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Friday, February 21, 2020

मोदी की भाजपा के नए मतदाता

मोदी की भाजपा के नए मतदाता 

एक तरफ बहुत तेजी से मुस्लिम आबादी के विकास का भय फैलाया जा रहा है। कई नेताओं पर  मुस्लिमों की तरफदारी  के आरोप लगाए जा रहे हैं दूसरी तरफ आंकड़े बता रहे हैं की  मोदी की भाजपा के अधिकांश मतदाता बेशक धार्मिक नहीं है लेकिन वे बहुसंख्यक वर्ग के हैं। भारतीय जनता पार्टी की 2019 की शानदार चुनावी सफलता अप्रत्याशित थी। लेकिन उसका अगर उपलब्ध आंकड़ों से आधार पर समाज वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो पता चलेगा यह भारतीय राजनीति में एक व्यापक वैचारिक परिवर्तन का नतीजा था। भाजपा विजय को कुछ लोग तात्कालिक संदर्भ के चश्मे से देखते हैं। लेकिन, इसके  संरचनात्मक परिवर्तन के कारक तत्वों को नहीं देख पाते हैं। इतिहास के गलियारों  में जरा पीछे लौटे तो 1857 के सिपाही विद्रोह के बाद एक ऐसा ही सामाजिक परिवर्तन हुआ था। जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय मध्यवर्ग की उत्पत्ति हुई थी। आज लगभग डेढ़ शताब्दी के बाद कुछ वैसे ही कारकों की उत्पत्ति हुई है।  सामाजिक बदलाव दिखाई पड़ने लगे हैं। मध्यवर्ग के विस्तार और धार्मिक हिंदू राष्ट्रवाद से इतर एक नए प्रकार के जातीय राजनीति बहुसंख्यक वाद ने  भाजपा से ऊंची जाति वालों की पार्टी के ठप्पे को हटाने में  मदद की है। भाजपा विपक्षी दलों पर अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण आरोप प्रचारित करती है और खुद सबके साथ समान व्यवहार के सिद्धांत पर चलने का दावा करती है। भाजपा अक्सर कहती है कि वह किसी का तुष्टिकरण नहीं करती है। उसका यह प्रचार उन हिंदुओं के समर्थन को हासिल करने में सहायक हुआ है जिनका मानना है कि भाजपा से पहले जितने भी दल थे वे सब के सब मुस्लिम तुष्टीकरण के तरफदार थे। इसमें कोई आश्चर्य ही कि भाजपा के प्रचार को मुसलमानों और ईसाइयों के संदर्भ में पूर्वाग्रह से ग्रसित कहा जा सकता है। यह जो नया सामाजिक बदलाव हुआ उसके कारक तत्व थे, नरेंद्र मोदी की बेशुमार लोकप्रियता, भाजपा की संगठनात्मक बढ़त, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे और गरीबों के बारे में सोचने वाली एक सरकार की छवि।  इसी वैचारिक बदलाव के दायरे में  भाजपा राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर बढ़ चढ़कर बोलती है और उसे अपनाती  भी रही है। यह  मसले भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के अनुरूप थे। साथ ही अधिकाधिक मतदाताओं तक सीधे पहुंचने के लिए भाजपा द्वारा सोशल मीडिया के प्रयोग और कल्याणकारी योजनाओं के फायदे, परिवारों और पार्टी के बीच की कड़ी साबित करने में पार्टी की सफलता इसकी राजनीति के वैचारिक धरातल में बदलाव को उजागर करते हैं। शुरुआत कहां से हुई यह जानना ज्यादा जरूरी है। सबसे पहले मतदाता की वैचारिक सोच में ढांचागत परिवर्तन हुआ। भाजपा ने खुद को प्रचारित करना आरंभ किया और जहां उसकी छवि ऊंची जाति वाले पार्टी की थी। वहीं व्यापक हिंदू समाज की छवि बनने लगी। यह सवाल उठता है कि भाजपा के नए मतदाता कौन हैं? इसके लिए नेशनल इलेक्शन स्टडीज (एन ई एस) 2019 के तीन सवालों का उपयोग किया जा सकता है। एन ई एस में पूछा गया है कि 2019 और 2014 के चुनाव में उत्तरदाता  ने किसको वोट दिया था? क्या वह खुद को किसी पार्टी विशेष का पारंपरिक समर्थक मानता है? सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार इन सवालों का जवाब देने वालों में से लगभग 13% ने खुद को भाजपा का परंपरागत मतदाता कहा है। इसके बाद लगभग 22% ने खुद को मोदी के शीर्ष की ओर बढ़ने के बाद भाजपा का समर्थक बताया और 11% भाजपा के निवर्तमान समर्थक थे। भाजपा के नए मतदाताओं के पिछड़ी जातियों के ग्रामीण अर्ध शिक्षित और नौजवान होने की अधिक संभावना है। 2019 में भाजपा के लिए पहली बार वोट डालने वालों के स्वरूप भारतीय समाज के प्रतिबंधित करते हैं और इसका एकमात्र अपवाद है धार्मिक अल्पसंख्यक। परंपरागत रूप से उच्च और मध्यम वर्ग के लोग भाजपा के समर्थन में थे।2014 में यह स्थिति बदल गई। 2019 आते-आते हालात और बदले तथा गरीब तबका भी भाजपा से जुड़ गया। यही नहीं भाजपा ने सामाजिक बदलाव की दिशा में एक और काम किया। वह कि इसने अपने वोटरों के बीच लैंगिक भेदभाव के अंतर को खत्म करने में सफलता पाई। पहले महिला वोटरों  में भाजपा की लोकप्रियता कम थी। यही नहीं भाजपा का समाज सुधार आयु पिरामिड को भी ज्यादा बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करता है। इतना ही नहीं भारत में बहुत व्यापक जनसांख्यिकी परिवर्तन हो रहा है और हर क्षेत्र में जो बदलाव हो रहे हैं वह चिताओं पर असर डाल रहे हैं।
      गुरुवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रांची में कहा कि राष्ट्रीयता को हिंदू वाद के साथ जोड़ा जा रहा है। लेकिन एन ई एस में सवाल का उत्तर देते हुए बताया गया है  कि सर्वे में ऐसा कुछ नहीं पाया गया है। इन निष्कर्षों के आधार पर कहा जा सकता है कि भाजपा की 2019 की विजय सिर्फ चुनाव पूर्व तात्कालिक कारणों से नहीं हुई बल्कि इसमें भारतीय राजनीति और समाज में जारी बदलाव की भूमिका थी और यह परिवर्तन लंबे काल तक चलता रहेगा और इससे यह उम्मीद की जा सकती है अगले चुनाव में भी भाजपा को ही सफलता मिलेगी।


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