नमामि गंगे
पिछले दिनों उत्तराखंड हाई कोर्ट ने फैसला दिया की गंगा और यमुना जीवित नदी हैं और इन्हें वे अधिकार हासिल हैं जो एक जीवित मनुष्य को हासिल हैं। यह कोई बहुत बड़ा फैसला नहीं है , जितना उसे प्रचारित किया जा रहा है और ना ही दुनिया में इस तरह का यह अकेला है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में गंगा यमुना , कोशी यहाँ तक कि गंडक और अन्य कई नदियों को देवी की तरह वर्णित किया गया है, उनकी पूजा का विधान है। यहाँ तक की गंगा भारतीय आस्था का जीवंत प्रतिक है।यह 11 राज्यों के 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी मुहैया कराती है। लेकिन दुःख तो इस बात का है कि गंगा में रोजाना 2 करोड़ 90 लाख लीटर कचड़ा गिरता है। केवल भारत में ही नहीं न्यूजीलैंड की व्हंगानुई नदी को मनुष्य का दर्जा हासिल है। हमारे देश में ऐसा किये जाने का मुख्य मकसद है कि इन नदियों को प्रदूषण से बचाया जा सके। हमारे देश में इन नदियों का धार्मिक महत्व भी है , लोग इसमें स्नान करते हैं और यहां तक कि जीवन के कई संस्कार इसके तट पर होते हैं। इसके बावजूद यह भी सच है कि इन नदियों को बुरी तरह प्रदूषित किया जा रहा है। अदालत के फैसले से बहुत कुछ होने वाला नहीं है। नदियों को जीवित मनुष्य का दर्जा दिया गया, मनुष्यों के सम्बन्ध में मानवाधिकार हैं , ये अधिकार नदियों को हासिल हो गए। लेकिन दिल पर हाथ रख कर ईमानदारी से कहें कि क्या हम समस्त मानवाधिकारों का पालन करते हैं। बड़ी बड़ी बातों को छोड़ दें हमारे यहां जब बेटियां गर्भ में आती हैं तबसे लेकर जब विधवा हो कर मर जाती हैं उस बीच क्या उनका जीवन और सम्मान सुरक्षित रह पाता है। पुरुहों के साथ भी कुछ ऐसा ही है। अगर वे जाति और धन के मामले में ऊंचे नहीं हैं तो उनका जीवन क्या है , यह सब जानते है। दरअसल हमारे देश वासियों को अदालत और विवाद पर बहुत भरोसा है। इसलिए कई मामलों में लोग कोर्ट में जाते हैं ताकि उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान मिले। अगर हमारे मन में नदियों के प्रति सम्मान है तो कम से कम हम खुद उनमें जोकचड़ा डालतें हैं उसे तो ना डालें। लोग तो घर का सारा कूड़ा सड़कों पर डाल देते हैं । जब लोगों को खुले में शौच करने से, या सड़क पर थूकने से रोका नहीं जा सका तो नदियों प्रदूषित करने से क्या रोका जा सकता है? प्लास्टिक के कप और पॉलिथीन की थैलियों को खुली सडक पर फेंकने से रोका नहीं जा सका यह खुद सरकार के लिए समस्या है तो नदियों को गंदा करने से कैसे रोका जा सकेगा? यह हमारी आत्म नैतिकता का सवाल है क़ानून का नहीं। नदियों को प्रदूषित नहीं करने के भी क़ानून हैं। गंगा की सफाई का राजिव गांधी का वादा बहुतों को याद होगा और आज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का वादा भी सबको मालूम है तथा उस वाडे पूरा करने के लिए उमा भारती को जिम्मा भी दिया गया है पर यकीन करें भारत चाँद पर जा सकता है, राममंदिर भी बन सकता है पर गंगा प्रदूषण हीन नहीं हो सकती। क्या विडम्बना है कि हम भारत के लोग क्रिकेट से प्रेम करते हैं पर गंगा से नहीं।
Monday, March 27, 2017
नमामि गंगे
Posted by pandeyhariram at 7:35 PM
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