वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को अपना दूसरा बजट पेश किया। अपने बजट भाषण में उन्होंने कहा "यह देश की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है।" वित्त मंत्री ने कहा कि ,हमारे देश की अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत है और जनता को मोदी सरकार पर पूरा भरोसा है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण दूसरी बार बजट पेश करने वाली भारत की पहली वित्त मंत्री हैं। इसके पहले इंदिरा गांधी ने एक बार 1970 का बजट पेश किया था। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा , 'इस सरकार को मिला यह प्रचंड जनादेश सिर्फ राजनीतिक स्थिरता के लिए नहीं ,देश के हर नागरिक की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है और यह बजट उन्हीं उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में उठाया गया कदम है। 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार ने आर्थिक नीतियों में बहुत बड़ा बदलाव किया। अब अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है ,महंगाई काबू में है और बैंकों में भी सुधार हुआ है।'
वित्त मंत्री का कथन सही है। क्योंकि जीएसटी की वजह से ट्रांसपोर्ट, लॉजिस्टिक में फायदा हो रहा है। यानी, इस पर खर्चे कम पड़ रहे हैं और खर्चे कम पड़ने से चीजों की कीमतें काबू में है। इससे लोगों के पास पैसे बच रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक आम आदमी अपने परिवार के मासिक खर्च का लगभग 4% हिस्सा बचा पा रहा है। यही नहीं सरकार ने 60 लाख नए टैक्स दाता जोड़े हैं । सरकार ने लोगों के पास सीधा फायदा पहुंचाने का प्रयास आरंभ किया है। जिससे बीच की दलाली खत्म होती जा रही है और लोग सीधे सरकार से जुड़ रहे हैं। "मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिम गवर्नेंस" का जो सरकार का नारा है वह यहां साफ दिखाई पड़ने लगा है। कई कल्याणकारी योजनाएं जैसे, आयुष्मान ,उज्ज्वला, इंश्योरेंस प्रोटेक्शन तथा सस्ते मकानों जैसी योजनाएं लोगों को सीधा लाभ पहुंचा रही हैं। यह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच रही है। देश में 27.1 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए। वित्त मंत्री ने कहा कि हमारी सरकार किसानों की मदद कर रही है। बजट में जो प्रावधान हैं उसके अध्ययन से पता चलता है कि इस बार 6. 11 करोड़ किसानों पर फोकस किया गया है। वित्त मंत्री के अनुसार किसानों के बाजार को उदार बनाने की जरूरत है। कृषि उपज लॉजिस्टिक में ज्यादा निवेश की जरूरत है। बजट में इसके लिए 16 एक्शन प्वाइंट्स बनाए गए हैं। 20 लाख किसानों को सोलर पंप लगाने में सरकार मदद करेगी।
लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इस बजट से बहुत उम्मीदें थीं। सब से बड़ी उम्मीद तो यह थी कि अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाले रोड मैप सामने आएंगे और उम्मीदें पूरी होंगी। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है। वित्त मंत्री के दावों के बावजूद कर संग्रह में धीमापन आया है जिससे विनिवेश की प्रक्रिया को आरंभ किया जा रहा है। इस कारणवश सरकार की खर्च करने क्षमता बहुत कम हो गई है। अगर सरकार के खर्च करने की क्षमता में थोड़ी वृद्धि आती तो अर्थव्यवस्था में भी तेजी आ सकती थी। लेकिन ऐसा शायद नहीं हो सका है। बजट से उम्मीदें तो बहुत थी लेकिन वह बाधाओं के बोझ से दबा हुआ है। इसमें इरादे और प्रस्ताव भरे हुए हैं। राजकोषीय घाटा है। इस घाटे के बावजूद योजनाओं में खर्च करने के लिए सरकार जो पैसा दे रही है वह बहुत कम है। मध्यावधि में स्थाई आजीविका के जरिए अधिक से अधिक लोगों को आय अर्जित करने में सक्षम बनाकर अर्थव्यवस्था में वृद्धि की जा सकती है जिससे प्रधानमंत्री का सबका साथ सबका विकास वादा पूरा होता है। यहां तक कि ऊंची विकास दर वाले वर्षों में भी अर्थव्यवस्था में नई नौकरियां नहीं पैदा होती। इकलौता बजट हमारी संरचनात्मक समस्या को हल नहीं कर सकता है। यह संकट इस बजट में भी है। प्रावधानों से नौकरियां पैदा होंगी लेकिन उनकी संख्या उतनी नहीं होगी जितनी जरूरी है।
देश में डॉक्टरों की कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए और अस्पताल बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना है। नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशंस के तहत रेजिडेंट डॉक्टरों की पर्याप्त क्षमता होगी। इसके अलावा युवाओं में रोजगार की क्षमता बढ़ाने के लिए डेढ़ सौ उच्च शिक्षा वाले संस्थानों में मार्च 2021 से अप्रेंटिसशिप कोर्स की शुरुआत होगी। साथ ही, देश में शहरी स्थानीय निकायों में इंटर्नशिप के अवसर दिए जाएंगे जिससे 1 साल में इंजीनियर तैयार हों। बजट में मोबाइल फोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण को लेकर प्रोत्साहन करने पर भी बल दिया गया है। जिससे फैक्ट्री की नौकरियां पैदा हो सकें। लेकिन इसमें क्या क्या होगा उसके बारे में बाद में बताया जाएगा। सरकार इलेक्ट्रिक सामानों और उससे निवेश के लिए अधिक नीतियों की घोषणा कर सकती है। जो अभी नहीं हो सकी है। इस बजट में जो सबसे बड़ी खुशखबरी है बैंकों में रखे पैसों को लेकर बीमा की रकम है । पहले धोखाबाजी या घाटे के कारण बैंक बंद होने जमा करने वालों को केवल एक लाख रुपए देने का वादा था जो बढ़ाकर 5 लाख कर दिया गया है।
सारे तर्कों के बावजूद बजट से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं बनी। बाजार रूठते नजर आए । ऐसा लगा कि बजट एक साधारण और नियमित किस्म की कवायद है और वार्षिक लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। जो बड़ी घोषणाएं हैं वह बाजार को नहीं पसंद आई। अमीरों पर चोट करने और इस तरह से गरीबों में काल्पनिक संतुष्टि का भाव भरने वाली यह कौन आए हैं इसके अलावा बजट में कुछ नहीं मिला। ऐसा लगता है कि अब आर्थिक सुधार किस्तों में आएंगे। इसके फैसले सरकार कभी भी ले सकती है। बजट में रक्षा क्षेत्र के आवंटन को बढ़ाया नहीं गया है। इसका मतलब है रक्षा क्षेत्र में कुछ खास होने वाला नहीं है। जबकि रक्षा पेंशन काफी बढ़ चुका है। वित्त आयोग खरीदारी के लिए निरंतर उपलब्ध एक कोष की स्थापना और संभवतः रक्षा शेष लगाने के विचार के अध्ययन के लिए कमेटी गठित करने को कह रहा है। अब इसकी घोषणा होगी। यह घोषणा किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में हो जाएगी और कोई भी आलोचना का जोखिम भी उठाएगा क्योंकि रक्षा की बात है। इस बजट में एक ही बात साहसिक कही जा सकती है। वह है निजीकरण के बढ़ाने की चर्चा। मोदी जी सुधारों के पक्ष में आर्थिक जोखिम नहीं उठाएंगे। बाजार के किरदार और पैसे वाले इस बात से अभ्यस्त हो चुके हैं। आय और संबंधित अपनी प्राथमिकताओं को बाजार अनुमानों पर हावी होने देंगे तो और तार्किक अपेक्षाएं निर्मित होंगी । इसलिए 1 फरवरी की सुर्ख़ियों से बाहर निकल कर पूरे साल की बड़ी तस्वीर देखने की की कोशिश होनी चाहिए।
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