CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, March 31, 2017

कश्मीर में पत्थरबाजी का रहस्य

कश्मीर में पत्थरबाजी का रहस्य
अभी हाल में कश्मीर में फिर से उपद्रव शुरु हो गए और वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया। अभी जो हालात हैं वहाँ इसासे भारी चिंता होती है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? जहां सुरक्षा बलों के जवान आतंकियों से मुकाबला कर रहे हैं उसी स्थल पर अचानक कुछ नौजवान जमा होकर सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने शुरू कर दे रहे हैं। इसासे ऑपरेशन में बढ़ा होती है और आतंकी निकल जाते हैं दूसरी तरफ जब सुरक्षा बलों के जवान पत्थर बाजों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो घाटी में बवाल मच जाता है। अभी तीन दिन पहले बडगाम जो हुआ वह इस तरह की कार्रवाईयों का ताज़ा उदाहरण है। वहाँ सुरक्षा बलों से आतंकियों की  मुठभेड़ चल रही थी और एक आतंकी जैसे ही मारा गया आसपास के नौजवानों ने सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया, उन्होंने  उनपर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए जिससे 60 सुरक्षा कर्मी आहत हो गए और सुरक्षा बल की कार्रवाई में 3 पत्थरबाज आहत हुए। उधर छिपे हुए आतंकी बाख कर निकल गए। इस तरह की कोशिशें वहाँ अक्सर होती हैं । जब भी आतंकी घुसते हैं और सुरक्षा कर्मी उनपर कार्रवाई करते हैं तो उनपर पत्थर फेंके जाने लगते हैं। ऐसी ही घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने चेतावनी दी थी और इसे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा पैदा करना कहा था तो इसपर भी बयानबाजियां शुरू हो गईं थीं। लिहाजा यह चेतावनी बेअसर हो गयी।
  इन हालात से कश्मीरी नौजवानों की पत्थरबाजी पर ना केवल शक पैदा होता बल्कि  उन्हें रोकने के लिए सुरक्षा बन द्वारा इस्तेमाल किये गए तरीकों और उन तरीकों के औचित्य पर सवाल भी उठते हैं। सबसे पहला जो सवाल है  कि सुरक्षा बल कश्मीर के पत्थरबाजों और देश के अन्य भागों के हिंसक प्रदर्शनकारियों में फर्क मानते हैं। यहां यह समझ लेना जरूरी है कि किसी कार्रवाई के दौरान , खासकर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान सुरक्षा बलों के घेरे पर दूसरी तरफ से हमला आतंकवादियों की मदद मानी जायेगी। ऐसे में जब सेनाध्यक्ष रावत ने चेतावनी दी थी तब देश भर में कुछ लोगों ने इसका प्रचंड विरोध किया था। लेकिन क्या यह जायज है? जो प्रदर्शनकारी आतंकियों को फरार होने में मदद करते हैं या सुरक्षा बलों के जवानों की मौत का कारण बनते हैं , उनके खिलाफ कार्रवाई जरूरी है और भी उपलब्ध हथियारों से। यह केवल भारतीय क़ानून के तहत ही नहीं बल्कि राष्ट्र संघ के नियमों के मुताबिक भी सही है। इसका सबसे प्रमुख जो पहलू है वह कि प्रदर्शनकारियों और आतंकियों में क्या सम्बन्ध  है?  जो लोग आतंकियों को भागने का अवसर प्रदान करते हैं या सुरक्षा बलों के जवानों की मौत या आहत होने का कारण बनते हैं वे अपराधी हैं और उनपर कार्रवाई जरूरी है। क्योंकि इसासे भारतीय संप्रभुता को ख़तरा है, भारतीय एकता और अखण्डता को ख़तरा है और ऐसी स्थिति में कार्रवाई ना हो यह भी गलत है। यहाँ घाटी में राष्ट्रसंघ के निर्देश और सुरक्षा बलों की कार्रवाई की समीक्षा ज़रूर होनी चाहिए। राष्ट्र संघ का निर्देश है कि कश्मीरियों पर कार्रवाई के दौरान पहले वे उपाय किये जायें जिससे जान को नुक्सान काम पहुंचे और जब इसासे कलाम ना बने तो सख्ती बढ़ाई जाए। यही कारण है कि पहले भीड़ को तितर बितर करने के लिए लाठी चार्ज होता है तब पानी के फव्वारे छोड़े जाते हैं और उसके बाद पैलेट गन और तब अंत में फायरिंग होती है वह भी एकदम नियंत्रित ढंग से , बिलकुल जब और जितनी ज़रूरी हो।अंधाधुंध फायरिंग कभी नहीं होती है। इसके पहले भीड़ को समझ में आनेवाली भाषा में चेतावनी दी जाती है। यह सब वहाँ मौजूद कमांडर के आदेश से होता है। अब कश्मीर में जो कुछ भी किया जा रहा है वेह एक कवक उपद्रवी और हिंसक भीड़ के खिलाफ कार्रवाई नहीं हैं बल्कि आतंकवादियों के ऐसे हिंसक मददगारों के खिलाफ कार्रवाई है जो उन्हें बाख कर निकल जाने का मौका देते हैं। यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन नहीं है । इसलिए कश्मीर में पथराव करती भीड़ का देश के अन्य भागों की हिंसक भीड़ से तुलना करना बेमानी है, मानवाधिकार और लोकतंत्र के चश्मे से देखना गलत है।

0 comments: