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Sunday, February 16, 2020

असहमति और लोकतंत्र

असहमति और लोकतंत्र 

सुप्रीम कोर्ट के  न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ में शनिवार को कहा कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है और  असहमति को सिरे से राष्ट्र विरोधी करार देना लोकतंत्र विरोधी है। ऐसे विचार  संरक्षण वादी ताकतों के खिलाफ विचार विमर्श करने की मंशा को बढ़ावा देते हैं। चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब संशोधित नागरिकता कानून (सी ए ए) और एनआरसी ने देश के कई हिस्सों पर व्यापक असर डाला है और देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सवाल करने की गुंजाइश खत्म करना और असहमति को दबाना सभी तरह की प्रगति चाहे वह राजनीतिक हो आर्थिक हो सांस्कृतिक हो या सामाजिक उसकी बुनियाद को नष्ट करना है। असहमति को खामोश करना और लोगों के मन में भय पैदा करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन और संवैधानिक मूल्य के प्रति प्रतिबद्धता को खत्म करना है। असहमति दरअसल लोकतांत्रिक तौर पर निर्वाचित एक सरकार में विकास एवं सामाजिक संबंधों के लिए अवसर पैदा करते हैं। कोई भी सरकार उन मूल्यों एवं पहचानों को अपना बताने का और एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती जो बहुलवादी समाज की हो गई है। चंद्रचूड़ के भाषण या कहिए अभिव्यक्ति से यह प्रतीत होता है कि असहमति  पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल और डर की भावना को पैदा करना स्वतंत्र शांति के खिलाफ है और बहुलवादी समाज की संवैधानिक दूर दृष्टि को भड़काता है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की इस टिप्पणी के प्रिज्म में   नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी खिलाफ प्रदर्शनों को देखें । देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं। यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे जिसने उत्तर प्रदेश में सी ए ए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले से क्षतिपूर्ति वसूल करने के जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजी गई नोटिस पर जनवरी में प्रदेश की सरकार से जवाब मांगा था। किसी भी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए राष्ट्र विरोधी नहीं कहा जा सकता  क्योंकि वह किसी कानून का विरोध करता है या करना चाहता है। विरोध को रोकना नाजायज है, खास करके ऐसे विरोध को जो किसी सरकार के किसी कदम के मुकाबले खड़ा करता  है।
      इन दिनों  संशोधित नागरिकता कानून सी (ए ए ) पर सबसे ज्यादा बहस चल रही है इस बहस में भविष्य के भारत के दो पृथक अवधारणाओं की अभिव्यक्ति के लिए एक संदर्भ बिंदु तैयार हुआ है। हमारे समाज की यह ट्रेजडी है कि  बौद्धिक आलस्य  के कारण हम इस पर एक नए दर्शन की नींव नहीं रख पा रहे हैं । अब से पहले भी धर्मनिरपेक्षता तथा फासीवाद, राष्ट्रवाद जैसे पुराने द्वैत सिद्धांतों पर बहस हुई है। सी ए ए पर बहस ने भारत की अवधारणा संबंधी पुराने सिद्धांतों पर पुनर्विचार का एक नया अवसर प्रदान किया है। जरूरत है वर्तमान भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को स्पष्ट करने वाले विचारों पर मनन हो। इस नए हालात से राजनीतिक विचारों का एक नया संघर्ष शुरू होता है।
     नए भारत के विचार को आधिकारिक तौर पर पेश किया गया है। एक तरफ सीए ए की वैचारिक बुनियाद है दूसरी तरफ भारत के स्वधर्म का उतना ही प्रभावशाली विचार है। यही विचार हमारी राजनीतिक संस्कृति में एक बुनियादी बदलाव का प्रस्ताव पेश करता है। यह याद रखना जरूरी है कि नया भारत  एक वैचारिक रूपरेखा है।  इसे भाजपा ने दो हजार अट्ठारह में अपने राजनीतिक सिद्धांत के तौर पर अपनाया था। मोदी जी ने नए भारत की तीन विशेषताओं को बताया है। वह है नवाचार, कड़ी मेहनत और रचनात्मकता से संचालित राष्ट्र। शांति ,एकता और भाई चारे की विशेषता वाला राष्ट्र भ्रष्टाचार ,आतंकवाद, काले धन और गंदगी से मुक्त भारत। मोदी जी ने इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए भारतीय नागरिकों से 8 सूत्री शपथ लेने की अपील की है। इनमें दो बिंदु अत्यंत दिलचस्प है कि  मैं "एक सुगम में भारत के लिए अपना पूर्ण समर्थन देता हूं और मैं नौकरी देने वाला बनूंगा ना कि नौकरी ढूंढने वाला।"
        स्वधर्म - लोकतंत्र विविधता और विकास की पश्चिमी राजनीति का दर्शन को भारतीय संदर्भ में नए सिरे से परिभाषित करने यह कोशिश ऐसी है जिससे भारत ने दुनिया को यकीन दिला दिया है कि बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में और औपचारिक शिक्षा के अभाव की स्थिति में भी लोकतंत्र कायम रह सकता है। विविधता में एकता भारत का एक पुराना नारा है। जिसने  विविधता की भारतीय अवधारणा ,सांस्कृतिक, धार्मिक   अंतरों पर जोर देने कि नहीं बुनियादी रूप में विभिन्नता और तरीकों की स्वीकार्यता के  विकास की अवधारणा को परिभाषित किया गया है, जो कि जीडीपी विकास दर या प्रति व्यक्ति आय तक सीमित नहीं है। आखरी व्यक्ति के बारे में सबसे पहले सोचने का विचार विकास की अवधारणा में हमारा विशिष्ट योगदान है और मोदी जी ने अक्सर यह बात कही है। अब इन आंदोलनों का फल  क्या होगा यह कोई नहीं जानता लेकिन नए भारत और न्याय संगत भारत के बीच वैचारिक संघर्ष जो शुरू हो चुका है वह भविष्य में भी कायम रहेगा।


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