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Wednesday, May 27, 2020

बंद होती दुनिया की सीमाएं और लौटते भारतीय



बंद होती दुनिया की सीमाएं और लौटते भारतीय





कई वर्षों से भारत का वैश्वीकरण हो रहा है लेकिन भारतीय समुदाय पहले ही वैश्विक हो गया है। गूगल से लेकर छोटे-मोटे कामों तक दुनिया के लगभग हर देश में भारतीय जुड़े हुए हैं। औपनिवेशिक काल से ही भारत के लोग विदेशों में पहुंच गए हैं। मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपनी ताजा पुस्तक गंगा रतन बिदेसी में गिरमिटिया मजदूरों के विदेश जाने की कथा बयान करते हुए लिखा है कि भारत से मजदूरी के लिए विदेशी सरकार इन मजदूरों को विभिन्न देशों में भेज रही थी। यही कारण था औपनिवेशिक काल में भारतीय समुदाय ने कई देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज की थी लेकिन पिछले 50 वर्षों में इसमें भारी गति आई है। भारतीय कामगार खाड़ी के देशों में जाने देंगे हमारे डॉक्टर इंजीनियर चार्टर्ड अकाउंटेंट और अन्य पेशेवर अमेरिका जाने लगे, भारतीय छात्रों ने पढ़ाई के लिए विदेशों का रुख किया।


एशिया के हम परिंदे आसमा है जद हमारी


जानते हैं चांद सूरज जिद हमारी जद हमारी





उस समय से आरंभ हुआ यह प्रवाह अब एक करोड़ 75 लाख तक पहुंच गया है। यह संख्या दुनिया के सबसे बड़े प्रवासी समुदाय की है। यदि इसमें भारतीय मूल के लोगों को भी जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 3 करोड़ से ऊपर हो जाएगी। हम भारतीय जिन्हें विदेशों में देसी कहा जाता है वह हांगकांग से कनाडा तक और न्यूजीलैंड से स्वीडन तक छाए हुए हैं। प्रवासी भारतीय समुदाय के बारे में बहुत व्यापक अध्ययन और लेखन हो चुका है। प्रवासी भारतीयों ने हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। वे विदेशों में प्रधानमंत्री, सीनेटर और सांसद चुने गए हैं। अरबपति व्यापारी और कई कंपनियों के सीईओ भी हैं।


हम वही जिसने समंदर पर बांध साधा


हम वही जिनके लिये ना दिन- रात की बाधा


हम हैं देसी मगर हां हर देश में छाए हुए हैं





1960 के दशक में अमेरिका और ब्रिटेन में अवसर पैदा हुए और भारतीयों ने इसका लाभ उठाया। वर्तमान में अमरीका में भारतीय मूल के लोग चालीस लाख से ज्यादा है जिनमें 5 लाख से ज्यादा छात्रों की संख्या है। प्रवासन की यही स्थिति कनाडा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी है। के देशों में प्रवासन का स्वरूप थोड़ा अलग है। यहां ब्लू कॉलर से लेकर वाइट कलर तक के कामगार हैं। साड़ी के देशों में भारतीयों की कुल संख्या 80 लाख से ज्यादा है। यहां 25 लाख से ज्यादा काम करने वाले अकेले केरल के हैं। लेकिन इन लोगों को वहां की नागरिकता हासिल नहीं है।


कोविड-19 ने भारतीयों के प्रसार पर न केवल रोक लगा दी है बल्कि इसकी दिशा उल्टी कर दी है। लोग स्वदेश लौट रहे हैं। भारतीय प्रवासन पहले तो आर्थिक कारणों से और फिर पारिवारिक एकीकरण से प्रेरित रहा है। हाल के वर्षों में भारतीय छात्रों में दुनिया भर के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना शुरू कर दिया था। अचानक कोविड-19 के विस्फोट से अनेक देशों ने अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं और कई देश लगातार बंद कर रहे हैं। भारतीयों की एक बड़ी आबादी स्वदेश लौटने को मजबूर हो गई है। अभी तक तो देश के दूसरे शहरों में मजदूरी कर रहे हैं प्रवासी मजदूरों की व्यथा कथा ही मीडिया में आई है लेकिन कभी इन प्रवासियों के बारे में किसी ने सोचा नहीं कि यह लोग जब लौटेंगे तो क्या होगा?इसके गंभीर नतीजे सामने आएंगे। जिंदगियां बाधित होंगी, अर्थव्यवस्था पर आघात लगेगा और विदेशों से भेजे जाने वाले धन की मात्रा बहुत घट जाएगी। अब तक जो दुनिया हमें इतनी खुली खुली लग रही थी दुनिया ने हमारे दरवाजे बंद करने शुरू कर दिए हैं। कोविड-19 ने भारतीय प्रवासियों के जीवन को बुरी तरह बाधित किया है। अनेक भारतीयों की नौकरी चली गई। वे रोजगार के लिए चिंतित हैं। खाड़ी के देशों में तीन लाख लोग अपनी नौकरियां गंवाने के बाद भारत लौट रहे हैं। यदि हालत अमेरिका ब्रिटेन सिंगापुर और कनाडा की भी है। दूसरे भारत की यात्राएं भी बाधित हुई। जरा सोचिए, छात्र जो साल में एक दो बार भारत आ ही जाते हैं वह अटके पड़े हैं। न जाने अंतरराष्ट्रीय उड़ाने कब नियमित होंगी और वह आसानी से घर लौट सकेंगे। जिन भारतीयों की नौकरी चली गई और जो भारतीय वहां फंस गए हैं वे बुरी तरह चिंतित हैं। अगर किसी भी तरह से भारत सरकार की सहायता से स्वदेश आ भी गए तो करेंगे क्या, रहेंगे कैसे? जिन्होंने प्रवासी नागरिक का दर्जा हासिल कर लिया है वे भी देख रहे हैं कि उनके आने पर पाबंदियां लग सकती हैं। वह पढ़ रहे छात्रों को अपने भविष्य पर पुनर्विचार करना होगा।





यही नहीं यह भारतीय जो धन भेजते हैं वह 2019 के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 83 अरब डालर से ज्यादा है अब यह धन का प्रवाह खतरे में पड़ गया है और किस कारण हमारी अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। महामारी ने हमारे भारतीय समाज के कई पहलुओं को प्रभावित किया है । आज तक का सारा कारोबार खुली स्वागत करती हुई दुनिया पर निर्भर था और अब उस दुनिया के दरवाजे बंद होते दिख रहे हैं। हमारे प्रवासी समुदाय को भारत आकर अपने अस्तित्व के संकट से गुजरना होगा।

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