जम्मू कश्मीर में आतंकवादी बुरहान वानी की एनकाउंटर में मौत के बाद पूरी घाटी में तनाव फैल गया है। उसके जनाजे में शामिल होने वालों की भीड़ ने फौज पर गुस्सा उतारा और जवाबी कार्रवाई में 12 लोग मारे गये। ऐसा क्यों हुआ? हमारे भीतर की राष्ट्रीय भाहवनाएं क्यों खत्म होती जा रही। बात केवल कश्मीर की नहीं है ऐसा लग भग चारों तरफ हो रहा है। बंगाल में आई एस का डर, बंगलोर में किसी अन्य संगठन का भय , दिल्ली में किसी और का आतंक। सब जगह फौज, पैरा मिलिटरी, और उसके फलस्वरूप तनाव। इसमें सबसे ज्यादा आघात लगता है तो देश पर। आप किसी से पूछेंगे कि राष्ट्र क्या है? तो हर कोई अलग अलग जवाब देगा। राष्ट्र कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम स्पर्श कर के देख सकें। यह एक भावना है। इसके पहले देखना जरूरी है कि हमारे भीतर यह भाव क्यों मरता जा रहा है? इस पर बात करने के पहले यह जानना जरूरी है कि बुरहान की मौत पर इतना क्यों तनाव हुआ।सुरक्षाबलों के मुताबिक बुरहान मुजाहिदीन कमांडर था और सोशल मीडिया पर बहुत लोकप्रिय था। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसमें और आम लोग शामिल हो कते हैं और हालात बहुत बिगड़ सकती है। इसका कारण है कि इतने सालों में कश्मीर की स्थिति सुधारने के लिये राजनीतिक कोशिशें नहीं हुईं। कभी राजनीतिक तौर पर कश्मीर पर राजनीतिक बातें नहीं हो रहीं है। सड़कों पर जो तनाव दिख रहा है वह उसी खीझ का नतीजा है। सरकार कह रही है कि ‘वहां हालात से सख्ती से निपटा जायेगा।’ अब सवाल है कि सख्ती किस पर की जायेगी? अगर आप अपनी ही जनता पर सख्ती करेंगे तो क्या नतीजा होगा इससे भी वाकिफ होंगे। इससे जमीनी हालात नहीं बदलेंगे। कश्मीर की विपदा यह है कि यहां सरकारें अपना किरदार बदलती रहतीं हैं। जो विपक्ष में रहता है वह कश्मीरीयत की बात करता है और जो सत्तापक्ष में रहता है वह दमन की बात करता है। कोई भी संस्कृति , भाषा, जीवन शैली के उसपार जाकर नहीं सोचता। सब लोग एक दूसरे पर वर्चस्व कायम करना चाहते हैं। कश्मीरी चाहते हैं कि वहां कश्मीर का वर्चस्व हो, मराठी महाराष्ट्र में मराठियों का, बंगाल में यहां के धरतीपुत्रों का। यह एक तरह से मनोवैज्ञानिक संकट है। हमारा दोष यह है कि हम यानी हमारी जनता भाषा, संस्कृति और वे ऑफ लीविंग से अलग जा कर नहीं सोचते और ना लोगों को ऐसा करने के लिये उकसाने वालों का विरोध। हम ऐतिहासिक तौर पर इसके शिकार हैं। आपने अंग्रेजी शासन के पहले इस्ट इंडिया कम्पनी के शासन का इतिहास देखें। अंग्रेजों की हुकूमत बंगाल से शुरू हुई। लोगों तने कभी सोचा क्यों ? नेशनहुड या राष्ट्रवाद का जाज्बा नहीं था उस समय भी। देश के अन्य भागों के लोगों ने सोचा बंगाल गुलाम हो रहे हैं हमारा क्या। यह जो हमारा क्या वाला भाव है वही सबसे खतरनाक है। इससे देश को उबरना होगा। यह तभी हो पायेगा जब हमारे अंदर राष्ट्रवाद भरा रहेगा। चाहे वह कश्मीर हो या बंगाल या अगरतल्ला या केरल सब एक है। कहीं भी अत्याचार का विरोध है। हम ऐसा नहीं सोचते। हम अत्याचारियों और आतंकवादियों का एक स्वर से विरोध नहीं करते बल्कि बचने की राह खोजते हैं।
वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है
तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में
कठिनाई यह है कि हमारे देशवासियों में जो वतनपरस्ती की भावनाओं की स्पष्ट अभिव्यक्ति का अभाव है उसका कारण है कि हम बात वतन की करेंगे लेकिन जब उसकी अभिव्यक्ति का वक्त आयेगा तो हम किनारा कर लेंगे। एक चोर पकड़ाता है तो हम कहेंगे कि उसे जरूर सजा मिले लेकिन एक आतंकी पकड़ाता है तो बहसें होने लगतीं हैं। हम अपने दुश्मन को साफ नहीं देख सकते , हम कन्फूज्ड हैं इस मामले को लेकर। हमारे राजनीतिज्ञों ने इस मुल्क के लोगों को इसके लिये तैयार नहीं किया उल्टे उन्हें बांटने में लगे रहे।
न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिंदोस्तां वालों
तुम्हारी दास्तां तक नहीं होगी दास्तानों में
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