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Thursday, March 16, 2017

भा ज पा ने बदला भारत की सियासत को

भा ज पा ने बदला भारत की सियासत को 
जातीय अंकगणित को बेहद कुशलता से प्रयोग कर पार्टी ने सामाजिक न्याय को जातिवाद में और सेक्युलरिज्म को अपतुष्टिकारां में बदलने का प्रयास किया। उत्तरप्रदेश का चुनाव परिणाम कोई एक बार की असंगति नहीं है । यह 2014 के लोक सभा चुनाव का दोहराव है। वस्तुतः भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में जो किया इस बार उसी में इस बार थोड़ा और सुयधार कर दिया। अब जबकि यह लगभग तय हो गया है कि पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रहेगी तो यहाँ यह बताना जरूरी है कि र्तजनीति के अर्थ क्या होते हैं और पार्टी क्या कर रही या इतने ज्यादा बहुमत से सत्ता में जमने के बाद वह क्या कर सकती है? पार्ट्री ने एक तरफ जहाँ धार्मिक अभिज्ञान का उपयोग किया वही इसने बड़े कटुता पूर्ण ढंग से और बड़ी ही चालाकी से जाति या सांप्रदायिक आधार पर सामाजिक न्याय या कहें कि पहचान की सियासत को किनारे कर दिया। इसका स्पष्ट उदाहरण है कि पार्टी ने हरियाणा के नेतृत्व के लिए एक गैर जाट राजनीतिज्ञ को चुना। इस चाल से पार्टी ने जाट प्राधान्य के खिलाफ गोलबंदी को हवा दे दी। इसने झारखण्ड में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री नियुक्त किया वही हाल छत्तीसगढ़ का हुआ और गुजरात में भी हुआ। पार्टीने गुजराती प्राधान्य का लिहाज नहीं रखा। पार्टी ने सामाजिक न्याय को जातिवाद और सेकुलरिज्म को अपतुष्टि बता कर उसकी निंदा की है लेकिन बड़ी चालाकी से इसने गैर यादव पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया उन्हें परंपरागत ब्राह्मण - ठाकुर समाज के साथ मिला दिया। पार्टी की कामयाबी इस बात का प्रमाण है कि जो काम पहले असंभव सा था वह अब सामान्य सा हो गया है। मसलन झारखण्ड में पार्टी ने भूमि क़ानून में बुनियादी सुधार किया ताकि कॉर्पोरेट पूँजी लग सके और सिफ़ात देखिये कि इसका रंच मात्र भी विरोध नहीं हुआ। भा ज पा के अधिकांश बड़े नेता राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ द्वारा पकाये गए गण हैं और पार्टी ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि ऐसे उम्मीदवारों को महत्व पूर्ण पद मिले ताकि केंद्र और राज्यों में सैद्धान्तिक तौर पर प्रतिबद्ध लोग सत्ता में रहें। इसका अर्थ है कि भा ज पा ने राजनीती के  परंपरागत आधार - सामाजिक पहचान- का महत्त्व काम कर दिया, क्योकि यह पूँजी के विकास में बाधा पैदा करता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम और इस बार के विधान सभा चुनाव के नतीजे यह बताते हैं कि भा ज पा ने किस चालाकी से स्थानीय विरोधी , जाति विरोधी, क्षेत्र विरोधी वातावरण तैयार किया है और यह बताने की कोशिश की है कि मोदी- शाह जोड़ी सभी क्षेत्रों के लोगों को पसंद है। 
  उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के घोषणा पत्र में शुरुवात में ही कहा गया है कि " श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सुशासन के जरिये सामाजिक और आर्थिक न्याय के लक्ष्यों को लागू करना है। इस विंदु के आगे घोषणा पत्र में जो बातें कही गयीं हैं वह मुहावरों और कहावतों में हैं। अब जैसे यह बताने का प्रयास किया है कि विकास के बारे में पार्टी बक क्या नज़रिया है। यह विकास नौजवानों, गरीब व्यावसायिक समूहों, महिलाओं तक कैसे पहुंचेगा। दूसरी पार्टी वाले जिस तरह से सामाजिक न्याय की अवधारणा का उपयोग किया है वैसे इन्होंने नहीं किया है। उसके घोषणा पत्र से साफ़ समझा जा सकता है कि पार्टी ने किस तरह से सभी सामाजिक प्रत्ययों से आगे राजनितिक एजेंडा तैयार करने की कोशिश की गयी है। पार्टी किसी न किसी आर्थिक दलील के जरिये सब तक पहुंचने का प्रयास किया है। पार्टी यह बखूबी समझती है कि इसे वर्ग आधारित राजनीति करनी ही होगी क्योंकि यह ऐतिहासिक तौर पर उच्च जातिवादी पार्टी रही है और मुस्लिमों तथा अलितों से कटी रही है। विगत तीन वर्षों में पार्टी ने प्रदर्शित किया है कि सामाजिक और सांस्कृतिक अधिमान्यता को पूँजी के उपयोग में लाया जा सकता है। शिक्षा परिसरों में हिंसा यह बताती है कि विरोध की आवाज को दबाने के लिए गुंडा गर्दी का सहारा कैसे लिया जाय।
भ ज पा ने सभी को ऐसे स्वार्थी इंसान में बदल दिया है जो केवल उनके लिए वोट मांगे या हिंदुत्व के नाम पर ज़हर उगले।भ ज पा भारीय राजनीती के नए युग का प्रतिनिधित्व कर रही है। यह पार्टी समझती है कि सामाजिक और सांस्कृतिक समूहों को कैसे हांका जाता है और भारत को कैसे कारपोरेट पूँजी के अनुरूप बनाया जय।जो हालात दिख रहे हैं उससे साफ जाहिर है कि 2019 में भा ज पा को रोकना मुमकिन नहीं हो पायेगा।

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