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Friday, July 8, 2016

कथनी और करनी में फर्क है

अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के अवकाश ग्रहण के दिन जैसे जैसे करीब आ रहे हैं वैसे वैसे अमरीकी विदेश विभाग के सुर बदल रहे हैं। अभी हाल में अमरीकी विदेश विभाग की एक रपट में कहा गया कि ‘भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिनबिड़ी बड़ी बातों ने उन्हें भारी विजय दिलायी उनमे सबसे प्रमुख प्रस्ताव था आर्थिक विकास का। उनकी नीतियों में वह बात नहीं दिख रही जिससे देश में निवेश के अवसर बढ़ें। उनका बड़बोलापन नीतियों में सुधार की धीमी गति से मेल नहीं खाता।’ विदेश विभाग की रपट में कहा गया है कि मोदी अभी तक भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित नहीं करा पाये और ना ही टैक्स सरलीकरण कानून ही पास करा पाये। जिसके कारण कई निवेशक जिन्होंने मोदी जी के समर्थन में कदम आगे बढ़ाये थे वे अब अपने हाथ पीछे खींचते नजर आ रहे हैं। यही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि द​िक्षिण एशिया में विकास की जो तुलना भारत ने अपने साथ की है वह अनिशयोक्तिपूर्ण है। देखने में तो ऐसा लगता है कि भारत द​क्षिण एशिया में तेजी से बढ़ती अर्थ व्यवस्था है पर उसका सकल घरेलू उत्पाद जो 7.5 प्रतिशत बताया गया है, निवेशकों को आशंका है, बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है। उनके बड़बोलेपन की एक मिसाल है कि उन्होंने हर जगह कहा कि प्रधानमंत्री जन धन योजना से गरीबों अर्थ व्यवस्था में भागीदार बनाने की उनकी यह कोशिश है ​, जबकि यह मोदी जी के आने के पहले से ही चल रहा था। खासकर आधार योजना, ई भुगतान इत्यादि। यह मोदी जी की देन नहीं है लेकिन वे इसे हर जगह भुनाते चलते हैं। आंकड़े बताते हैं कि मोदी जी के शासनकाल के पहले दो साल में  पू पी ए सरकार ने  बेसिक सेविंग्स बैंक डिपोजिट एकाउंट्स  योजना के तहत 4.6 करोड़ और 6.1 करोड़ खाते खोले थे और मोदी जी के शासन काल में पहले एक साल में 6.7 करोड़ खाते खुले।  अब अगर फर्ज करें कि मोदी जी के अलावा कोई दूसरी सरकार होती और वह भी यू पी ए की तरह 6.1 करोड़ खाते खोलती तो मोदी जी का परफारमेंस क्या होता इसका अंदाजा लगा सकते हैं। इसके बाद 31 मार्च 2016 तक उन्होंने 9.6 करोड़ खाते खुलवाये , यह एक प्रभावशाली आंकड़ा है। मोदी भ्रष्टाचार की बात करते हैं और बताते हैं कि 2जी या 3जी घोटालों से देश की छवि बिगड़ी है जबकि उनकी सरकार ने कई प्राकृतिक संसाधनों का तेज गति से नीलाम किया है और सारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लायी है। ऐसा करने के लिये वे मजबूर थे यह कोई नयी बात नहीं है। क्योंकि उस सरकार के घोटालाभरी नीलामियों के फलस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने उन सौदों को रद्द कर दिया था और उन्हे नीलाम करना सरकार की बाध्यता थी। अलबत्ता रिपोर्ट में इस बात के लिये मोदी सरकार की प्रशंसा की गयी है कि उसका रुख निवेशकों के प्रति  सामान्य तौर पर दौसताना है और मोदी सरकार ने कई क्षेत्रों में खासकर  , नागरिक उड्डयन, सुरक्षा, औषधि उत्पादन , ई – कामर्स जैसे हलकों में कायम अवरोधों को हटाकर आसानी जरूर पैदा की है। लेकिन कई क्षेत्रों इक्वीटी की सीमा तय होने के कारण निवेश का वातावरण सुहाना नहीं हो पा रहा है।  मोदी जी कहते चल रहे हैं कि बीमा क्षेत्र में उनकी सरकार ने शतप्रतिशत विदेशी विनियोजन की अनुमति दी है पर सरकारी बयान बताते हैं कि यह महज 26 प्रतिशत से 49 प्रतिशत के बीच है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन सबके बावजूद भारत में काम कर रही विदेशी कम्पनियों के लिये प्रचुर अवसर है। इसके साथ ही रपट में यह स्वीकार किया गया है कि जो उम्मीद की जा रही है उसे पूरा करने में ना केवल समय लगेगा बल्कि उसके राज्यवार हालात भी बनाने पड़ेंगे।

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