जीते चाहे जो ,हारेगा उत्तर प्रदेश ही
उत्तर प्रदेश के हाई वोल्टेज चुनाव का नतीजा दो दिन बाद यानी 11 मार्च को आह जायेगा। इस चुनाव में कोई ना कोई दल जीतेगा और किसी ना किसी की सरकार बनेगी ही पर यह तय है कि उत्तर प्रदेश हार जायेगा। राजनीतिक दलो द्वारा किये गये हजारों वायदों और लाखों आश्वासनों के बावजूद वहां की जनता को वही मिलेगा जो आज तक मिलता आया है वह है बेकार शाहन और उसका निम्न स्तरीय कामकाज। कई सरकारें आयीं लेकिन आज भी उत्तर प्रदेश बिजली के अभाव , खराब सड़क और कानून तथा व्यवस्था की खराब स्थिति से जूझ रहा है और शायद कल भी उसकी वही हालत रहेगी। दुनिया कई देश आबदी के मामले में यू पी से पीछे हैं। अगर हम रिकार्ड देखें तो पायेगे कि इस विश्व में फकत 5 देश ऐसे हैं जिनकी आबादी यू पी से ज्यादा है बाकी सभी देशों की आबादी वहां से कम है। 20 करोड़ आबादी वाला वह प्रांत भारत की कुल आबादी का 16 प्रतिशत है और विडम्बना देखिये कि देश के कुल जी डी पी में अवदान का उसका हिस्सा महज 8.5 प्रतिशत है। इससे साफ जाहिर है कि देश की कमाई को यू पी कैसे ‘भकोस’ रहा है। दरअसल राज्य का सियासती आचरण कुछ ऐसा है कि हर राजनीतिज्ञ या राजनीतिक दल अब्पनी पहचान और वर्चसव की आपाधापी में लगा है ओर इससे विकास प्रभावित हो रहा है। हर चुनाव में राजनीति की भाषा, मुहावरे और जुमले बदल जाते हें पर हालात नहीं बदलते। भारत में नौजवानों की संख्या सबसे ज्यादा है उत्तर प्रदेश भी मिं पीछे नहीं हे। पर इन नौजवानों का उपयोग तब होता जब उनकी शिक्षा, उचित तथा सार्थक रोजगार , उद्यमिता और अनुसंधान में उन्हें लगाया जाता। रोजगार का अर्थ है राज्य में उद्योग का विकास। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार यू पी में व्यवसाय की सुविधा के मामले में 2015 में उसका स्थान 10 वीं पायदान पर था जो 2016 में खिसक कर 14 वीं पायदान पर आ गया। कानून व्यवस्था की ारी स्थिति के कारण वहां उद्यमी पूंजी लगाने में हिचकते हैं। अगर राज्य में उद्योग –धंदो नहीं होंगे तो नौजवान रोजगार की तलाश में वहां से बाहर निकलेंगे। इसके लिये उनहें सही ीशक्षा और उचित कौशल चाहिये लेकिन यू पी में यह भी हासिल नहीं हो पाता। शिक्षा की ह्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि यू पी के पांचवीं कक्षा के 35 प्रतिशत बच्चे दूसरी क्लास की हिन्दी की किताबें ठीक से नहीं पढ़ सकते। राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेजों में 50 प्रमितशत सीटें खाली जा रहीं हैं क्योंकि वहां से पास करने के बाद रोजगार सही मिलता नहीं है। विकास के लिये जरूरी है अबाध बिजली आपूर्ति ओर वह भी सही मात्रा में। अगर थोड़ी बहुत बिजली मिलती भी है तो उसका वोल्टेज सही नहीं होता। राज्य विद्युत बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक यू पी 50 हजार मेगावाट बिजली की आपूर्ति के कनेक्शन हैं पर कई दशक से 24घंटे बिजली मिलती नहीं है अतएव मालूम नहीं सही जरूरत कितनी है। अन्य आंकड़े बताते हें कि यूपी में 25 हजार मेगावाट बिजली की जरूरत है पर उत्पादन 2500 मेगावाट से ज्यादा नहीं हो पाता। दूसरे राज्यों से बिजली खरीदी जाती है पर तब भी 5000 से 9000 मेगावाट का अभाव रहता है। दुर्भाग्य है कि अब तक की सरकारों ने इस अभाव की पूर्ति के लिये कुछ तनहीं किया उल्टे वोट मिलने वाले क्षेत्रों में कितनी बिजली मिलती है इसके आंकड़े जरूर तैयार किये गये। अगर वहां ग्रामीण चिकित्सा की बात आती है तो सबसे पहले डाक्टरों की हत्या या उनहें मिलती धमकियों की बात दिमाग में घूमने लगती है। एन सी आर बी के आंकड़े बताते हैं कि अपराध के मामले में विशेषकर महिलाओंकि विरुद्दा अपरग्ध में यू पी का स्थान पहला है। अखिलेश यादव ने दावा किया था कि यूपी में महिलाओं के लिये 1090 हेल्प लाइन तैयार की गयी है पर बदाऊं, बुलंदशहर तथा बरेली में बलात्कार की ह्रदय द्रावक घटनाओं ने इस दावे की खिल्ली उड़ा दी। कानून और व्यवस्था की खराब स्थिति के कारण वहां व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। अखिलेश यादव ने अपने चुनाव प्रचार में आगर – लखनऊ एक्सप्रेस वे और लखनऊ मेट्रो को निदाॡ्रित समय में पूरा करने का दावा किया था जबकि 9 फरवरी 2017 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केवल इसलिये मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी को डांट लगायी थी कि वे झूठे दावे ना करें क्योंकि ये परियोजनाएं अभी पूरी नहीं हुईं हैं। खराब शासन और निमन स्तरीय विकास के कारण ही यू पी को ‘बीमारू’ राज्यों में अभी भी शामिल है जबकि मध्यप्रदेश और राजस्थान इस अपमानजनक विशेषण से सबक सीख चुके हैं और विकास की ओर बढ़ रहे हैं। 11 मार्च को चुनाव परिणाम आयेगा और लोग इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कोन जीतेगा। पर इससे होगा क्या। जीते चाहे जो फिर हारेगा यू पी ही।
Wednesday, March 8, 2017
जीते चाहे जो , हारेगा उत्तर प्रदेश ही
Posted by pandeyhariram at 8:21 PM
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