सपना या सच
हमारे देश भारत में योजनाएं बहुत बनती हैं और मजबूरी यह है कि सब के सब लागू नहीं होती। बीच में ही छूट जाती हैं। अब इसके लिए लोग दोषी हो या सिस्टम यह कह पाना बड़ा मुश्किल है क्योंकि जिस कोण से देखेंगे अलग ही परिदृश्य नजर आएगा। कहीं लोग सरकार पर टीका टिप्पणी करते नजर आएंगे और कहीं सिस्टम पर। बहुत पहले अमित शाह ने पढ़े लिखे लोगों को सुझाव दिया था कि वे पकौड़े बनाएं उसे लेकर कुछ लोगों ने इसे पकौड़ा अर्थशास्त्र का नाम दिया और कहा कि उच्च शिक्षा के बाद यही बाकी रह गया है। पढ़े लिखे लोगों की बेरोजगारी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, आंकड़ों की व्याख्या होती है एक माकूल सवाल है कि हर हाथ को काम कहां से मिलेगा? लोग काम की तलाश में बाहर जाते हैं और अगर कोविड-19 जैसे मामले हुए तो वहां न रोजगार रहता है और न रोटी। घर लौटने की पीड़ा और घर नहीं पहुंच पाने की लाचारी का समीकरण कितना दुखदाई होता है लौटते मजदूरों के चेहरे पर देखा जा सकता है। लाचारी का चश्मा अगर आंख से उतार दिया जाए तो उन लौटते मजबूर मजदूरों की आंखों को कभी पढ़ कर देखिए। मंगलवार को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए उसी पीड़ा को रेखांकित किया था और और बुधवार से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्तीय पैकेज के नाम से उस पीड़ा के अलग अलग पहलुओं को विश्लेषित कर रही हैं। बुधवार को एम एस एम ई सेक्टर के लिए पैकेज की घोषणा हुई और उस के दूसरे दिन प्रवासी श्रमिकों, सड़क के किनारे स्टाल या रेहड़ी लगाने वाले छोटे व्यापारियों स्वरोजगार में जुड़े लोगों और छोटे किसानों के लिए बड़े एलान कि एलान किए। वित्त मंत्री के अनुसार आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की दूसरी किस्त में इन्हीं लोगों को लाभ मिलेगा।
वित्त मंत्री ने राहत पैकेज की दूसरी किस्त की घोषणा करते हुए बताया कि 3 करोड़ छोटे किसान कम ब्याज दर पर 4 लाख करोड़ रुपए का कर चुके हैं। 25 लाख नए किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को 25000 करोड़ रुपए का कर्ज मंजूर किया गया है। प्रधानमंत्री ने जिस 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की है उसका 1.7 लाख करोड़ रुपए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में नगदी व खाद्यान्न मदद की मार्च में की गई घोषणा तथा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 5.6 लाख करोड़ रुपए के विभिन्न उपाय शामिल है।
भारत की जीडीपी का एक हिस्सा आर्थिक राहत पैकेज दिया जा रहा है। यह सरकार का मानवीय कर्तव्य है केंद्र सरकार को इसके लिए साधुवाद। लेकिन जरा एक तथ्य पर गौर करें। किसी को मालूम नहीं कोविड-19 का मामला कहां तक जाएगा और कब्ज से मुक्ति मिलेगी लेकिन इतना तो तय है कि भारत की पहले से सुस्त अर्थव्यवस्था पर इसका महत्वपूर्ण है प्रभाव पड़ेगा। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट के ताजा आंकड़ों के अनुसार कई देशों में कई देशों में आर्थिक मंदी आने और कंपनियों को दिवालिया होने का खतरा बढ़ गया है और इस मामले में हमारा भारत की अलग नहीं है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडी ने चालू वर्ष में भारत के विकास दर में भारी कटौती की है और इसे 5.3 प्रतिशत से घटाकर 2.5% कर दिया है। हर क्षेत्र में कारोबार हुआ है। लघु उद्योगों के लिए और छोटे-छोटे रोजगार करने वालों के लिए यह स्थिति अत्यंत कष्टदायक है। प्रधानमंत्री ने इसी के लिए प्रधानमंत्री ने और वित्त मंत्री ने एम एस एम ई तथा सड़क पर रोजगार करने वालों को मदद देने की घोषणा की है। क्योंकि इस हालत में प्रभावित सेक्टर को वित्तीय समर्थन और वित्तीय सिस्टम बचाने के लिए इसमें नगदी डालना जल्दी डालना जरूरी है। हालांकि आर्थिक उथल-पुथल से मुकाबले के लिए सरकार को तात्कालिक उपाय के अलावा सरकार को दूरगामी कदमों पर भी ध्यान देना होगा। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में कमी के खिलाफ भी कदम जरूरी है। भारत मौसम को केंद्र में रखकर दुनिया के सामने विकास का नया मॉडल पेश कर सकता है।
सबक के बाद, अगर भारत सरकार ने इस संकट पर विजय पा ली तो यह तय है कि देश नव निर्माण की तरफ और आत्मनिर्भरता की तरफ आगे बढ़ने लगेगा। क्योंकि हमारे देश में विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व डेमोग्राफिक डिविडेंड पहले से उपलब्ध । विकास की यह स्थिति एक तरह से परमाणु विखंडन की स्थिति है जैसे ही विखंडन को गति मिलेगी ऊर्जा का प्रसार शुरू हो जाएगा और यह प्रसार अबाध होगा। एक ऐसी ऊर्जा हमारे देश में उत्पन्न होगी जिसका भविष्य में विनाश असंभव है। दार्शनिक और गणित शास्त्री बट्रेंड रसैल ने कहा है कि विकास का विस्फोट परमाणु विस्फोट से कम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी विखंडन को आरंभ करने में लगे हैं।
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