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Thursday, March 2, 2017

कैसी चालाकी है यह

कैसी चालाकी है यह

 
अमीरी दिन भर भटकती है सोने की दूकानों में

गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल लेती है

 गरीबी को बिंदास बताने की हमारे देश में कई को​शिशें हुई साहित्य में ,दर्शन में और समाज में पर सच तो यह है कि गरीबी का दर्द बुरी तरह सालता है। दुनिया में जितने सामाजिक परिवर्तन हुये उसमें गरीबी की बहुत बड़ी भूमिका रही है ओर इंसानियत के अपमानित होने की जितनी घटनाई हुईं हैं उनके मूल में अमीरी की भूमिकाएं देखी गयीं हैं। एक दिन अमीरी के आंकड़ों पर बातचीत के दौरान जनसंचार की एक छात्रा एकता ने सवाल उठाया कि आखिर इतनी दौलत का लोग करते क्या हैं? वह कोलकाता के अरबपतियों के जवन शैली पर काम करना चाहती थी। इस प्रश्न का आधा भाग ‘इतनी दौलत’ काबिले बहस है। ऑक्सफेम के आंकड़ों के मुताबिक भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश की 58 प्रतिशत दौलत है। दुनिया के आट सबसे अमीर लोग दुनिया की आदा दौलत के स्वामी हैं। भारत की आबादी लगभग 130 करोड़ हो गयी है ओर इसकी अर्थव्यवस्था तीन खरब डालर की है। एक वक्त था जब दुनिया को यह बताया गया था कि दौलत का असमान बटवारा एक तरह से संगठित लूट है। इसका नतीजा यह हुआ कि अमीरों तथा गरीबों में अक्सर झगड़ा चलता रहता था। दौलत को जमा किये जाने का आधुनिक इतिहास यूरोप में व्यावसायिक पूंजीवाद से शुरू हुआ ओर श्रमिकों के शोषण के बल पर शीर्ष पर पहुंच गया। कम्युनिज्म और सोशलिज्म शोषण ओर पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष की देन है। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकारों ने धन पर कब्जा कर लिया ओर उसके पुविर्भाजन की कोशिशें शुरू हुईं। 1917 में बोल्शेविक क्रांति हुई। लेनिन, स्टालिन और ट्राटस्की उसके नेता थे। यह क्रांति उसी अमीर गरीबी के बड़े फर्क के कारण हुई थी। यह दुनिया की सबसे खूनी क्रांतियों में से एक थी। दौलत अमीरों से छान ली गयी। इसके फलस्वरूप दुनिया भर में कम्युनिज्म का विकास हुआ। इसके बाद अमरीका के नेतृम्त्व में कम्युनिज्म के विरुद्ध शुरु हुआ। मैदान में अमरीका और सोवियत संघ थे। इसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया। आरंभिक चरण में सोवियत संघ का पलड़ा भारी था। क्योंकि कई देशों ने कम्युनिज्म की शासन शैली को स्वीकारा था। इसी के कारण कल्याणकारी राष्ट्र के सिद्धांत का सूत्रपात हुआ। संविधान के मुताबिक भारत भी एक कल्याणकारी राष्ट्र है। श्रमिकों और गरीबों ने राहत महसूस की क्योंकि यह समानता के सिद्धांत पर आधारित था। लगभग पांच दशक यह सब चला और 1991 में सोवियमत संघ के पतन के बाद इसका भी पतन शुरू हो गया। पूंजीवाद पर भरोसा बढ़ने लगा। पूंजीवाद ज्यादा ताकत के साथ फैलने लगा और दौलत का असमान विभाजन फिर शुरू हो गया। इसबार यह दलील दी गयी कि यह दोलत कठोर मेहनत और मेदा से कमायी गयी दौलत है। नतीजा यह हुआ कि इक अमीर आदमी होशियार और स्मार्ट कहा जाने लगा। भयानक फिजूलखर्ची इसी स्मार्ट होने के गर्व से बढ़ी। असमानता और अन्याय केवल गैरकानूनी कामकाज का परिणाम नहीं है यह चालाक और धूर्त लोगों द्वारा कानूनी तरीके अपनाये जाने के कारण भी हुआ। अगर आप तार्किकऔर वैज्ञानिक नजरिये से देखें तब भी यह मानना होगा कि इतनी बड़ी दौलत एक जीवन में नहीं जमा हो सकती। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि एक आदमी के दिमाग का आयतन 1600 घन सेंटीमीटर है तथा आम आदमी महज उसके 8 प्रतिशत का उपयोग करता हे जबकि जीनियस उसके 12 प्रतिशत भाग का इस्तेमाल करता है। अब प्रश्न यह है कि ये सबसे अमीर एक प्रतिशत लोग इस तरह का दिमाग कैसे पाते हैं और इस तरह की क्षमता वे कैसे हासिल करते हैं। यह क्षमता बाकी 99 प्रतिशत लोगों को क्यों नहीं हासिल होती है। अगर दौलत का रिश्ता दिमाग की क्षमता से है तब भी असमानता के सतर को वैज्ञानिक तौर पर साबित नहीं किया जा सकता है। एक दलील यह भी दी जाती है कठोर परिश्रम ओर मेधावी योजना के फलस्वरूप यह सब हुआ है। समाज का अमीर वर्ग बहरहाल लोगों को अपने कठोर परिश्र और अत्यंग मेधावी योजनाओं के बारे में विश्वास दिलाने में कामयाब रहा है पर यह सही नहीं है। वक्त की बात है जिस दिन यह रहस्य टूटेगा अस दिन हालात बदलेंगे और क्रांतियां शुरू हो जायेंगी। इसका प्रमाण केवल इस बात से मिल सकता है कि नोटबंदी के दौरान कोई उत्पात नहीं हुआ क्योंकि गरीबों को सरकार ने यह भरोसा दिलाया था कि कालाधन खत्म हो जायेगा और इस तरह के दौलत वाले सड़कों पर आ जायेंगे। वह एक सियासी चाल थी पर यह सदा कायम नहीं रहेगा ना सफल होगा।   

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