CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, May 18, 2020

रोजी रोटी को लेकर सियासत







मां-बाप की उंगली पकड़े बिलखते रोते बच्चे जिन्हें कहीं-कहीं पुलिस वाले कुछ खिला देते हैं और जवाब में वे उन्हें धन्यवाद देते हैं। सड़कों पर टायर जलाकर विरोध जाहिर करते प्रवासी मजदूर और सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए मजदूरों के शवों पर सियासत। एक अजीब समां है, जिसकी कल्पना वही कर सकता है जो इस पीड़ा से दो- चार होता है। अपनी हड्डियों को गला कर जिन मजदूरों ने सड़कों को बनाया वही मजदूर आज उन्हीं सड़कों पर मोटर गाड़ियों की चपेट में आज तक जान दे दे रहे हैं। मोटर गाड़ियों के काले टायर से कुचले मजदूरों की लाशों से कोलतार की काली सड़कों पर बहते लहू पीछे से आने वाली गाड़ियों के टायर कुछ ही मिनटों में चाट जाते हैं। बच जाते हैं अपनों के आंसू। अच्छी जिंदगी और अपने बच्चों के लिए घर- बार छोड़कर आने वाले इन लोगों की पीड़ा अंदाजा नहीं लग सकता।


तुम्हारे आंगन में सुनहरी किरण के लिए


अपनी जिंदगी में पतझड़ डाल देते हैं


यह लोग लौट हैं रहे हैं क्योंकि कोविड-19 के कारण देशभर में काम बंद हो गया यानी रोजगार बंद रोटी कहां से मिलेगी। बस उसी रोटी के लिए वे अपने घरों को लौट रहे हैं। पर सवाल है कि क्या रोटी मिल सकती है? क्या उनकी उम्मीदें पूरी हो सकती हैं? आइए जरा हकीकत को देखते हैं। उलझाने वाले आंकड़ों को छोड़िए औरएक समन्वित तस्वीर की बात कीजिए। कोविड-19 का संकट आने वाले दिनों में तमाम आशंकाओं से भी बड़ा साबित होने वाला है। इससे संक्रमित लोगों की संख्या हमारे देश में 84 हजार से ज्यादा हो गई है। इतना ज्यादा फैलने की उम्मीद नहीं थी। जब पहला लॉक डाउन लगा था तो उस समय हमारे देश में 500 संक्रमित रोगी थे चीन का आंकड़ा 80 हजार पार हो चुका था। सरकार मामलों को दुगना होने की दर को देख कर कह रही है संकट घट रहा है। चौथा लॉक डाउन मंगलवार से लागू हुआ जो इस महीने की 31 तारीख तक चलेगा। इस दौरान थोड़ी रियायतें मिली है लेकिन शायद इससे काम नहीं बनेगा ना मजदूरों का पलायन रुकेगा और ना ही उनके आंसू। क्योंकि संक्रमण की दर इसी तरह बढ़ती रही तो जुलाई के शुरू के दिनों में संक्रमण की यह संख्या बढ़कर तीन लाख से ज्यादा हो जाएगी। इसमें कोई शक नहीं है किस सरकार ने इसके रोकथाम की कोशिश नहीं की। कोशिशों को तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अनुकरणीय बताया। लेकिन मामले गिर नहीं रहे हैं बल्कि उन में वृद्धि हो रही है।अगर यही हाल रहा तो अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबरों के लिए तैयार हो जाइए। अर्थव्यवस्था के जाखड़ आने के बाद जो हालात होंगे उसकी कल्पना भी संभव नहीं है। देश के आर्थिक विकास का आकलन करने वाले लोग अभी भी पॉजिटिव ग्रोथ की बात कर रहे हैं और शेयर बाजार अल्पकालिक महत्त्व की खबरों पर ही ऊपर नीचे हो रहा है। दोनों ही किसी आसन्न सुनामी की संभावना से इंकार कर रहे हैं।


इस हफ्ते वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ कदमों की घोषणा की। ऐसा किया जाना सही है लेकिन लगता है कि पैकेज का आकार थोड़ा बड़ा कर बताया गया है। अगर, सरकार की सीमाओं के बरअक्स घोषणाओं और कार्यान्वयन के बीच की खाई का हिसाब ना दिया जाए तब भी सरकार की सीमाएं और क्षमताएं स्पष्ट हैं। सरकार के मुताबिक सरकारी और नागरिक संगठनों के आश्रय स्थलों में लगभग 8 करोड़ मजदूर शरण ले रखे हैं। वित्त मंत्री ने गुरुवार को जो घोषणा की वह इन शरण स्थलों में शरण ले रखे हैं। यह आंकड़ा स्तब्ध करने वाला है। इतनी बड़ी संख्या को खाना देना तो दूर खाना देने का बंदोबस्त करना भी कठिन है। वित्त मंत्री गरीबों और प्रवासियों को जो पेश कर रही हैं वह बहुत ही कम है इसलिए लाखों लोगों को अपने ही भरोसे छोड़ दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अभाव और सरकारी रोजगार कार्यक्रमों की बदहाली के कारण यह लाखों लोग फिर से गरीबी रेखा के नीचे आ जाएंगे। अंत में, निजी क्षेत्रों में रोजगार की बात। निजी क्षेत्र वादियां चाहते हैं कि जो मजदूर अपने घरों की ओर चले गए सरकार उन मजदूरों को वापस लाने का कदम उठाए। यह मजदूर सैकड़ों किलोमीटर से चलकर अपने गांव लौट रहे हैं। उनका लौटना और उनकी निराशा साफ बताती है क्यों उनके नियोक्ताओं ने उनकी कितनी उपेक्षा की। इसके बाद राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन कर उनके जले पर नमक छिड़कना जैसा हो गया। इससे भारी अराजकता फैलेगी। लेकिन, समस्या पैदा करने वाले कानूनों का जवाब अराजकता नहीं हो सकती। यही नहीं, जिन निवेशकों की आवभगत की जाती है वे मनमाने ढंग से काम करने वाली सरकारों को संदेह की नजर से देख सकते हैं कि कहीं कल उन्हें उनका शिकार ना होना पड़े।


एक रोटी खाता है


दूसरा बनाता है


तीसरा न रोटी खाता है ना बनाता है


वह रोटियों से खेलता है





आने वाले दिनों में रोटियां खाने और बनाने वाले लोग शायद कतार में खड़े मिलें लेकिन रोटियों से खेलने वाले लोग बदस्तूर खेलते रहेंगे ।

0 comments: