कोविड-19 के साए में संकटकालीन संचार की जरूरत
इन दिनों कोविड-19 और अन्य सामाजिक पहलुओं पर कई तरह के समाचार और सूचनाएं आ रही है कितने विश्वसनीय हैं और कितने नहीं सबके लिए संभव नहीं है और इससे महामारी का संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि ज्यादा सक्रियता के साथ नियामक कदम उठाए जाएं ताकि सही और विश्वसनीय सूचनाएं प्राप्त हों और उनके स्रोतों को आगे बढ़ाया जा सके। साथ ही साथ आंकड़ों पर आधारित वास्तविक विश्लेषण को जनता तक पहुंचाया जा सके। दुनिया में जिस तरह से यह महामारी फैली है और जितनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है उसके बाद भारत सहित कई अन्य देशों में अपने यहां लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी है। सोशल डिस्टेंसिंग के नियम कठोर कर दिए गए हैं यहां तक कि उसका सख्ती से पालन करने के लिये पुलिस का उपयोग किया जा रहा है। सामूहिक आयोजनों पर पाबंदी लगा दी। अन्य देशों के साथ लगी अपनी सीमाएं सील कर दी गई हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सामने यह मिसाल रखी कि भारत दुनिया का पहला उदारवादी लोकतांत्रिक देश है जिसने अपने यहां राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन लगाकर लोगों और वस्तुओं के आवागमन पर प्रतिबंध लगाया। इस दौरान केवल आवश्यक सेवाओं और सरकारी सेवाओं को ही लॉक डाउन से बाहर रखा गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड -19 को महामारी घोषित किए जाने के पहले ही सोशल मीडिया पर इससे जुड़ी गलत जानकारियों की बाढ़ आ गई। इस महामारी के स्रोत, इसके तेजी से बढ़ते प्रकोप, इसके लक्षणों और इसके संभावित इलाज को लेकर तरह-तरह की बातें सोशल मीडिया में फैलने लगी। चीन ने अपने हुआ शहर में कुछ लोगों के बीच निमोनिया जैसी बीमारी फैलाने वाले विषाणु के बारे में दुनिया को जानकारी दी थी। लेकिन इससे जुड़ी फेक खबरें दुनिया भर में वायरस से भी तेजी से फैल गई और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन्फोडेमिक यानी गलत जानकारी की महामारी का नाम दिया था। इसी तरह जब जब स्वास्थ्य अधिकारियों ने अति सक्रियता दिखाते हुए आम लोगों तक इस महामारी की सही जानकारियां पहुंचाई तब तब राजनेताओं के उल्टे बयानों ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। एकमात्र नरेंद्र मोदी ऐसे जन नेता है जिन्होंने इस बारे में ना कुछ नाही अपने लोगों को गलत बातें कहने दी। मोदी का प्रयास सिर्फ लोगों में एकजुटता बनाए रखने और उनका मनोबल कायम रखने तक ही सीमित रहा बाकी जो काम किया वह विशेषज्ञों ने किया कर्मियों ने किया और अधिकारियों ने किया इसलिए इसे लेकर बहुत ज्यादा भ्रम अपने देश में विश्वसनीय मीडिया में नहीं फैल सका। लेकिन इससे गलत जानकारियों की बाढ़ नहीं रुक पाई। उदाहरण के लिए व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड किए गए समाचार कुछ ऐसे थे जिससे देश को भयानक आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। उदाहरण के लिए देखें कि बात फैली कि मुर्गियों से वायरस का संक्रमण होता है और इससे हमारे देश में घरेलू उद्योगों की हालत खराब हो गई पूरे उद्योग को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार इसे चीनी वायरस कहते रहे। अगर इसकी व्याख्या करें स्पष्ट होगा की ट्रंप ने अपने देश में इस बीमारी कि रोकथाम की कोशिश शुरू में नहीं की और लोगों का ध्यान हटाने के लिए इसे उन्होंने चीनी नाम दे दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू से ही सोशल डिस्टेंसिंग और लॉक डाउन यह व्यवस्था कर इसकी रोकथाम के लिए सार्थक प्रयास आरंभ कर दिए। उन्होंने इसके लिए चीन को या चीन के लोगों को नस्लीय आधार पर निशाना नहीं बनाया। लेकिन हमारे देश के कई नेताओं ने इस संबंध में गलत बयानी की। जब राजनेता और बाबा लोग एक जैसी भाषा बोलेंगे तो अफवाहों की गति बढ़ती जाएगी।
7 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से जनता से अपील की थी कि वह अफवाहों पर यकीन न करें। अपने अंदर कोई भी संदिग्ध लक्षण देखने के बाद सूरत डॉक्टरों से संपर्क करें क्योंकि तब तक कोरोना वायरस का भारत में संक्रमण आरंभ हो चुका था। फोन करने वाले लोगों को सावधान करने के लिए एक विशेष संदेश सरकार के निर्देश पर आरंभ हो चुका था। लोगों को यह बताया जाता था कि कोरोना वायरस से जुड़ी जानकारी के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर जाएं। राज्य सरकारों ने फेक न्यूज़ पर कठोर रुख अपनाया। कई प्रांतों में गलत खबरों के प्रसार को रोकने के लिए साइबर क्राइम की टीम बनाई तो कई प्रांतों में ऐसा करने वालों को तुरत गिरफ्तार करने का अभियान आरंभ हो गया। फिर भी गलत खबरें आती रहीं और सच तथा झूठ के बीच के अंतर धुंधलाते गए। इससे साबित होता है कि गलत जानकारियों की नियामक दृष्टि से निगरानी कितनी मुश्किल होती है। गलत जानकारियों की बाढ़ आमतौर पर संकट के समय ज्यादा आती है। फेक न्यूज़ असल में असली जानकारी को अपने स्वार्थ के अनुसार तोड़ मरोड़ कर पेश करने की प्रक्रिया है। यही नहीं आम लोग ना केवल ऐसी खबरों पर विश्वास कर लेते हैं बल्कि उन्हें दूसरों से शेयर भी करते हैं। कैलिफोर्निया के कम्युनिकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक गैरी हारशेल के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ्य के संकटों के दौरान संचार के नेटवर्क पर बढ़ जाता है इसलिए वैज्ञानिक समुदाय आरसीसी यह मांग करता आया है की मास मीडिया की तरह सोशल मीडिया पर भी जनता से सीधे संवाद करने की जरूरत है। नियमित संवाद से सूचना की विश्वसनीयता की पुष्टि होती है। इन जानकारियों का इस्तेमाल करने वाले लोग किसी आपात परिस्थिति में भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार सच्ची जानकारियों की तलाश करते हैं। सोशल मीडिया नेटवर्क पर संचार के प्रवाह की निगरानी कर पाना बहुत बड़ी चुनौती बना हुआ है। यही नहीं विख्यात संचार वैज्ञानिक लोटस रुआन के अनुसार गलत जानकारियों के प्रवाह पर नियंत्रण करने की राह में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसका नियंत्रण किसके हाथ में हो। केवल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सहारे संचार के प्रतिमान बदलना बहुत बड़े जोखिम का काम है और कोविड-19 की महामारी कि इस संकट से एक बात और स्पष्ट हो गई है कि सरकारी अधिकारियों को चाहिए वे भरोसेमंद माध्यमों और प्रभावशाली लोगों का इस्तेमाल करके सोशल मीडिया पर संवाद को अधिक भरोसेमंद और सटीक खबरों से लाइक करें। इससे सही और विश्वसनीय जानकारी के स्रोतों को प्राथमिकता के आधार पर आगे बढ़ाया जा सकेगा साथ ही आंकड़ों पर आधारित वास्तविक विश्लेषण को आम लोगों तक पहुंचाया जा सकेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना बिल्कुल सही है कि गलत जानकारियां मौजूदा महामारी से लड़ने में बाधक हैं इसलिए डिजिटल श्रोताओं के बड़े समूह को सही जानकारी देने के लिए विश्वसनीय माध्यमों का विकास हो सकेगा। जब तक सही सूचना आम जनता तक नहीं पहुंचेगी अब तक इस महामारी को पराजित करना बड़ा कठिन होगा।
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