इन दिनों फेसबुक में या अन्य सोशल मीडिया में कई क्लिपिंग वायरल हो रही है जिसमें निर्भया कांड के दोषियों को किस तरह सजा दी जाए इसके बारे में तरह-तरह के मसाले परोसे जा रहे हैं। लेकिन सच तो यह है कि निर्भया कांड के अपराधियों को फांसी देने की सजा कानून के दांव पेच में उलझ के रह गई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी एक बार याचिका खारिज कर दी है। कब यह सजा व्याहारिक होगी यह कहना बड़ा मुश्किल है। लेकिन, अगर आंकड़े देखें तो 2004 से लेकर अब तक भारत में केवल चार लोगों को फांसी दी गई है। आखरी बार 2015 में फांसी हुई थी। इन 4 लोगों में 3 आतंकवाद के दोषी थे और एक नाबालिग से बलात्कार का दोषी था। विशेषज्ञों का मानना है कि निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर दिया लेकिन इससे अपराध कम नहीं होंगे इससे एक ऐसी स्थिति बनेगी जो सुधारों को वस्तुत: लागू करने से सरकार का ध्यान हट जाएंगे जिससे बलात्कार के मामलों में अभियोग चलाने में सुधार आ सकता है ।
नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के जेल के आंकड़ों के अनुसार 2018 में 126 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई। जबकि 2017 में 121 दोषियों को सजा सुनाई गई थी। यानी एक वर्ष में 53% ज्यादा भारत में मौत की सजा रेयरेस्ट ऑफ द रेयर यानी दुर्लभतम मामलों में सुनाई जाती है। अदालतों ने इस विकल्प का उपयोग विभिन्न मामलों में किया है, जैसे हत्या ,आतंकवाद, अपहरण के साथ हत्या, दंगे के साथ हत्या ,नशीले पदार्थ से जुड़े अपराध और बलात्कार के साथ हत्या से संबंधित मामले शामिल हैं। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की वार्षिक रिपोर्ट 'डेथ पेनेल्टी इन इंडिया" की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में मौत की सजा पाने वाले अपराधियों में से 40% से अधिक और 2019 में इनमें से आधे 52.9% एवं अपराधों और हत्या के दोषी थे। जनता की चिंताओं को दूर करने के लिए अदालत ने यही एक आसान रास्ता चुना है। अगर अपराध शास्त्रीय दृष्टिकोण से देखें तो हिंसा के मामले कम हों ऐसी व्यवस्था साकार नहीं कर पा रही है ना ऐसा सामाजिक सुधार हो पा रहा है। कोलकाता हाई कोर्ट वकील एवं समाजसेवी का मल्लिका राय चौधरी के मुताबिक "2019 में सरकार ने पॉक्सो एक्ट 2012 में संशोधन किया था और इसमें व्यवस्था की गई थी 12 साल से कम उम्र के बच्चों के बलात्कार के मामले में सजा-ए-मौत का प्रावधान जोड़ा जा सके।" 2 महीने पहले हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक के बलात्कार के मामले में आरोपी चार व्यक्तियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया इसे न्यायिक कार्रवाई के बगैर हत्या की संज्ञा दी गई थी। बाद में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने एक विधेयक पारित कर बलात्कार के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया था। मौत की सजा पर विधि आयोग की 2015 रिपोर्ट के मुताबिक यह साबित नहीं किया जा सकता कि उम्र कैद की तुलना में मौत की सजा एक कड़ा तरीका है।
निर्भया कांड के बाद कई कानूनी सुधार और बदलाव हुए इनमें क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट 2013 भी शामिल था। पीछा करना, अंग प्रदर्शन ,एसिड अटैक और यौन उत्पीड़न इसके दायरे में लाए गए। इन सुधारों से बलात्कार के अपराधियों को दर्ज करने के मामलों में सुधार आया। परंतु अपराधियों की गिरफ्तारी और उनका दोष साबित करने की दर में बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया। 2019 के एक अध्ययन के अनुसार अगस्त 2019 में बलात्कार के मामले में दोषी करार दिए गए लोगों की संख्या 2007 से कम हो रही है साल 2006 में यह 27% थी 2016 में या 18.9 प्रतिशत हो गई।
31 दिसंबर 2019 तक देश में मौत की सजा पाए 378 कैदी थे। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के रिपोर्ट के मुताबिक निचली अदालतों में 2019 में 102 मामलों मैं मौत की सजा सुनाई थी जबकि पिछले साल की संख्या 162 थी। 2019 में सुनाई गई मौत की सजा में से आधे से ज्यादा यानी 54 अपराधियों की संख्या ऐसी थी जिन पर यौन अपराधों से जुड़ी हत्याओं की सुनाई गई थी। ऐसे 40 मामलों में पुलिस की उम्र 12 साल से कम थी। यहां एक दिलचस्प तथ्य सामने आता है कि अपमान और कानून लागू करने वाले अधिकारियों की लापरवाही के कारण बलात्कार के पीड़ित लोग रिपोर्ट बहुत कम दर्ज कराते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक अपराध करने वाले पीड़ित की जानकार हुआ करते हैं और 50% तो पीड़ित के दोस्त परिवार या पड़ोसी हुआ करते हैं इसलिए मामले कम दर्ज होते हैं।
Sunday, February 9, 2020
यौन अपराधों में मौत की सजा बढ़ी पर मामले लंबित
यौन अपराधों में मौत की सजा बढ़ी पर मामले लंबित
Posted by pandeyhariram at 5:19 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment