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Tuesday, July 19, 2016

प्रियंका की वापसी का वक्त आ गया है?

विगत कुछ वर्षों से यह लगभग हर चुनाव के पहले यह चर्चा गरम होती है कि प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगी। और कहीं नहीं ताहे उत्तर प्रदेश में तो जरूर ही संभालेंगी , पर हर बार कुछ ना कुछ होता है और प्रियंका गांधी धारा से बाहर खड़ी दिखती हैं। परंतु कई बार यह देखा गया है कि प्रचार के लिये वे चुनाव अभियान में कूदीं हैं। 1999 का वह दौर सबको याद होगा जब उन्होंने कांग्रेस के मंच से अरूण नेहरू को ललकारा था और उस चुनाव में सतीश शर्मा विजयी हुये थे। लेकिन उसके बाद वे ज्यादा सक्रिय नहीं दिखीं। लेकिन यह घटना प्रियंका गांधी के बारे जो कुछ भी कहा जा रहा है उसमें पॉजिटिविटी का पुट देती है। पार्टी और कांग्रेस समर्थकों के बड़े हिस्से में यह लगातार कहा जा रहा है कि प्रियंका जी गांधी – नहरू परिवार की असली वारिस हैं और उनमें उनकी दादी इंदिरा गांधी की सारी खूबियां व्याप्त हैं। प्रियंका जी के बारे में 90 के दशक के मध्य में जो चर्चा उठी थी वे अब तक समाप्त हो जानी चाहिये थी क्योंकि वारिस के तौर पर राहुल गांधी का नाम लगभग तय हो चुका है। लेकिन पार्टी के एक बड़े हलके में यह बात लगातार कही जा रही है कि अगर सोनिया जी और राहुल गांधी चुनावी जंग में बेअसर हुये तो प्रियंका मैदान में आयेंगीं। 2014 का चुनाव परिणाम साफ साफ बता रहा है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी का असर खत्म हो चुका है। 2014 में उन्हे 543 साटों वाली लोकसभा में महज 44 सीटें ही मिली हैं। देश के लगभग सभी भागों से कांग्रेस  का सफाया हो चुका है। ऐसे में क्या पार्टी में बदलाव का वक्त आ गया है जिसका सभी मुन्तजिर हैं। पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी और अपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अभी तक यह साफ किया है ​कि पराजय के इस महापंक से पार्टी को बाहर निकाहलने की उनकी क्या समरनीति है। अभी तक अखिल भारतीय गंग्रेस कमिटी का अधिवेशन नहीं बुलाया गया और कार्यकारिणी की बैठक हुई। अभी तक इस बात का विश्लेषण भी नहीं किया गया कि इतनी भारी पराजय का कारण क्या था जबकि कांग्रेस की सरकार सामाजिक क्षेत्र भारी खर्च किया था। इस बात को जानने की कोशिश नहीं की गयी कि जन लोगों को कांग्रेस की नीतियों से लाभ हुआ था उन्होंने कांग्रेस को वोट क्यों नहीं दिये।अगर कोई माख्न लाल फोतेदार जैसे अनुभवी राजनीतिज्ञ से पूछता है तो उनका जवाब होता है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में ठीक से प्रोजेक्ट नहीं किया गया। उन जैसे नेताओं का मानना है कि सरकार में जाने या रहने के काहरण चुनाव में चमत्कार किया जा सकता है। वे इंदिराजी के ‘गरीबी हटाओ’  नारे का उदाहरण देते हैं। लेकिन अब इन्हें क्या बताया जाय कि राहुल जी में इंदिरा जी चमत्कारिक मेधा नहीं है। वे लोगों ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करते और अपने चंद मुसाहिबों के बीच ही खुश रहते हैं। लेकिन प्रियंका गांधी बेहद मिलनसार हैं। वे अमेठी और रायबरेली चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं से बातें करती अक्सर देखी जाती हैं। अतएव उनकी रहनुमायी की चर्चा चलने लगी है। यही नहीं , उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की दशा सुधारने का बीड़ा उठाये प्रशांत किशोर ने राज्य राज्य का दो महीने तक दौरा करने के बाद यह राय दी है कि प्रदेश के चुनाव का मुख्य प्रचारक प्रियंका गांधी को बनाया जाय। साथ ही किशोर ने यह भी कहा है कि किसी ब्राह्मण को प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाय। यही कारण है कि शीला दीक्षित का नाम उभरा है। उम्मीद की जाती है कि वे पार्टी की चमक को और बढ़ायेगी। फिलहाल तो, भाजपा, सपा और बसपा की चमक को और तैयारियों को देख कर लगता है कि यह कदम व्यर्थ जायेगा। लेकिन , प्रदेश के मतदाताओं का मनाहेविज्ञान देखते हुये लगता है कि फ्रियंका सियाही हवा के ताजा झोंके की तरह आयेंगी और लोगों को यह विश्वास दिलाने में कामयाब होंगी कि यह भी एक विकल्प है। लेकिन शर्त यह है कि उन्हें गंभीर होना पड़ेगा और इंदिराजी की पोती के तौर पर खुद को पेश ना कर पार्टी के कार्यक्रमों के बारे में नौजवान मतदाताओं को यकीन दिलाना पड़ेगा। अगर वे कामयाब नहीं हो सकीं तो यह अभी से जान लें कि पार्टी को यूपी में भी करारी हार का सामना करना होगा।

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