कोई भी आम सहमति नहीं देखी जाती है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के विश्लेषण के मुताबिक 17 वीं लोकसभा चुनाव 1070 प्रत्याशियों के खिलाफ बलात्कार ,हत्या ,हत्या के प्रयास महिलाओं के प्रति अत्याचार जैसे गंभीर अपराधों के मामले लंबित होने की जानकारी उनके हलफनामे में थी। इनमें भाजपा के यानी कह सकते हैं सत्तारूढ़ दल के 124 ,कांग्रेस के 107, बसपा के 60 ,सीपीएम के 24 और 292 निर्दलीय उम्मीदवार थे। स्वच्छ सरकार बनाने का दावा करने वाली भाजपा के 67 में से 17 और कांग्रेस के 66 में से 13 उम्मीदवार दागी छवि की है बसपा भी पीछे नहीं है इसके 66 प्रत्याशियों में से 10 खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।
आपराधिक छवि वाले व्यक्तियों को चुनाव में टिकट नहीं देने के सवाल पर राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं है। ऐसी स्थिति में उम्मीद की जानी चाहिए अनुच्छेद 370 से अधिकांश प्रावधान खत्म करने और नागरिकता संशोधन कानून बनाने जैसे कठोर कदम उठाने वाली केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मद्देनजर कानून में अपेक्षित संशोधन कर उन लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान करेगी जिनके खिलाफ गंभीर प्रकार के अपराध के आरोप हैं। यही नहीं , अगर सभी राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सत्यता से पालन करें तो देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम होगा।
Friday, February 14, 2020
चुनाव में दागी उम्मीदवारों की बढ़ती तादाद पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
चुनाव में दागी उम्मीदवारों की बढ़ती तादाद पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
Posted by pandeyhariram at 11:36 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment