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Saturday, May 9, 2020

भोपाल गैस कांड की याद दिलाता वाइजग गैस कांड

भोपाल गैस कांड  की याद दिलाता वाइजग गैस कांड

 गुरुवार को आंध्र प्रदेश की वाइजग  एलजी पॉलीमर्स की रासायनिक  फैक्ट्री से सुबह-सुबह जहरीली गैस लीक हो गई  और इससे 10 आदमी मारे तथा 5000 से ज्यादा लोग बीमार पड़ गए और उन्हें अस्पताल में दाखिल  कराना पड़ा।  यह कारखाना  1961 में स्थापित हुआ हिंदुस्तान का था  कोरियाई कंपनी एलजी ने इसका 1997 में  अधिग्रहण किया और  यह दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी केमिकल लिमिटेड का है और इसमें बैटरी बनती है।  संजोग देखिए भोपाल गैस कांड  में जो  गैस  लीक हुई थी वह भी बैटरी ही बनाती थी। वाइजग के कारखाने में  जो गैस लीक हुई वह  स्टाइरीन थी।  यह गैस  न केवल जहरीली है बल्कि  ज्वलनशील भी है।  इतना ही नहीं यह एक तरह का हाइड्रोकार्बन  भी है और इस गैस के संपर्क में आने से लिंफोमा और  ल्यूकेमिया  नाम का कैंसर भी हो सकती है।  कुछ लोगों का मानना है कि  कोरोना वायरस के चलते  लॉक डाउन के  बाद  जब कारखाना खुला तो उसकी मरम्मत इत्यादि में यह गैस लीक कर गई। लीक होने  के असली कारण का अभी पता नहीं चला  है लेकिन तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।  कहा तो यहां तक जा रहा है कि  यह  एक रासायनिक हथियार भी है हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। चूंकि यह  दक्षिण कोरियाई कंपनी है इसलिए इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।  स्टाइरीन  का मूल रूप से पोलिस्टाइरीन प्लास्टिक और रेजिन बनाने में इस्तेमाल होती है।  यह हल्का पीला ज्वलनशील द्रव है और इसकी  गंध  मीठी  होती।  इसे एस्टाइरोल और विनाइल बेंजीन भी कहते हैं।  बेंजीन और अच्छे दिन के जरिए इसका  औद्योगिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है।  इससे बने  प्लास्टिक में खाने पीने की चीजें रखने वाले कंटेनरों,  पैकेजिंग,  सिंथेटिक मार्बल और फोल्डर फर्नीचर बनाने में होता है। 


एलजी केमिकल्स ने एक बयान में कहा है कि  गैस के प्रभाव से उल्टी तथा जी मिचलाने की घटनाएं हो सकती हैं, सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।  हालांकि सोशल मीडिया में इसे लेकर बड़े-बड़े आतंक भरे समाचार  आ रहे हैं।  बयान में यह भी कहा गया है कि लगभग  1000 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और चूंकि कारखाने के आसपास घनी बस्ती है तो हो सकता है घरों में कुछ लोग बेहोश पड़े हों।  वैसे यह गैस बहुत कम मात्रा में वातावरण में पाई जाती है और यदि कोई  सांस में इसे ज्यादा भीतर ले ले तो बेहोशी आ सकती है तथा नर्वस सिस्टम प्रभावित हो  सकता है।  इसका प्रवाह  हवा के साथ फैलता है।  अगर यह गैस  हवा में मिल जाए तो नाक और गले में  जलन होने लगती है और फेफड़ों में पानी भरने लगता है।
        इस हादसे में 5 लोगों की मौत किंग जॉर्ज अस्पताल में इलाज के  दौरान हुई जबकि तीन लोग कारखाने के आसपास काल के  गाल में समा गए।  वाइजग पुलिस के अनुसार  86 लोगों  को वेंटिलेटर पर रखा गया है और  प्लांट मैनेजमेंट  के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर ली गई है।  सरकार ने हादसे में मारे गए लोगों  के परिवारों को एक ही करोड़  रुपए की मदद देने की घोषणा की है और वेंटिलेटर पर लोगों के परिवारों को 10 लाख-10 लाख  रुपए दिए जाएंगे। आंध्र प्रदेश  हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब तलब किया है कि रिहायशी इलाके में प्लांट बनाने की अनुमति कैसे दी गई।  भारतीय नौसेना ने 5 पोर्टेबल मल्टीफिट ऑक्सीजन मैनीफोल्ड सेट्स  गैस पीड़ितों के लिए किंग  जॉर्ज अस्पताल को दिया है।

   नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के अनुसार हाल से लगभग 130 महत्वपूर्ण रासायनिक दुर्घटनाएं भारत में घटीं।  इसमें 259 लोग मारे गए और 560 से ज्यादा लोग आहत हो गए। देश की 25 राज्यों और 3 केंद्र शासित क्षेत्रों के 301 जिलों में  1861 से ज्यादा ऐसी  ऐसी इकाइयां हैं जहां कभी भी बड़ी दुर्घटनाएं हो सकती हैं।  इसके अलावा हजारों ऐसे निबंधित कारखाने हैं जहां दुर्घटनाएं हो सकती हैं।  स्टाइरीन की लीक से मारे गए लोग तथा घायल लोग लॉक डाउन के बाद कारोबार आरंभ करने की अनुमति के  यह पहले शिकार हैं।  जबकि इसका उत्पादन भंडारण और आयात खतरनाक रसायन से जुड़े हजार्ड्स केमिकल  रूल्स 1989  जैसे कानून से नियंत्रित होता है। इस कानून  के तहत खतरनाक  रसायनों की उत्पादन और भंडारण से जुड़े पहलुओं के लिए  कठोर निर्देश हैं।  राज्य सरकार  और कंपनी कोई मालूम है कि यह खतरनाक रसायन है और इससे विस्फोटक स्थिति पैदा हो सकती है।  हो सकता है कि कारखाने में भंडारण के स्वरूप में कहीं खामी हो। पारदर्शी निगरानी किसी भी तरह के औद्योगिक विकास के लिए बाधक नहीं है उल्टे यह  गड़बड़ियों को खत्म करते हुए स्थाई विकास  को बढ़ावा देता है। वाइजग की घटना  ने  यह मानने के लिए बाध्य किया है कि हमने भोपाल गैस कांड से कुछ सीखा नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व सलाहकार तुषार कांत जोशी के अनुसार हमें रासायनिक कारखानों के रजिस्ट्रेशन को  कठोर सुरक्षा नियमों से  जोर दिया जाना चाहिए।  इतना ही नहीं  इंसानी सेहत और पर्यावरण के  जोखिमों  का भी इसके साथ आकलन किया जाना चाहिए। यह कारखाने से रसायन के लीक होने की पहली घटना नहीं हमारे देश में,  इसके अलावा मोटर गाड़ियों से निकलने वाले धुएं,  सिगरेट पीने से होने वाले प्रदूषण  इत्यादि का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।  क्योंकि यह सब जैव  याैगिक  हैं और फेफड़े में जल्दी  पहुंचते हैं।  इन्हें खून और पेशाब जांच करने से पाया जा सकता है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फेफड़ा और नर्वस सिस्टम इसके प्रभाव या किसी भी रासायनिक प्रभाव  का सबसे पहले शिकार होता है और यह कैंसर पैदा करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिनके लिए देश की जनता का जीवन बहुमूल्य है वह   इस तरफ जरूर देंगे  और पूरी उम्मीद है देश में ऐसी घटनाओं या प्रदूषण के खिलाफ कठोर कानून बनेगा।  प्रधानमंत्री ने  गुरुवार को ही ट्वीट किया था और वाइजग  की घटना पर चिंता जाहिर की थी।  उनकी चिंता ही संकेत देती है कि  इस तरह के रासायनिक प्रभावों से निपटने के लिए आगे कुछ न कुछ होगा।फिलहाल तो सब कोविड-19 से निपटने में लगे हैं। प्रधानमंत्री इस बात को लेकर परेशान हैं कि  लॉक डाउन की अवधि आगे बढ़ाई जाए अथवा नहीं।  अगर गंभीर रासायनिक गवेषणा की जाए तो संभव है प्रदूषण और कोविड-19 में कहीं ना कहीं कोई संबंध हो।  फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती यह जांच का विषय है।

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