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Tuesday, May 26, 2020

भारत चीन सीमा पर फिर तनाव


 भारत चीन सीमा पर फिर  तनाव

 बड़ा अजीब संयोग है,  जवाहरलाल नेहरू आज 56 वीं  पुण्यतिथि है।  नेहरू पर चीन से पराजय  का दाग कुछ ऐसा लगा हुआ है उसका राजनीतिक लाभ भी उठाया जाता है।  मेजर जनरल बीएम कौल  ने  अपनी पुस्तक द हिमालयन ब्लंडर  में  स्पष्ट लिखा है कि  भारत चीन का युद्ध बेशक रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है लेकिन आने वाले दिनों में इसका सियासी  लाभ भी उठाया जाएगा।  अब फिर चीन ने  लद्दाख की सीमा पर अपनी फौजों की उपस्थिति बढ़ा दी है और उससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।  पहले तो बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश की गई लेकिन बात नहीं और अब खबर है कि नियंत्रण रेखा पर चीनी फौज की तादाद बढ़ती जा रही है। पूर्वी लद्दाख में सेना में अतिरिक्त टुकड़ियां तैनात कर दी हैं और 24 घंटे क्षेत्र की निगरानी चल रही है। यहां तक कि चीन ने उत्तराखंड के उस पार मध्य क्षेत्र  के गुलडोंग  में बड़ी संख्या में   सेना उतार दी है।  जवाब में भारत को भी उस क्षेत्र में तैनाती करनी पड़ी है।  खबरों को मानें  तो चीनी सेना की तैनाती  विगत कुछ दिनों से चल रही है और इसी कारण से मजबूर होकर वहां भारत  ने अपनी सेना उतारी है। खबर है कि हारसिल  क्षेत्र में भी  चीन ने भारी संख्या में फौज  लेकिन वहां का इलाका इतना दुर्गम है कि  पेट्रोलिंग  कठिन है। इसलिए  वहां भी   ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है ताकि पूरे क्षेत्र पर 24 घंटे नजर रखी जाए और स्थिति की समीक्षा की जा सके। 
यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि भारत चीन के बीच अक्सर पेंगोंग सो  झील के विवादास्पद क्षेत्र में जोर आजमाइश होती है।  भारत और चीन के बीच सीमा पर विवाद है इसलिए इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा कहते हैं।   यह इलाका  पश्चिमी,  मध्य और  पूर्वी 3 क्षेत्रों में बंटा है। विवाद इस बात का है कि भारत का दावा है कि नियंत्रण रेखा 3488 किलोमीटर लंबी है चीन इस बात पर अड़ा हुआ है कि यह  रेखा केवल 2000 किलोमीटर लंबी है।  यानी,   1488 किलोमीटर  क्षेत्र का विवाद है।  दोनों देशों की सेना इस इलाके में गश्त करती रहती है और एक दूसरे पर वर्चस्व कायम करने की कोशिश करती है जैसा कि इस महीने के शुरू में सिक्किम के नाथूला में हुआ था। मई में ही दो बार भारत और चीन की   सेना में विवाद हुआ झड़पें  हुई जिसमें दोनों पक्षों के सैनी  घायल हुए।  दरअसल चीन की सीमा 14 देशों से  सटी हुई है।  इनमें नेपाल और पाकिस्तान जैसे देश को इसने एक तरह से गुलाम बना  लिया है। पश्चिमी क्षेत्र में पूर्वी लद्दाख का इलाका आता है और  काराकोरम  इस इलाके में है। हिमाचल प्रदेश की सीमा इसी विवादास्पद क्षेत्र में है। 2017  के 19 अगस्त को  डोकलाम में भारत चीन के फौजियों में हाथापाई हो गई थी जिसमें कई लोग घायल हो गए थे ।भारत पश्चिमी क्षेत्र में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है जो फिलहाल चीन के कब्जे में है 1962 में भारत के साथ युद्ध में चीन ने इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था।   इसी जंग की तोहमत  अभी भी नेहरू पर लगती है।  दूसरी तरफ पूर्वी क्षेत्र में चीन  का कहना है  कि अरुणाचल प्रदेश उसका है क्योंकि  यह तिब्बत का हिस्सा है।  तिब्बत और अरुणाचल के बीच  मैक महोन रेखा है  और चीन उसे नहीं मानता ।  चीन का कहना है 1914 में  जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत में समझौता हुआ था तो वह वहां शामिल नहीं था इसलिए वह इस समझौते के तहत बनाई गई मैक महोन  रेखा को नहीं मानेगा।  दरअसल यह बात है 1914 में तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था लेकिन बेहद कमजोर था  तेनजिंग शुंडे    के मुताबिक तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश क्षेत्रों में लिथियम की खान होने की  संभावना है इसलिए चीन  उस पर नजर गड़ाए हुए हैं और तरह तरह के विवाद पैदा कर  रहा है।  अभी जैसे हाल में उसने नेपाल भारत सीमा विवाद हवा दे दी।  कहा जा सकता है कि चीन अरुणाचल प्रदेश में   मैकमहोन  रेखा को नहीं मानता और न अक्साई चीन पर  भारत के दावे को मानता है। यह  एक ऐसा  विवाद है  जिसके चलते दोनों देशों के बीच कभी सीमा निर्धारण नहीं हो सकता इसलिए यथास्थिति बनाए रखने की दृष्टि से वास्तविक नियंत्रण रेखा जैसी शब्दावली का उपयोग हो रहा है।  हालांकि  यह भी अभी स्पष्ट नहीं है  क्योंकि दोनों देश नियंत्रण रेखा को अलग-अलग मांगते हैं।  इस पर कुछ इलाके ऐसे हैं जहां भारत और चीन  की सेना में तनाव की खबरें अक्सर आती हैं। वैसे अनुमान है कि शुक्रवार को  पीपुल्स कांग्रेस की शुरुआत हो रही है और जब तक यह खत्म नहीं होगी तब तक शायद ही  यह तनाव खत्म हो।  दोनों देशों में  तल्खी इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि दोनों  देशों के नेता एक दूसरे देश का नाम तक नहीं ले रहे।  2 दिन पहले चीन के विदेश मंत्री वांग येई  ने  अपने लंबे प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत का जिक्र  तक नहीं किया।  इसे देखकर भारत ने भी चीन का नाम लेना बंद कर दिया है। डोकलाम के बाद पहली बार इतना तनाव देखा गया है। चीन इस इलाके में लगातार खुद को मजबूत कर रहा है।  चीनी सैनिकों ने विगत एक पखवाड़े में ग्लवान घाटी में  अपनी उपस्थिति बढ़ाता जा रहा है। सूत्रों के अनुसार  इस क्षेत्र में  उसने लगभग एक सौ तंबू और बनकर बनाने के बड़े औजार भी जमा कर लिए हैं।  भारत में पिछले हफ्ते इस पर गंभीर आपत्ति जताई थी।  परंतु चीन पर कोई असर नहीं पड़ा।  परमाणु शक्ति संपन्न दो देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।  वैसे युद्ध की संभावना बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन 1962 उदाहरण को भुलाया नहीं जा  सकता। भारत को पूरी तरह सचेत और तैयार रहना पड़ेगा और चीन को यह बता देना होगा इस बार पंचशील वाले नेहरू नहीं हैं बल्कि आर पार का फैसला करने वाले नरेंद्र मोदी  हैं।  इतना ही नहीं भारत की  सेना 1962  वाली नहीं है।

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