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Wednesday, May 6, 2020

मानवता पर आधारित वैश्वीकरण

मानवता पर आधारित वैश्वीकरण 

 गौतम बुद्ध के बाद नरेंद्र मोदी पहले विचारक हैं जिन्होंने मानवता पर आधारित वैश्वीकरण की वकालत की है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  निर्गुट आंदोलन के सदस्य देशों के नेताओं को  वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के सदस्य देशों  के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज  विश्व मानवता के समक्ष बहुत बड़ा संकट है और निर्गुट देश  इससे निपटने में भारी योगदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के बाद वैश्वीकरण के नए ढांचे की जरूरत होगी।  पिछले कई दशकों में आज मानवता सबसे  बड़े संकट के मुकाबिल है और निर्गुट देश अक्सर दुनिया की नैतिक आवाज के रूप में रहे हैं। इस भूमिका को कायम रखने के लिए निर्गुट  राष्ट्रों को समावेशी रहना होगा।  उन्होंने कहा कि संकट की इस घड़ी में हमने दिखाया कि कैसे लोकतंत्र और अनुशासन एक साथ जुड़कर लोगों के आंदोलन को खड़ा कर सकता है।  उन्होंने भारतीय पौराणिक विचारधारा एक पंक्ति का हवाला दिया कि वसुधैव कुटुम्बकम के अनुरूप भारतीय सभ्यता ने पूरी दुनिया को एक परिवार माना है। जैसे हम अपने नागरिकों का ध्यान रखते हैं वैसे ही दूसरे देशों के लोगों की मदद भी करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा अपनी जरूरतों के बावजूद हमने 123 साझेदार देशों को चिकित्सा आपूर्ति सुनिश्चित की है इसमें निर्गुट आंदोलन  के 59 देश  भी शामिल हैं।  हम उपचार और टीका विकसित करने के वैश्विक प्रयासों में सक्रिय हैं।

    प्रधानमंत्री इन प्रयासों के बीच कुछ लोग  समुदायों  को विभाजित करने के लिए कुछ अन्य घातक वायरस जैसी आतंकवाद फर्जी समाचार और कटु वीडियो फैलाने में व्यस्त हैं।   एक तरफ भारत सरकार  अपने निकटवर्ती इलाके में समुदाय को बढ़ावा दिया है और  भारत की चिकित्सा विशेषज्ञता को साझा करने  के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण  का आयोजन कर रही है।  क्योंकि कोविड-19  हमें मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की सीमा दिखाइ  है और इसके बाद की दुनिया में हमें निष्पक्षता समानता और मानवता पर आधारित वैश्वीकरण के नए प्रयास की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी  की इन बातों का असर हमारे देश में दिखाई पड़ने लगा है।  समाज में जितनी सक्षम संस्थाएं हैं सब सरकार का सहयोग कर रही  हैं।  इंपावर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक  कोविड-19 से जंग में देश के 90 हजार से ज्यादा एनजीओ और  सामाजिक संगठन सरकार का सहयोग कर रहे हैं।  यह सब कार्य राज्य सरकारों और जिला प्रशासन के साथ तालमेल बिठाकर किया जा रहा है।  एनजीओ के साथ तालमेल के लिए राज्य सरकारों ने हर जिले में एक नोडल ऑफिसर नियुक्त किया है।  एनजीओ सस्ते दामों पर एफसीआई से अनाज खरीद कर उसे लोगों में वितरित कर रहे हैं।  इतना ही नहीं समाज के वरिष्ठ नागरिकों की सहायता के साथ-साथ कोरोना वायरस के प्रति लोगों में जागरूकता अभियान पैदा कर रहे हैं।  इसका असर हुआ है कि यूनिसेफ ने  भारत को दस हजार वेंटिलेटर  देने का आश्वासन दिया है वहीं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने 40000 एन 95 मास्क भी  देने को कहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना महामारी  रिकवरी रेट भारत में तेजी से बढ़ रही है फिलहाल  यह 27. 52% है।  स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अब तक कुल 11706  लोग ठीक हुए हैं। इनमें 1074 लोग पिछले 24 घंटों में ठीक हुए हैं।  स्वास्थ्य मंत्रालय के उप सचिव के अनुसार मामलों की संख्या 42533 है। 

    यह तो तय है कि  इस महामारी के बाद हमारे सामने  जो दुनिया होगी  वह बदली हुई होगी।  यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सुचिंतित  बदलाव की ओर जाएगा  या उसका कोई दूसरा स्वरूप होगा।  लेकिन यह तो तय है कि  इस बीमारी से संकेत मिलने लगे हैं कि  यह दुनिया  वित्तीय तौर पर कितनी भंगुर है  और इसी संकेत को विश्लेषित करते हुए  प्रधानमंत्री ने यह बताने की कोशिश की है कि कैसे  मानवता पर आधारित सार्थक बिहेवियर बदलाव आने वाले दिनों में कामयाब होगा और आर्थिक स्थिति की  भंगुरता  को कम किया जा सकता है। हालांकि प्रधानमंत्री ने जो कहा वह बिल्कुल नया नहीं है  इस ओर विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने इशारा जरूर किया है लेकिन उसका स्पष्टीकरण देखने को नहीं मिला है।  यहां जो कुछ भी है उसे स्पष्ट करने की कोशिश की  गई है।   वह स्पष्टता है  कि  इस तरह की विपत्ति में आर्थिक और वित्तीय  भंगुरता को  कम करने की विधि क्या है।  अब तक किए गए शोध के मुताबिक यह  जाहिर हो गया है  कि  दुनिया में सबसे प्रसन्न  समाज वह है  जिसके साथ  मजबूत सामाजिक समर्थन है और वह समुदाय गैर परंपरागत ढंग से  सोशल बिहेवियर के माध्यम सेअपनी जरूरतों को पूरा करने के तरीके जानने लगा है। जैसा और जितनी  जरूरत एक आम आदमी को भोजन की है उतनी ही जरूरत सामाजिक संबंधों की है।  यह उन लोगों के लिए बहुत बड़ी खबर है जो कोविड-19 के कारण व्यक्तिगत संबंधों को गवां  चुके हैं।  प्रधानमंत्री की बात यहीं आकर गंभीर चिंतन में बदल जाती है कि  हमें मानवता  आधारित  वैश्वीकरण को बढ़ावा देना होगा। हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जिसमें अगर आपका कोई दोस्त ना हो तो आप पर सवाल उठने लगते हैं। मनोवैज्ञानिक गैबरियल के अनुसार ऐसी स्थिति में लोगों के पास या संदेश जाता है कि  ऐसा व्यक्ति जिसका कोई दोस्त ना हो उसमें यानी उसके आचरण में  कोई खोट है। यह उस व्यक्ति और उस समाज के लिए अच्छा नहीं होता है।  अतः एक दूसरे से जुड़ा रहना  व्यक्ति तथा समाज के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री का प्रयास इसी महत्व को रेखांकित करता है। 


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