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Tuesday, May 12, 2020

कोविड-19 और हमारा सामाजिक आचरण

कोविड-19 और हमारा सामाजिक आचरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ने  सोमवार को मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में मेरे सारे निर्देश दिए और सुझाव दिए लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण  बात थी  और यह हमारे देश भारत में  युगांतरकारी परिवर्तन  ला सकती है वह प्रधानमंत्री की चेतावनी कि दूरी बनाए रखें और ऐसे उपायों का उपयोग करें जो लोगों को नजदीक  आए बिना उन्हें सुविधाएं मुहैया कराए। सचमुच,  कोरोना वायरस महामारी का जो प्रभाव पड़ा है वह दूरदर्शिता के लिए भी एक आवश्यक है।  आचरण मनोविज्ञान और इतिहास की कसौटी पर प्रधानमंत्री की  चेतावनी को देखें तो इससे लगता है  कि कोविड-19 आगे चलकर हमारे दैनिक जीवन  को परिवर्तित कर देगा। इनमें  कुछ परिवर्तन को समझा जा सकता है  और कुछ अभी विश्लेषण का विषय हैं। मसलन,  लगभग 85% लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं और अच्छे तरीके से  हाथ धो रहे हैं।  भारत की आर्थिक स्थिति को देखते हुए लगभग एक चौथाई लोग खाने और पीने के सामान एकत्र कर रहे हैं तथा पैसों को बचाने में लगे हैं।  खरीदारी की आदतें धीरे-धीरे बदल रहीं हैं।  येल स्कूल ऑफ मेडिसिन  की मनोवैज्ञानिक वैलेरिया मार्टिनेज  के अनुसार लोगों में  भय  के कारण आदतें बदल रही हैं।  कोरोना वायरस महामारी के लंबे दौर के बाद बदली हुई आदतें नई आदतों में बदल जाएंगी। 1918 में  इनफ्लुएंजा की महामारी आई थी और इससे सिर्फ अमेरिका में 675000 लोग मारे गए थे और उसके बाद सरेआम  थूकने पर पाबंदी  लग गई। कोविड-19 के दौर में आपसी मेलजोल के समय हाथ मिलाना बंद हो गया।  एक साथ बैठकर बातें करने की अपेक्षा अधिकांश लोग काम के दौरान वीडियो पर बातें करने  लगे। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण है और जिसे मोदी जी ने रेखांकित किया है वह है आपसी मेलजोल के बजाय एक दूसरे  से सहानुभूति रखें।  अर्थशास्त्रियों में लोकप्रिय सिद्धांत प्रोस्पेक्ट  थ्योरी  आफ बिहेवियर के मुताबिक हमें उपलब्धि से ज्यादा नुकसान करना होगा। बंद की अवधि बढ़ाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक विकास से ज्यादा मानवीय नुकसान पर ध्यान दिया है इसलिए सीमित स्थिति में अर्थव्यवस्था को परिचालित करने  का निर्णय किया है। उदाहरण के रूप में देखें सीमित क्षेत्रों में गिनी चुनी  ट्रेनें और व्यापारिक गतिविधियां  आरंभ हो सक

ती हैं लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना होगा।


आज कि हमारे वैज्ञानिक लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हर्ड इम्यूनिटी के जरिए वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है। हमारी सरकार ने सोशल डिस्पेंसिंग के लिए ही लॉक डाउन का रास्ता चुना लेकिन वैज्ञानिकों की दलील है कि आखिर कब तक छिपकर बैठा रहा जा सकता है। क्योंकि, लॉक डाउन से अर्थव्यवस्था लगातार सुस्त होती जाएगी और भुखमरी बढ़ती जाएगी। इसलिए हमें वायरस पर सर्जिकल स्ट्राइक करके हर्ड इम्यूनिटी के बारे में विचार करना चाहिए। यहां जो सबसे बड़ी है कमी दिखाई पड़ रही है वैज्ञानिकों की बातों में वह है कि लोगों को कैसे इम्यून किया जाए। यानी, उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता का कैसे विस्तार हो और मजबूत हो। लेकिन यह तभी हो सकता है जब लगभग 60% आबादी को कोरोना वायरस संक्रमित कर चुका होता है और वह आबादी उस से लड़ कर इम्यून हो चुकी होती है। जरा सोचिए भारत जैसे बहु विचार वादी लोकतंत्र में यदि 60% लोग वायरस के संक्रमण के शिकार हो जाएं तो क्या हो जाएगा ? ऐसे सिद्धांत बेशक कहने में अच्छे लगते हैं, उन पर अमल करना बड़ा कठिन होता है और वह भी भारत जैसे देश में जहां शुरू से ही लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है और ऐसे लोगों का अनुपात गांव में ज्यादा है। उधर जो लोग गांव लौट रहे हैं उनकी जांच की समुचित व्यवस्था नहीं है।





प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी कारणवश चिंता जताया है के गांव में यह महामारी ना फैले।राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ सोमवार को अपनी पांचवी बैठक में प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि हमें दो ही  उद्देश्य पूरे करने हैं पहला वायरस के संक्रमण की दर को कम करना और धीरे-धीरे लोगों की गतिविधियों को बढ़ाना।इसे हासिल करने के लिए सबको मिलकर काम करना।  उन्होंने कहा कि हमारी सबसे बड़ी चुनौती इस संक्रमण को गांव में फैलने से रोकना है।  प्रधानमंत्री ने कहा पूरी दुनिया यह स्वीकार कर रही है कोविड-19 से खुद को सुरक्षित रखने में भारत सक्षम रहा है और इसमें राज्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने संक्रमण पर मजबूत नियंत्रण के लिए भारत की तारीफ करते हुए कहा कि यह प्रकोप कई महीनों और संभवतः सालों तक रख सकता है।  स्वामीनाथन उम्मीद जताई कि भारत कोविड-19 के लिए वैक्सीन बनाने में दुनिया की मदद कर सकता है। जिन क्षेत्रों में सोशल डिस्टेंसिंग  को नहीं माना गया वहां समस्याएं बढ़ गई।  बेशक प्रधानमंत्री का  यह कथन सही है।  क्योंकि,  कोरोनावायरस के बाद दुनिया बदली हुई होगी और जिस तरह हम विश्व युद्ध के पहले की दुनिया और  बाद की दुनिया के रूप में  परिवर्तन के इतिहास को देखते हैं  उसी तरह  आने वाला दिन  समाज विकास के इतिहास को संक्रमण के पहले की दुनिया और संक्रमण के बाद की दुनिया के रूप में लिखेगा। हमें नई वास्तविकता से दो-चार होने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।

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