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Thursday, March 9, 2017

गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

 अभी हाल में गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि ‘हर आदमी को आजादी है पर इसका मतलब नहीं है कि वे देश को कमजोर करने के लिये नारे लगाते फिरें।’ अभी कुछ दिन पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में हुआ अगर उसका मनोविज्ञान देखें तो वह फकत आदर्श ओर पहचान का झगड़ा था साथ ही यह मसला यह भी बताता हे कि भारत का भाव अथवा अवधारणा इतनी विवादास्पद कभी नहीं रही जितनी आज है। हमारे रोजाना के काम काज या टी वी के प्रसारण या सड़क पर तनी हुई मुट्ठियां इन दिनों कुछ रचनात्मक करने में नाकाम हो रहीं हैं। आपसी स्पर्द्धा का कोई रचनात्मक नतीजा नहीं हासिल हो पा रहा है।

 

कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं

गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

 

कुछ लोग इसे कट्टर हिंदू राष्ट्रवाद का नतीजा भी बता सकते हैं ओर ऐसा कह देना सरल भी है पर सच तो यह है कि भारत में हिंदू राष्ट्रवाद की तरह कई अत्याचारी प्रकल्प हैं मसलन वामपंथी अधिनायकवाद , इस्लामी हथियारबंद कट्टरवाद , परम्परा के नाम पर पारिवारिक अत्याचार इत्यादि। हमारे लोकतंत्र की जब सुबह हुई थी तो भारतीय प्रभु वर्ग ने अभिव्यक्ति की आजादी को बड़ी संदेह की निगाह से देखा था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ,जिनमें आपस में नहीं पटती थी , कम्युनिस्ट और हिंदू रगष्ट्रवादी मीडिया पर पाबंदी के लिये तैयार हो गये थे। संविधान में पहला संशोधन बोलने की आाजादी पर ‘उचित प्रतिबंध’ के नाम पर ही हुआ। दूसरे देशों में ,चाहे वह यूरोप के मुल्क हों या अमरीकी , जब भी ऐसी कोशिशें हुईं उनका विरोध हुआ और आजादी कायम हुई। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सका। इंदिरा गांदा की सरकार द्वारा लगायी गयी इमरजेंसी ने भारतीयों को सत्ता के बड़ते हाथ के प्रति संदेहास्पद बना दिया। यहां राजनीतिक दलों द्वारा जो सबसे बड़ी चाल चली गयी वह थी लोकतंत्र की रक्षा की बातों का प्रसार और उसे लोगों के जहन में बैठा देने की कोशिश। किसी ने यह नहीं कोशिश की कि हम एक ऐसी संस्कृति तैयार करें जो लोकतां​त्रिक हो। अभी भी आपात काल के विरोधी सांस्कृतिक प्रतिक्रियाएं जाहिर करते देखे जाते हैं।

गजब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते

वो सब के सब परीशां हैं वहां पर क्या हुआ होगा

 

लोक संस्कृति के स्तर पर विचारों की भिन्नता के मामले बहुत कम प्रदर्शित होते हैं। आप सिनेमा या टी वी कार्यक्रम या इसी तरह के अन्य प्रोग्राम देख लें , जहां धर्म या समप्रदाय के विवादास्पद मसायल होंगे वहां सब एक ही तरीके से बोलते नजर आयेंगे। लोक संस्कृति में बहुत कम ऐसे समुदाय जो तीव्र मतभेदों पर बातें करते हैं। हम वर्षों से एक ऐसी संस्कृति में रहते आये हैं जहां बोलने की आजादी का मतलब ऊंची आवाज में गुस्सा जाहिर करना होता है। यहां बोलने की आाजादी का मतलब संयत स्वर में तर्कपूर्ण बात कहना नहीं है। भाजपा के सांसद साक्षी महाराज मुस्लिमों के शवदाह की बात  करते हैं क्योंकि देश में उनहें दफनाने के लिये जमीन नहीं है। कर्नाटक ने गृहमंत्री चीखते हैं कि लड़कियों पर हमले के कारण उनके पश्चिमी लिबास हैं। ऐसे उदाहरण देश के हर कोने में मिल जायेंगे। अन्य लोकतंत्र के तजुर्बे हमें बताते हें कि इस तरह के शोर कोई अपवाद नहीं हैं। इतिहासकार एंड्रू हार्टमन के मुताबिक ‘1960 तक अमरीकियों में बुद्धिजीवियों , कलाकारों, ओर राजनीतिज्ञों के छोटे समूहों की बात अमरीकियों पर असर नहीं करती थी। वे अपने देश को सर्वोच्च मानने और दौलत कमाने में लगे थे।’ जब वाहां वियतनाम के युद्दा में शहीद मध्य वर्गीय अमरीकियों के संतानों के कौफीन आने लगे तब उनकी आंखें खुलीं कि यह सब क्या है, अमरीकी होने का क्या यही अर्थ है? 1970 से वहां दक्षिणपंथियों का उभार शुरू हुआ, जिसपर 1979 तक सरकार की निगाह नहीं पड़ी या सरकार ने उसपर निगाह डालना जरूरी नहीं समझा। जब 1979 में ​जेरी फालवेल ने घोषणा की कि यह परिवार की रक्षा के लिये ‘धर्मयुद्ध ’ है तब कहीं जाकर सरकार ने इसपर सोचना शुरू किया। आज हमारे देश में भी कुछ वैसा ही चल रहा है। यहां बोलने की आजादी का मतलब अनर्गल प्रलाप की छूट और उस छूट को रोकने का अर्थ है आजादी पर पाबंदी।

 

किसी भी कौम की तारीख के उजाले में

तंम्हारे दिन हैं किसी रात की नकल लोगों

 

राष्ट्र राज्य की अवधारणा पर तर्कपूर्ण विमर्श तक तो सही है पर उसके बाद लेकिन उसके बाद विरोध की आवाज जब गालियों ओर शोर में बदलने लगे तो क्या हो या क्या किया जाय इसका जवाब वही दें जो इसके पैरोकार हैं। आजदेश अजीब सी हालत में फंसा हुआ हे। लोग बोलते बोलते चिललाने लगते हैं और असे ही अपनी पहचान बना लेते हैं। दोनों तरफ मुट्ठियां तनी हुईं हैं। इसके समाधान की बात कोई नहीं करता। कोई सुनने को तैयार नहीं है।

 

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है

पत्थरों में चीख हर्गिज कारगर होगी नहीं  

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