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Wednesday, February 12, 2020

दिल्ली चुनाव से सबक

दिल्ली चुनाव से सबक

दिल्ली इतिहास से लेकर आज तक हमेशा खबरों में रही है। चाहे वह मुगलों के दिल्ली हो या अंग्रेजों की या कांग्रेसियों की या फिर आज के भाजपा की दिल्ली की। सबसे बड़ी खूबी है कि वह हर परीक्षा में एक नया सबक दे जाती है। चुनाव भी परीक्षा ही है ,फर्क यही है इस परीक्षा में जिसे लोकतंत्र की परीक्षा कहते हैं वहां इंसानों को तौला नहीं जाता है बल्कि गिना जाता है कि किसके हिस्से में कितने लोग खड़े हैं। यह एक ऐसी जंग है जिसमें जंग का नायक खुद नहीं लड़ता बल्कि लड़ने वाली योद्धाओं के साथ खड़ा रहता है और बार-बार पूछता है "मामकाः पांडावैश्चैव किम अकुर्वत संजय:।" हर बार चुनाव सबक दे जाता है। उसके खुद के सबक भी होते हैं। मसलन दिल्ली चुनाव के नतीजों में केजरी  का केसरी बनाना और नमो - अशा को निराशा हाथ लगना यह सबक देता है कि चुनाव में कामयाबी के भाजपा के फार्मूले ने  इसे  सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया।
    ऑर्गेनाइजेशनल बिहेवियर के सिद्धांतों के मुताबिक सबसे अच्छी रणनीति के मॉडल के कुछ अभिशाप भी होते हैं। मोदी और शाह के अधीन भाजपा ने 2014 में ही चुनाव जीतने का एक कामयाब फार्मूला बना लिया है। वह इसे पार्टी की सबसे अच्छी रणनीति का मॉडल कहते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि आत्म संतुष्टि के चलते योद्धा लापरवाह हो जाते हैं और उनकी कार्यशैली में बदलाव की जरूरत होती है। जिसे कामयाब रणनीति कहते हैं वह एक तरह से टेंपलेट बन जाता है। जिसमें कोई परिवर्तन किया ही नहीं जा सकता दिल्ली में भाजपा के साथ यही हुआ। इसकी जो सबसे अच्छी रणनीति थी वह अंतिम क्षणों में पाकिस्तान विरोधी बयानबाजी  विपक्ष को राष्ट्र विरोधी साबित करने तथा चुनाव क्षेत्र में बड़े नेताओं की विशाल शोभा यात्राएं थी। इससे एक वातावरण तो बनता है। पार्टी और समर्थकों में थोड़ा जोश तो आता है। लेकिन, इसने भाजपा को एक ऐसे टेंप्लेट में बांध दिया कि इसमें बदलाव किया ही नहीं जा सकता। अगर मार्क्सवाद के पराभव को देखें तो उसके साथ भी कुछ ऐसी ही कमी थी। मार्क्सवादी दूसरों की सुनने को तैयार नहीं थे। आज भाजपा के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। हर आलोचक को राष्ट्र विरोधी करार दे दिया जाना इसकी सबसे बड़ी पहचान है।
         अब जरा दिल्ली को  देखें । वहां की टोपोग्राफी कुछ अजीब सी है। दिल्ली का एक हिस्सा जो लुटियंस का हिस्सा है उसे इस बात का अहंकार है कि वह सरकार बनाता है और उसे चलाता है। दूसरा हिस्सा दिल्ली में बसी ब्यूरोक्रेसी है जिसमें वर्तमान और निवर्तमान लोगों का हिस्सा है। वे केवल सिद्धांत और गणना की बात करते हैं। तीसरा हिस्सा पंजाबियों और जाटों का है जो एकदम स्पष्ट सोचता है और सीधी बात करता है जो सच है। चौथा हिस्सा बिहार तथा अन्य प्रांतों से आए प्रवासी मजदूरों का है। जिसे हर बात में अपना लाभ दिखता है दिल्ली में किसी भी सरकार को बनाने और रोकने में तीसरे और चौथे हिस्से की सबसे बड़ी भूमिका होती है। क्योंकि यही तबका सड़कों पर लोगों के विचारों को बनते बिगड़ते देखता है तथा उसमें परिवर्तन और परिवर्धन की कोशिश करता है। इस तबके को यह विश्वास है कि सरकारी सेवाओं की डिलीवरी केजरीवाल सुनिश्चित करते हैं। केजरीवाल हिंदुत्व विहीन राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाते हैं और हिंदुत्व को भी गले लगाते हैं। यह भाजपा के लिए एक नई चुनौती है।  इसके अनुरूप भाजपा ने अपने सिद्धांतों और नीतियों में कोई परिवर्तन नहीं किया। सॉफ्टवेयर क्षेत्र में एक शब्द बड़ा ही पॉपुलर है। उसे सिस्टम कहते हैं।  यदि सिस्टम बहुत दृढ़ता से कनफिगर किया गया हो तो बाहरी परिस्थितियों से इसमें सुधार नहीं किया जा सकता। आज मोदी और शाह के बीच का जो सिस्टम है भाजपा का उसमें  कामयाबी का जो फार्मूला कनफिगर किया हुआ है उसमें बदलाव किया ही नहीं जा सकता। भाजपा की दूसरी सबसे बड़ी रणनीति है उसका धुआंधार प्रचार। 2014 के चुनाव बहुतों को याद होंगे। गुजरात मॉडल का प्रचार किस तरीके से किया गया था। इसका कथानक कैसे गढ़ा गया था। सबने ध्यान दिया होगा कि चुनाव आते-आते गुजरात की पृष्ठभूमि से उभरकर मोदी असाधारण व्यक्तित्व हो गए। ऐसी भूमिका बनाई गई मानो भारत को मोदी का ही इंतजार था। कांग्रेस के पास ऐसी रणनीति नहीं थी जो इस मिथक को खत्म कर सके।
        उधर 2018 में आम आदमी पार्टी ने मोहल्ला क्लीनिक और स्कूलों में सुधार का काम बड़े जोर शोर से आरंभ किया। भाजपा ने इस पर सवाल उठाने में देर कर दी। उसे मोदी और शाह के तिलिसमात पर भरोसा था। भाजपा ने बड़ी चालाकी से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया और पूरी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में सफलता पाई। इससे वोट बैंक में सेंध लगाने की उसकी मंशा बहुत कामयाब हो गई। भाजपा ने मनोज तिवारी को आगे कर दिया। लेकिन वह केजरीवाल की लोकप्रियता का मुकाबला नहीं कर पाए। उधर मनोज तिवारी की मदद के बजाय भाजपा ने शाहीन बाग को खलनायक साबित करने पर ज्यादा जोर लगाया। इस रस्साकशी में भाजपा यह नहीं देख सकी कि अन्य पार्टियां भी उसकी रणनीति का अनुकरण कर सकती हैं और कर रही है। आम आदमी पार्टी ने भाजपा के कई विशिष्ट तरीकों को जैसे मीम चुटकुले और व्हाट्सएप संदेशों को अपनी तौर पर गढ़ लिया । भाजपा ने एक समय में इसके जरिए राहुल गांधी का कद  छोटा कर दिया था आम आदमी पार्टी ने इसी के जरिए मनोज तिवारी को निस्तेज कर दिया और वह वास्तविक तौर पर कभी मुकाबले में आ ही नहीं सके। अरविंद केजरीवाल की बहुत सी शिकायतें प्रसारित की गयीं और अरविंद केजरीवाल ने लगातार उन शिकायतों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। मोदी जी की गोटी उल्टी पड़ गई।


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