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Thursday, February 6, 2020

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ राष्ट्रीय एकता का प्रतीक

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ राष्ट्रीय एकता का प्रतीक 
अयोध्या में श्री राम मंदिर को लेकर लंबी कानूनी और सामाजिक लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले के 88 दिनों के बाद ट्रस्ट की घोषणा कर दी गई। इसके लिए 9 फरवरी तक का समय दिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को संसद को यह बताया श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन कर उसे अयोध्या कानून के तहत अधिग्रहित 67.70 एकड़ भूमि सौंप दी गई है। राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण में यह ट्रस्ट अपनी भूमिका निभाएगा और निर्माण के मामले में पूरी तरह स्वतंत्र रहेगा। जिसमें 15 ट्रस्टी होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी दलों से समर्थन की अपील की है और कहा है कि भारत के लोग एक परिवार के हैं। मंदिर में 1 लाख 75 हजार घनफुट पत्थर लगेगा। लगभग एक लाख घनफुट पत्थरों को तराशा जा चुका है। ट्रस्ट का निर्माण का निर्णय एक ऐसे समय में आया है जब दिल्ली के चुनाव होने वाले हैं और लोग इसके राजनीतिक उद्देश्य की भी चर्चा कर रहे हैं। वस्तुतः इस मामले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का रुख भी नरम है। उन्होंने राम मंदिर ट्रस्ट को 67.70 एकड़ भूमि हस्तांतरित किए जाने के सरकार के फैसले को शानदार बताया है और कहा है की अच्छे काम के लिए कोई वक्त नहीं होता।
       अब यहां सबसे स्वाभाविक प्रश्न है कि राम जन्म भूमि ट्रस्ट के पास मंदिर निर्माण के लिए उपयुक्त धन है या नहीं और अगर धन है तो कितना है। उसके पास कितना पैसा जमा है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर सब कोई जानना चाहेगा। राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाली संस्था विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में भव्य मंदिर के निर्माण के उद्देश्य से 1985 में श्री राम जन्मभूमि न्यास की स्थापना की थी और यह न्यास मंदिर को मिलने वाले चंदे का प्रबंधन करता रहा है। जैसी कि खबर है ट्रस्ट के पास लगभग 13 करोड़ रुपए इस उद्देश्य के लिए जमा हैं। जिनमें लगभग साढे आठ करोड़ रुपए कॉर्पस फंड में और साढे चार करोड़ रुपए नन कॉर्पस फंड में जमा हैं। हां एक तथ्य काबिले गौर है कि ट्रस्ट को 2018 - 19 में करीब 45 लाख रुपए का चंदा मिला था और उसके पिछले वर्ष इस संस्था को डेढ़ करोड़ रुपए मिले थे। 1990 में विश्व हिंदू परिषद ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया था कि उसे 1989 के आंदोलन के दौरान राम मंदिर के लिए 8 करोड़ 29 लाख रुपए का चंदा मिला था जिसमें उसने एक करोड़ 63 लाख रुपया खर्च कर दिए थे। अभी हाल में जारी एक प्रेस रिलीज में विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि वह राम मंदिर निर्माण के लिए कोई चंदा नहीं एकत्र कर रही है ,नाही इस तरह की उसने कोई अपील की है। दूसरी ओर अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट की कार्यशाला में अभी भी मंदिर निर्माण के लिए चंदा लिया जा रहा है। विश्व हिंदू परिषद के महासचिव मिलिंद परांडे के मुताबिक राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने 1989- 90 के बाद राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए कोई धन संग्रह की अपील नहीं की है और ना ही ऐसा कोई धन संग्रह किया है। उन्होंने कहा कि धन का खर्च न्यास की देखरेख में उद्देश्य के अनुसार ही हुआ है। जो भी धन समाज ने स्वयं लाकर सौंपा है उसे ही स्वीकार किया गया है।
      हममें से बहुतों को याद होगा कि 80 के दशक में विहिप नेता अशोक सिंघल की अगुवाई में राम मंदिर आंदोलन चरम पर था और एक नारा एक गीत के रूप में प्रचलित था कि " सवा रुपैया दे दे भैया, रामशिला के नाम का , राम के घर में लग जाएगा पत्थर तेरे नाम का।" विहिप ने सब को बताया था कि इस पैसे का उपयोग तब होगा जब मंदिर बनेगा।
       विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मंदिर निर्माण की मूल डिजाइन को ही माना जाएगा क्योंकि आंदोलन ने इसी डिजाइन को अनुमति दी है। उन्होंने कहा कि हर एक हिंदू को धन से और शरीर से इस मंदिर के निर्माण में सहयोग देने की आजादी है। आलोक कुमार ने कहा की हर एक व्यक्ति को कम से कम 11 रुपए दान देने को कहा जाएगा ताकि मंदिर निर्माण के लिए धन एकत्र हो। हर एक हिंदू को मंदिर निर्माण में हाथ लगाने का मौका दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि, राम मंदिर आंदोलन के दौरान जिन गांव ने रामशिला या ईंट दिया था 25 मार्च चैत्र नवरात्रि से 8 अप्रैल हनुमान जयंती के बीच राम उत्सव मनाने के लिए कहा जाएगा और वह राम मंदिर निर्माण के लिए शोभा यात्राएं निकालेंगे। आलोक कुमार ने कहा  अयोध्या में राम मंदिर बनने में लगभग 4 वर्ष लगेंगे और प्रयागराज की यात्रा करने वालों की राह में यह एक प्रमुख तीर्थ होगा।
उधर पूर्व मंत्री उमा भारती ने बाबरी विध्वंस पर एक विवादित बयान देते हुए कहा है कि अगर वह ढांचा नहीं गिरा  होता तो सच्चाई लोगों के सामने नहीं आती । अगर संरचना नहीं हटाई गई होती तो पुरातत्व विभाग की टीम महत्वपूर्ण सबूतों का पता नहीं लगा पाती। जब उनसे पूछा गया कि राम मंदिर निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले निर्णय का श्रेय किसे दिया जाना चाहिए तो उन्होंने कहा कि यह श्रेय माननीय सर्वोच्च न्यायालय को जाता है लेकिन जिन साक्ष्यों ने वास्तव में निर्णय का आधार बनाया वह 6 दिसंबर 1993 को अपनी जान गंवाने वालों के परिणाम थे। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण में 15 साल पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अयोध्या में विवादित भूमि की खुदाई की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर 2019 को अपने फैसले में कहा था अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे की संरचना इस्लामिक नहीं है। लेकिन पुरातात्विक सर्वेक्षण स्थापित नहीं कर पाए कि क्या मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को गिराया गया था।
    बुधवार को राम मंदिर ट्रस्ट की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही कि देश का हर नागरिक भारतीय है। प्रधानमंत्री के इस कथन से देश में एकता को बल मिलेगा और पारस्परिक सौहार्द को बढ़ावा मिलेगा। अगर इस दिशा में सभी सोचें तो भारत सच में महान बन जाएगा। प्रधानमंत्री की बात पर ध्यान देना जरूरी है। इस पर किसी तरह की राजनीति गलत होगी। क्योंकि यह देश की एकता और एकजुटता का प्रश्न है।  इस समय राष्ट्रीय एकजुटता ही सबसे प्रमुख है। ऐसे समय में राम मंदिर निर्माण के लिए कदम बढ़ाया जाना एक तरह से राष्ट्र निर्माण की ओर कदम बढ़ाने की तरह है। क्योंकि राम समस्त देशवासियों को एक साथ लेकर चलने और उनमें सौहार्द भरने के समर्थक थे। उन्होंने केवट को भी यह हक दिया की वह नाव देने से इंकार कर दे ,साथ ही शबरी के जूठे बेर भी खाए। राम भारतीय एकता के प्रतीक हैं और इस समय सबसे ज्यादा संकट भारतीय एकता पर है और प्रधानमंत्री की घोषणा एकता के भाव को  बढ़ावा देगी।
  वह राम न हिंदू हैं न मुसलमान हैं
    वह तो समूचा हिंदुस्तान हैं

 

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