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Sunday, July 17, 2016

अांखें खोलिये जनाब

अब समय आ गया है कि हम आतंकवाद के बारे में सोचें। वह राष्ट्रसंघीय जुमला बंद करें कि ‘हर हालत में आतंकवाद निंदनीय है। ’ हमें धर्म निरपेक्षता के नशे से बाहर निकलना होगा। यह पश्चिम की देन है और उसे त्यागना होगा। फ्रांस में क्या हुआ, यही नहीं तुर्की, बेल्जियम , ढाका , कनाडा, और काबुल में क्या हुआा, कश्मीर में क्या हो रहा है? आंख का अंधा ही कोई इसे इंकार कर सकता है कि इसमें इस्लामी चरमपंथी शामिल नहीं है। इस्लाम के सऊदी, सलाफी और वहाबी पंथों द्वारा हिंसा को हवा देना कल्पना के किसी भी कोण से शांतिपूर्ण नहीं कहा जा सकता है। अगर इनका विरोध इन्हीं के तर्ज पर होता है, बेशक हाथ में भगवा झंडा लेकर ही तब भी इसे अत्याचार नहीं कहा जा सकता है।

पापी कौन? मनुज से उसका न्याय चुराने वाला?

या कि न्याय खोजते विघ्न का शीष उड़ाने वाला?

अतीत की तरह इस बार भी वो वीरता भरे नारे सुन जरूर रहे हैं जिसमें सबको एकजुट हो कर लम्बी जंग के लिये तैयार होने की ललकार है। लेकिन , दुर्भाग्यवश हम जंग के पहले ही क्लांत महसूस करल रहे हैं। लगता है कि , हमलोग लगातार पराजित हो रहे हैं और कुछ नहीं होने वाला। हास्यास्पद है कि फ्रांस में उस भीड़ पर हमला हुआ जो अपना राष्ट्रीय दिवस मना रही थी। फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस ‘भाई चारा, स्वतंत्रता और समानता’ का संदेश देता है। इसके बाद हैरत उसके राष्ट्रपति होलांद के भाषण से होती है कि ‘फ्रांस उनमुक्त और स्वतंत्र’ समाज के स्वरूप को ही अपनायेगा। सच है कि यह उन हमलों से पराजित नहीं होगा और बदलेगा नहीं। केवल फ्रांस ही नहीं सभी मुक्त समाज को अपने उन दुश्मनों के साथ रहना सीखना होगा जो भाई चारा, स्वतंत्रता और समानता पर यकीन नहीं करते परंतु , इस बात से सचेत रहना होगा कि भाई चारे की आड़ में बदनीयती का ऐसा शातिर षड़यंत्र ना हो समाज को अंधविश्वास के अंधियारे दिनों धकेल दे। यह दुखद हैकि लगातार हिंसा के बाद भी हम पश्चिमी राष्टों के दोमुंहेपन का भंडा नहीं फोड़ पा रहे हैं। क्या वो देश जब आतंक के शिकार हुये हैं तो अपने उन्हीं उपदेशों का अनुसरण करते पाये गये हैं। अमरीका ने ट्वीन टावर के हमले के बाद किस तरह बर्बर ढंग से अफगान और इराक को मसल दिया। लेकिन जब भारत पर कोई हमला होता है तो यही मुल्क हमें मानवाधिकार का उपदेश पिलाने लगते हैं।

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध

दुख के समय कुछ कहना उचित नहीं लगता कि क्या उनका समाज नस्ली भेदभाव से मुक्त है। उनके समाज में आर्थिक विषमतायें कम हैं इसलिये  इस्लामी आतंकवाद का वह राक्षसी स्वरूप देखने को नहीं मिलता। जो लोग अन्य रंग और नस्ल के हैं तथा पश्चिम के उदार एवं इसाई समाज में कई पीढियों से रहते आये हैं क्या वे अलग थलक महसूस नहीं कर रहे हैं। चाहे वे अल्जीरियाई, मोरक्कोवासी, सीरियाई या लीबियाई, या टुयूनिशियाई तुर्क कोई भी शरणार्थी हों वे आज उन्हीं देशों में असहजता से जी रहे हैं जो देश उदारता, मानवाधिकार  और भाई चारे की वकालत करते हैं। वेखुद महसूस कर रहे हैं कि उनकी सभ्यता उन लोगों से दबती जा रही है जो दूसरे ‘ईश’ को मानती है। यह बहुत ही छोटा उदाहरण है जिससे समझा जा सकता है कि भारत किस आग में जल रहा है। यहां बदकिस्मती यह है कि हमारे ही देश के कुछ लोग ऐसी मनोवृति से ग्रस्त हैं जो सभ्यताओं के संघर्ष को नहीं मानते। वे नहीं देखते कि यहां से दूर पश्चिम एशिया में फैसलाकुन जंग लड़ी जा रही है  और यह उम्मीद है कि हम अपने अनदेखे दुश्मन को मिटा देंगे तो शांति से जी सकेंगे।  कुछ भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञ यह तानते हैं कि यह जंग मध्य पूर्व के मुसलमानों और उसके पुरातन विरोधी इसाईयों तथा यहूदियों के बीच मतभेद के कारण हो रही है। यह सोचना गलत है कि ढाका और फ्रांस में जो हुआ वह मध्यपूर्व में अमरीकी बमबाजी से उभरे गुस्से का परिणाम था। आई एस आई एस का गठन उसी गुस्से की अभिव्यक्ति है। इसका अर्थ तो यह है कि दुनिया भर के पढ़े लिखे मुस्लिम नौजवान अपने प्राचीन हतगौरव से कुपित नहीं हैं। यहां वास्तविक इस्लाम की फितरत पर बहस करना बेकार है। क्योंकि जो लोग खुद को वास्तविक इस्लाम के अनुयायी मानते हैं और खुद को उसका रज्ञाक मानते हैं उन्हीं की औलाद तो यह खून खराब कर रही है। क्या वे इन्हें नहीं रोक सकते? यह भूलना नहीं चाहिये कि इंडोनेशिया, भारत और बंगालदेश तीन ऐसे देश हैं जहां दुनिया के मुसलमानों की सबसे बड़ी निवास करती है और यहा के मुसलमान सदा से ही अत्यंत उदार और भाई चारे के सदगुण से पूर्ण रहे हैं। ऐसे में आतंकवादियों को स्वतंत्रता संग्रामी या धार्मिक उन्मादी मानना ना केवल गलत है बल्कि आत्मघती भी है। आतंकी हिंसा को मीडया में गौरवगाथा बनाना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है। इसलिये जरूरी है ​कि हम आंखें खोलें और इसहिंसा के शमन पर विचार करें। क्योंकि

समर शेष है जनगंगा को खुल कर लहराने दो

शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो

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