भारत की धमक सीमा के उस पार भी
पाकिस्तान जोकि आतंकवाद नियंत्रित होता है और उसके नेता आतंकी नेताओं का मुंह जोहते रहते हैं यानी आतंकियों का पराजय और उनका पराभव एक तरफ से पाकिस्तानी शासन का पराभव है। कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के शीर्ष कमांडर रियाज नायकू के मारे जाने के बाद हिजबुल नेता सैयद सलाउद्दीन ने स्वीकार किया भारत इन दिनों पाकिस्तानी आतंकियों पर बीस पड़ रहा है। यह स्वीकारोक्ति सैयद सलाहुद्दीन ने नायकू के मारे जाने के बाद पाकिस्तान की सरजमीं पर आयोजित शोकसभा में की। इससे संबंधित एक वीडियो अमेरिकी विदेश विभाग ने जारी किया है जिसमें सलाहुद्दीन को कहते हुए दिखाया गया है और उसने यह भी कहा है जनवरी से अब तक 80 ने जान दी है। अगर भारतीय नजरिए से इस वाकये को देखें कहा जा सकता है कि अब तक 80 आतंकी भारतीय सेना के हाथों मारे गए। सलाहुद्दीन अंतरराष्ट्रीय स्तर का आतंकी है और उसका मांगा है कि पाकिस्तान की गलत नीतियों के कारण भारत भारी पड़ रहा है। उसने यह स्वीकार किया है कश्मीर में तमाम एनकाउंटर में हिजबुल का हाथ है।लेकिन, पिछले हफ्ते के मध्य में जारी मारे गए फौजियों के फोटोग्राफ्स को ध्यान से देखने पर पता चलता है इन शहीदों को सिर में गोली मारी गई है वे अंधाधुंध फायरिंग में नहीं मरे हैं। भारतीय मानस नायकू और अन्य आतंकवादियों को मारे जाने को हंदवाड़ा में शहीद फौजियों की शहादत का बदला मान रहा है।
इस संपूर्ण स्थिति में एक और महत्वपूर्ण गुत्थी है वह है हमारे सैनिकों के लिए शहीद शब्द का इस्तेमाल किया जाना। यह शब्द हमारे कुछ दिखावे के बुद्धिजीवियों द्वारा यह अर्थ से पहले गढ़ा गया था। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक शहीद वह व्यक्ति होता है जिसने अपनी धार्मिक या राजनीतिक आस्था के कारण जान गवांई हो। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने इस शब्द पर आपत्ति जताई थी और 15 दिसंबर 2017 को ही केंद्रीय रक्षा और गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयोग को सूचित किया था इससे ना और पुलिस की शब्दावली में मार्टर या शहीद शब्द नहीं है इसके बजाय कार्रवाई के दौरान मारे गए सैनिकों और पुलिसकर्मियों के लिए क्रमशः बैटल कैजुअल्टी और ऑपरेशन कैजुअल्टी का इस्तेमाल किया जाए।
यहां जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है वह ना सलाहुद्दीन की स्वीकारोक्ति है और ना हमारे सैनिकों की शहादत का बदला क्योंकि पाकिस्तानी फौज के लिए आतंकवादियों की अहमियत गोला बारूद ज्यादा नहीं है और ऐसे लोगों को मार दिया जाना उनके लिए कोई हानिकारक नहीं है अपना भारत के लिए कोई उपलब्धि। क्योंकि, आंकड़ों की तुलना करें तो बहुत चिंताजनक निष्पत्ति प्राप्त होती है। 1 अप्रैल पहली मई तक कश्मीर के भीतरी इलाकों में 36 आतंकवादी मारे गए और इसी अवधि में आतंकवादियों के हाथों 20 सुरक्षाकर्मियों की शहादत हुई। इसमें सीआरपीएफ और पुलिस के जवान भी शामिल थे। अगर कहें तो गर्व का विषय होगा कि मुठभेड़ों में आतंकी मारे जाएं और हमारे सुरक्षाकर्मी हताहत ना हों परंतु ऐसी आदर्श स्थिति शायद नहीं हो सकती है। सुरक्षा प्रतिष्ठान बड़े अधिकारी को एक सैनिक की मौत पर आक्रोशित होना चाहिए और बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनानी चाहिए। हमारी सरकार और फौज के बड़े अफसरों को कश्मीर में अपनी कमजोरी का आकलन करना चाहिए।
यहां जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है पाकिस्तानी शासकों विशेष तौर पर उसके सैनिक अधिकारी और पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आई एस आई का मनोविज्ञान। अगर केस स्टडी माध्यम से सत्ता प्रतिष्ठानों के मनोविज्ञान का विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि उसने बालाकोट हमले और धारा 370 को हल्का किए जाने के बाद जो सामरिक विराम लगाया था उसे उसने खत्म कर दिया और नए जोश के साथ आतंकवादी गतिविधियां आरंभ कर दी हैं। उसने बेहतर ट्रेनिंग दिए गये आतंकियों के पाकिस्तानी काडर को घाटी में उतार दिया है। पाकिस्तानी सैनिक प्रतिष्ठान द रेजिस्टेंस नाम से एक नया संगठन बनाया है। इसका लक्ष्य है कि छद्म युद्ध देसी तड़का लगाया जाए और उधर उनके आका पर्दे के पीछे रहकर काडर को ट्रेंड करते रहेंगे और उन्हें नियंत्रित करते रहेंगे। हमारी खुफिया एजेंसियां लगातार इस पर प्रकाश डालती रहीं हैं और बताया है बड़ी संख्या में आतंकवादी घाटी में घुस आए हैं और घुसने की तैयारी में भी हैं। भारत कोविड-19 से लड़ने में व्यस्त है और पाकिस्तान इसे अवसर मांग रहा है तथा घाटी के लोगों में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाह रहा है। सैयद सलाहुद्दीन की यह स्वीकारोक्ति संभवतः एक धोखा है। क्योंकि, दक्षिण के अवंतीपुरा में जब नायकू के घर को सीआरपीएफ, और सेना ने घेर लिया उसे मार गिराया तो उस वक्त गांव वालों ने सुरक्षाबलों पर पथराव किया और इसमें हमारे कई जवान घायल हो गए। इस घटना से स्पष्ट होता है कि कश्मीर के गांव में आतंकियों का समर्थन है और यह समर्थन केवल दिखावे का नहीं बल्कि उसमें कुछ करने की क्षमता भी है। एक तरफ सैयद सलाहुद्दीन यह कह रहा है भारत भारी पड़ रहा है दूसरी तरफ गांव में आतंकवादियों का आधार फैलता जा रहा है इसलिए सलाहुद्दीन की बातों में सच्चाई कम दिखाई पड़ रही है। हो सकता है अमेरिकी विदेश विभाग ने जो वीडियो जारी किया है वह भी पूरी तरह सच ना हो। इसलिए ऐसे किसी भी झांसे में आने के पूर्व सेना की खुफिया एजेंसी और देश की तमाम एजेंसियों को पाकिस्तान के मनोविज्ञान के वर्ण पट पर पूरी तरह विश्लेषण कर लेना चाहिए। वैसे यह सच है कि भारत की प्रभुसत्ता और प्रधानमंत्री मोदी सरकार की रणनीतियों के कारण हमारी धमक सीमा के उस पार भी सुनाई पड़ती है और यही कारण है आतंकी संगठनों का बड़बोलेपन का सुर बदलता जा रहा है। झूठ ही सही लेकिन पहले कदम में उन आतंकियों पर हमारा दबाव साफ दिख रहा है। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो सलाहुद्दीन जैसा आतंकी भारत के आगे घुटने टेकता सा नहीं दिखाई पड़ता। जो लोग इस जंग में काम आए हैं उनके लिए बस यही कहा जा सकता है,
है नमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए
है नमन उनको जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर गए पर आसमानी हो गए
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