अयोध्या विवाद अब कोर्ट के बाहर
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की पीठ ने विचार व्यक्त किया है कि बाबरी मस्जिद - राम मंदिर का विवाद अदालत के बहार सुलझालिया जाय और इसके लिए अदालत ने मध्यस्थता करने की पेश काश भी की है। अदालत के इस विचार से एक नया विवाद पैदा हो गया है। अयोध्या या बाहर के जो लोग चाहते थे कि यह मसला सुलझ जाय उनमे एक नयी आशा जगी है क्योंकि यह विवाद अतीत में कई दंगों का कारण भी बन चुका है। भा ज पा सांसद सुब्रमनियम स्वामी की दलील पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह विचार ज़ाहिर किया। इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति खेहर के अतिरिक्त न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और एस के कौल भी शामिल थे। सुब्रमिनियं स्वामी ने दलील दी थी कि इस मसले पर तुरंत सुनवाई की जाय। अदालत ने कहा कि " यह मसला धर्म और भावनाओं से जुड़ा है । यह ऐसा मसला है जिस पर सभी पक्ष बैठ कर सह्माती से कोई निर्णय कर सकते हैं। ऐसे मसले साझा तौर पर बेहतर ढंग से सुलझाए जा सकते हैं। सभी एक साथ बैठ कर आपस में विचार कर लें।" 2010 में इस मसले को अदालत के बाहर सुलझाने की पेशकश की गयी थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने ठुकरा दिया था और उच्च न्यायालय को आदेश दिया था कि वह इसपर निर्णय दे। सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि दोनों पक्षों में विश्वास का अभाव है और भारी मतान्तर है। यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह के समाधान पर बात हो रही है। अब यह कितना दिलचस्प है कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने आपसी समझौते से मामला सुलझाने का सुझाव दिया है जबकि दोनों पक्ष कोर्ट का फैसला मानने का वादा कर चुके हैं । यहां अदालत के कथन का वक्त और इस समस्या के समाधान पर जिस तरह से इसने बहस की शुरुआत कर दी है वह बड़ा महत्वपूर्ण है। भ ज पा की यू पी में भारी विजय के बाद अभी गोरखपुर के गोरखनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ही ली है । आदित्य नाथ तो अर्से से कहते आ रहे हैं कि " मंदिर वहीं बनाएंगे। " कहा तो यह जाता है कि गोरख नाथ पीठ के पूर्व महंत योगी दिग्विजयनाथ ने 1949 में जिस जगह पर विवाद है वहाँ एक धार्मिक कार्यक्रम करवाया था और उस कार्यक्रम में चमत्कारिक रूप से रामलला की प्रतिमा प्रकट हुई थी। कहते तो लोग यह हैं कि उस समय खुद रामलला प्रगट हो गए थे। 1990 में आडवाणी जी की रथ यात्रा से मोदी जी बहुत करीब से जुड़े हुए थे , इसके बाद कई दंगे हुए और आखिर में 6 दिसंबर 1992 को वह ढांचा ही ध्वस्त हो गया।
जैसी की उम्मीद थी, भा ज पा के नेता, केंद्र के मंत्री और यू पी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन का स्वागत किया है। केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कहा है कि यह अवलोकन राष्ट्र के हित में है। हम तो राम मंदिर का मसला सदा संविधान के माध्यम से सुलझाने के तरफदार रहे हैं और अदालत का यह अवलोक स्वागत के योग्य है।" मुख्य मंत्री आदित्य नाथ ने भी इसका स्वागत किया है और सहयोग की पेशकश की है। उन्होंने कहा है कि " यदि दोनों पक्ष बैठने का निर्णय करें और किसी सहमति पर पहुंचे तो समाधान हो सकता है। राज्य सरकार जो जरूरी होगा करेगी। " इधर अब तो दिल्ली में और लखनऊ में बहा ज पा की सरकारें हैं और अब इसके समर्थक राम मंदिर बनाने के लिए भारी दबाव दे रहे हैं। इन सब के बावजूद यहाँ एक शब्द है " सहमति " उसी के ही आधार पर शान्ति पूर्ण समझौता हो सकता है। अब जहां तक सहमति का सवाल है उसकी मुखालफत शुरू हो चुकी है।बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के जफरयाब जिलानी का कहना है कि कोतबा ने सिर्फ कहा ही तो है फैसला थोड़े ही दिया है। भा ज पा ढोल पीते ही जा रही है। जिलानी ने कहेगा कि कई बार कोशिशें हुई हैं पर कामयाब नहीं हो सकीं। जिलानी ने ब्यौरा दिया की 1986 में कांची काम कोटि के शंकराचार्य ने मौलाना अली मियाँ से मुलाकात की थी , इसी सिलसिले में 1990 में चंद्रशेखर ने भी मुख्यमंत्रियों के एक कमिटी बनायी थी। 1992 में नरसिंह राव नेभी कोशिशें की थीं। जिलानी ने कहा कि 2003 में अयोध्या , मथुरा और वाराणसी की मस्जिदों को छोड़ देने की मांग की गयी थी। जिलानी ने कहा कि "हम्मस्जिद कैसे छोड़ सकते हैं।" हालांकि अन्य मुस्लिम नेताओं का रुख सकारात्मक दिख रहा है। मलाणा कल्बे सादिक ने कहा कीकोई ऐसी राह निकाली जय जिससे दो नो पक्षों को आघात ना लगे, खून खराबा न हो। मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली का कहना है कि " कोई मुसलमान नहीं चाहता कि राम मंदिर ना बने लेकिन बाबरी मस्जीद भी तो बनानी चाहिए।" अयोध्या में भी लोग अदालत के बहार फैसले का समर्थन कर रहे हैं। महंत ज्ञान दस ने कहा कि हम पहले से ही ऐसा चाहते हैं। अब सवाल है कि दोनों पक्ष बैठें और सहमति हो तो कुछ बात बने।
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