अम्फान के विनाश के बाद समाज की भूमिका
देश के पूर्वी और पूर्वी दक्षिणी क्षेत्र में सुपर साइक्लोन अम्फान भारी विनाश किया है। जब तूफान चल रहा था और चारों तरफ छितराए मेघ नीचे दौड़ती- चमकती बिजली और तेज बारिश में पेड़ ऐसे झूम रहे लगता था भगवान शिव तांडव कर रहे हैं।
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं
भारी विनाश हुआ। दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तूफान से बर्बाद हुए इलाकों का जायजा लिया और बंगाल को राहत और निर्माण के लिए 1000 करोड़ दिए। यह रुपए पर्याप्त है या नहीं इस पर बहस नहीं है। बात है तो सिर्फ विनाश की। कोलकाता शहर और आसपास के क्षेत्रों में जो बर्बादी हुई है वह इतनी ज्यादा है कि उसे तुरंत ठीक नहीं किया जा सकता। लेकिन, लोग धैर्य रखने की बजाए आंदोलन- प्रदर्शन पर उतारू हैं। कुछ लोग सरकार को दोष दे रहे हैं तो कुछ लोग शहर की योजना को। इस तूफान से 84 लोग मारे गए और आंकड़े बताते हैं कि लगभग डेढ़ करोड़ लोग इससे प्रभावित हूं। घरों की छतें हो गई हैं, खिड़कियों के कांच टूट गए हैं, पेड़ गिर गए हैं बिजली के खंभे गिर गए हैं। जन और धन को जो हानि पहुंची है उसमें से अधिकांश पेड़ों के गिरने तथा बिजली के करंट लगने से हुआ है। लगभग पूरे शहर में बिजली नहीं है इंटरनेट की पूरी सुविधाएं नहीं है। कई क्षेत्रों में पीने का पानी भी नहीं है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बर्बादी पर कहा कि ऐसा विनाश जीवन में नहीं देखा। महानगर के 2 जिले मटियामेट हो गये और एक तरह से इनका पुनर्निर्माण करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने कोरोनावायरस महामारी के संदर्भ में इस तूफान से हुई बर्बादी का जिक्र करते हुए कहा कि वायरस के फैलने से रोकने के लिए बने निवास के अलावा भी लोग इधर उधर शरण देने के लिए भागते दिखाई पड़े। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम तीन तरफ से संकट झेल रहे हैं- पहला तो कोरोना वायरस दूसरा प्रवासी श्रमिक और तीसरा यह तूफान। कोलकाता की सड़कों पर 70000 लोग रहते हैं। कोरोना वायरस में लंबे लॉक डाउन के चलते हुए आर्थिक संकट में बहुतों का रोजगार चला गया और फिर बांस तथा तिरपाल से बने उनके झोपड़े भा तूफान से बर्बाद हो गए। पेट में रोटी नहीं, सिर पर छप्पर नहीं और सामने कोई उम्मीद नहीं। राहत और बचाव के लिए सेना उतारी गयी है जो अभी बर्बादी का और कोई बच जाए उसे खोजने में लगी है। बस केवल इतना दिखता है कि सरकार कुछ कर रही है।
तूफान की पूर्व सूचना के बाद ही सरकार सक्रिय हो गई थी और बहुत बड़ी संख्या में लोगों को हटा दिया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अनगिनत लोगों की जिंदगी बच गई लेकिन इसके बावजूद कितने लोग मारे गए और कितनी बर्बादी भी इसका अंदाजा अभी पूरी तरह नहीं लगाया जा सका है। संचार व्यवस्था जब ठीक हो जाएगी तभी सही अंदाजा लग सकेगा। केवल शहर की ही बात नहीं है बंगाल और बांग्लादेश कि सीमा पर भी काफी विनाश हुआ है। विख्यात रॉयल बंगाल टाइगर की रिहाईश और दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव को काफी क्षति पहुंची है। उन इलाकों में ऐसे लग रहे हैं जैसे उन पर बुलडोजर चला दिया गया हो। इस इलाके में भारतीय पक्ष लगभग 40 लोग बसते हैं। सब कुछ बर्बाद हो गया राहत और बचाव कार्य आरंभ किया गया है। फिर भी सड़कें बंद हैं, आवागमन रुक गया है। यहां तक कि कोरोना वायरस से जंग में जुटे कोरोना वारियर्स और डॉक्टर्स भी अस्पताल नहीं पहुंच पा रहे हैं। विख्यात समाजशास्त्री माया एंजलू का कहना है कि “ जब तक आप बहुत अच्छी तरह नहीं जानते तब तक जितना अच्छा हो उतना करते हैं और जब बहुत अच्छी तरह जान लें तो और अच्छा कीजिए।” कोरोना वायरस के प्रभाव से लोगों में धीरे धीरे डिप्रेशन बढ़ता जा रहा था लेकिन इस तूफान के कारण डिप्रेशन और ज्यादा बढ़ गया। इस बात के कई सबूत है कि लोगों में सहानुभूति की भावना हारने से डिप्रेशन में थोड़ी कमी होती है। हैप्पी हाइपोक्सिया के सिद्धांतों के अनुसार अगर लोगों में डिप्रेशन बढ़ेगा तो सामाजिक विखंडन बढ़ता जाएगा और एक दिन समाज को हम खंडित तथा भंग अवस्था में पाएंगे। ऐसी स्थिति में मदद भी बेकार हो जाएगी। इसलिए समाज को टूटने से बचाने के जरूरी है लोगों में सहानुभूति की भावना भरें। मदर टेरेसा का कहना था कि सहानुभूति का एक स्पर्श ही लोगों में जीने की भावना भर देता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को कहां खुद उनके घर में बिजली नहीं है। इस बात से सहानुभूति का कितना संचार हुआ है इसका अंदाजा लगाना कठिन है। आज हालात ऐसे हैं अगर आप थोड़ा भी सामर्थ्य है तो समाज के घावों पर मरहम लगाइए।
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