कश्मीर के कई रंग हैं। लाल किले के दीवान - ए- खास में लिखा है कि
अगर फिरदौस बर रु ए जमीं अस्त
हमीं अस्त , हमी अस्त हमी अस्त
इस शेर को इतिहास में कश्मीर से जोड़ कर देखा जाता है। कश्मीर को धरती का स्वर्ग माना जाता है। इसके बाद केशर की क्यारियों में बहते खून और उन क्यारियों को बारूद से पाटने और बंदूक की कोशिशों को हम लगातार देख रहे हैं। यानी जाफरान से खून तक कई रंग कश्मीर के हमने देखे। यह क्या निदान के योग्य नहीं है। ऐसी बात नहीं कि सिर्फ कश्मीर ही दुनिया ऐसी जगह जहां दो राष्ट्र का झगड़ा चल रहा है। इस झगड़े के संदर्भ में अगर इसराईल के वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी की चर्चा करें तो बहुत कुछ साफ हो सकता है। अभी कुछ महीने पहले की बात है कि इसराइल में कुछ जनरलों की एक समिति बनायी गयी थी। इसमें इसरायली सेना,मोसाद और शिन बाथ के अधिकारी थे। उन्होंने ‘सिक्यूरिटी पीस प्लान’ नाक एक योजना तैयार की है जिसमें सुन्नी बहुल अरब में इसराइल के विवादास्पद इलाके गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में शांति के लिये उपाय सुझाया गया है, साथ ही यह भी बताया गया है कि वहां कैसे आर्थिक विकास के माध्यम से शांति स्थापित की जाय। यही नहीं अमरीका में हाल में ‘काउंरिंग वायलेंट टेररिज्म ’ नाम की एक कमिटी बनाई गयी है जो अमरीका में मुस्लिम आतंकवादियों को विश्वास में लेने के उपाय सुझायेगी। इसरायली सेना इन दिनों गाजापट्टी और वेस्ट बैंक में एक खास किस्म की कार्रवाई कर रही है। उसके तहत आतंकियों की पड़ताल कर उन्हें समाप्त कर और सुरक्षा बंदोबस्त को बढ़या जाना है। भारत में भी केंद्र सरकार को पहले यह स्वीकार करना होगा कि कश्मीर विवादास्पद क्षेत्र नहीं है। वह कानूनी और सांविधानिक तौर पर भारत का हिस्सा है और उसे अपने साथ बनाये रखने के लिये नयी तकनीक की इजाद करनी होगी। कश्मीर में अर्द्धसैनिक बलों के लिये आत्म सुरक्षा सर्वप्रथम होनी चाहिये। इसके तहत वहां उनकी तादाद ज्यादा दिखती है,क्योंकि उन्हें पथराव करती भीड़ और आत्मघती हमलावरों के मुकाबिल डटे रहना पड़ता है। इसके चलते घाटी में एक खास धारणा है कि सुरक्षा बल हमलावरों को भगाने या काबू करने के लिये भारी संरक्षा तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। घटी में नारे लगाये जाते हैं कि ‘हमारा खून पानी और अनका खून-खून।’ अब होता यह है कि जंग की हालात में दोनों पक्षों में से काई ध्यान तो देता नहीं है। इसलिये जरूरी है कि कश्मीर में यूनीफाइड कमांड के गठन की समीक्षा हो। कश्मीर में आतंकवाद के तीन स्वरूप दिखते हैं, पहला , आत्मघाती हमला, दूसरा कोई औचक हमला कर भाग निकला और चौथा नागरिकों की भीड़ के परदे में हमले। कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों ने सबका मुकाबला किया। दरअसल , 2001 तक यह बड़ा प्रभावी भी रहा। एकीकृत कमान का गठन 1993 में हुआ और आतंकवाद विरोधी आपरेशन के विख्यात यणनीतिकार लें जनरल मुहम्मद जकी की यह रचना थी। लेकिन इसके बाद कश्मीर में राष्ट्रपति शासन और निर्वाचित सरकारों की लीला आरंभ हुई और सबने हालात को अपने अपने ढंग से इस्तेमाल किया। जरा एकीकृत कमांड के बारे में जान लें। यह भारतीय सेना, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल , खुफिया एजेंसियां और जम्मू कश्मीर पुलिस के चुनिंदा अफसरों को लेकर बनाया गया है। इसका लाभ यह मिला कि सीमा पार से घुसना नामुमकिन हो गया। इससे मीकाबला करने के लिये आतंकियों ने दूसरी तकनीक अपनायी। उन्होंने उत्तरी पंजाब की राह से भारत में आना शुरू किया। नतीजे के तौर पर गुरदासपुर और पठानकोट की घटना सामने आयी। निहित स्वार्थी तत्वों ने कश्मीर की हालत को बिगाड़ने के लिये सही बातों को चूपा लिया। अब एकीकृत कमान के नियमों के मुताबिक श्रीनगर में आतंकवाद का मुकाबला सेना करती है और बकी नागरिक विपर्यय से सी आर पी एफ और जम्मू कश्मीर पुलिस लड़ती है, जबकि सीमा पर ऐसे समय में सेना तथ सीआर पीएफ मुकाबला करती है। अब श्रीनगर में दो तरह की व्यवस्था है तथा सुरक्षा बलों की तादाद ज्यादा दिखती है। इसलिया फैला दिया गया कि जो वर्दी में है वह फौजी है। जबकि ऐसा सही नहीं है। अब निहित स्वार्थी दल वहां से फौज को हटाने की मांग कर रहे हैं। जब कि कश्मीर के हालात से मुकाबले में फौज कहीं नहीं है। दुष्प्रचार के लिये पथराव के सामने खड़े सी आर पी एफ के जवान को फौजी कह कर सोशल मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है। बुरहान वानी आतंकवादी था और उसने भारत राष्ट्र के खिलाफ हथियार उठाया था। मीडिया उसे हीरो बना रही है शहीद कह के , लेकिन यह सच नहीं है। वह एक गुमराह नौजवान था। श्रीनगर में अगर फौजी कार्रवाई हुई होती तो बहुत ज्यादा लोग मारे जाते। सी आर पीएफ को सुरक्षा की ट्रेनिंग है जंग की नहीं। जो इस तथ्य को समझते हैं वे जानते हैं कि श्रीनगर में फौज है तो जरूर पर कार्रवाई नहीं कर रही है। श्रीनगर की स्थिति का लाभ उठाने वाले को रोका जाना चाहिये।
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