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Tuesday, March 21, 2017

योगी और मोदी : संघ के दो चेहरे

योगी और मोदी : संघ के दो चहरे 
कई साल पहले महानगर के साल्ट लेक इलाके में योगी आदित्य नाथ से मुलाकात का ब्यौरा सन्मार्ग में प्रकाशित  हुआ था। वे हिंदुत्व के कट्टर योद्धा के तौर पर ख्याति प्राप्त कर चुके थे और दिल्ली के तखत पर नरमपंथी अटल बिहारी वाजपेयी थे। वे सबको साथ लेकर चलना चाहतेथे जबकि गेरुआ वस्त्र धारी योगी इस खाके में कहीं फिट नहीं बैठते थे। भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका के बारे में पूछे गए सवाल के बारे में उन्होंने कहा था कि " हिन्दू धर्म की रक्षा और राम मंदिर बनेगा और अयोध्या में ही बनेगा।" अब वे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हैं लेकिन दिल्ली दरबार की नीरसता और " गोरखपुर" की कट्टरता अभी भी बानी हुई है । उत्तर प्रदेश की भारी विजय के दूसरे दिन प्रधान मंत्री ने कहा था कि " सरकार बहुमत से बनती है पर सहमत से चलती है।" इसके बाद उन्होंने अपना वही नारा दोहराया जो चुनाव बार लगाते रहे हैं- " सबका साथ सबका विकास।" यह एक नेता की टिपण्णी थी। इसके लागभे हफ्ते भी बाद जब योगी को मुख्य मंत्री नियुक्त किया गया तो लखनऊ में नारे लगे कि " यू पी में रहना होगा तो योगी-योगी कहना होगा।" दिल्ली के मोदी मन्त्र और लखनऊ के " गोरख पुर मॉडल " के बीच की खाई बहुत चौड़ी नहीं है।" प्रकारांतर से दोनों ने बहुमत की ही बात कही है और इसमें राज्य की आबादी के " 18 प्रतिशत" के हिस्से को पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया गया है। यू पी में विजय मोडियो ब्रांड के कारण मिली। यह एक ऐसा ब्रांड है उम्मीद और विकास का आश्वासन देता है लेकिन इस ब्रांड का विश्लेषण " अच्छे दिन" वाले नारे के सन्दर्भ में किया जाना जरूरी है खासकर जो लोग विपक्षियों के  भ्रष्ट और  बुद्धिहीन कामकाज से ऊब चुके थे।" यू पी में जो हुआ वह केवल परिवर्तन के  लिए नहीं हुआ बल्कि यह हिंदुत्व सोच की ताकत की स्पष्ट अभिव्यक्ति थी।" संघ का आदर्श भी तो यही है। इस सन्दर्भ में ज़रा उस अंदाज़ को तो याद करें जिस अंदाज में प्रधानमन्त्री जी ने " श्मशान - कब्रिस्तान" की बात की थी यह अमित शाह का अंदाज़ देखें जिस अंदाज में उन्होंने"कसाब" का ज़िक्र किया था। कुछ लोग दलील दे सकते हैं कि कांग्रेस और सपा गठबंधन या बसपा ने भी तो मुसलमानों या कहें अल्पसंख्यकों सर वोट मांगे थे पर उस सन्दर्भमें यह देखने की ज़रुरत है कि तब हिन्दू प्रतिध्रुवीकरण  भी तो चल रहा था- इसके साथ इसके साथ यादवों और जाटवों के वोट भी तो जुड़ रहे थे। एक तरह से इस चुनाव में हिन्दू एकजुटता और जादव , मुस्लिम और जाटवों  के ध्रुव केबीच का मुकाबला था। यह एक बदरंग हकीकत है जो विकास के परदे में छिपी है। इसमें मोदी मन्त्र का वह अर्थ कहाँ  है जो सबको बराबर अवसर प्रदान कर नए भारत का निर्माण करना चाहता है। कहा तो यह जा रहा है कि प्रधान मंत्री पहली पसंद मनोज सिन्हा थे , जिन्होंने केंद्रीय मंत्री के तौर पर अपनी प्रशाशनिक क्षमता को सिद्ध भी किया है, लेकिन इस कथन की पुष्टि संभव नहीं है। चर्चा गर्म तो इस बात की है कि आर एस एस ने प्रधान मंत्री के फैसले को अमान्य कर दिया और घुड़की दी कि तीन सौ से ज्यादा सीटें पाने के बाद भी यदि पार्टी अपनी वैचारिक विशिष्टा नहीं कायम रख सकती है तो कब ऐसा करेगी? इस विचार धारा का योगी से बेहतर कौन प्रतिनिधित्व कर सकता है ? ये तो बताने की ज़रुरत नहीं है कि यू पी में भा  ज पा - संघ के अत्यन्त मशहूर काडरों में से योगी एक हैं। हो सकता है मोदी- योगी का द्वैतवाद संघ को रास आता हो कि एक आदमी दिल्ली में बैठ कर सबके विकास की बात करता है तो दूसरा लखनऊ में हिंदुत्व की सांडी में अपनी खिचड़ी अलग पकाता है। योगी का चयन कर संघ ने एक बड़ा जोखिम तो लिया ही है, लेकिन यह जोखिम पूरा साधा सधाया है। योगी के चयन के घंटे भर के भीतर ही मोदी टी वी पर दिखे। कड़क कुर्ता और जैकेट में वे एकदम स्मार्ट लाग रहे थे। वे अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिना रहे थे । इसी दौरान  यहां कोलकता में जब यू पी के एक वरिष्ठ विद्वान् से मोदी के चयन के बारे में राय मांगी गयी तो उसने कहा कि यह गलत हुआ है और जब वोट दिया गया था तो ऐसा सोचा भी नहीं गया था। उत्तर प्रदेश में इस टिपण्णी का कोई मूल्य नहीं है । यू पी में भा ज पा को वोट देने वाले खुश हैं क्योंकि पार्टी ने उन्हें हिदुत्व की सियासत की घुट्टी पिलाई है। लेकिन बहुतों को याद होगा कि मोदी ने 2014 में जो भारी विजय हासिल की थी उसका कारण हिन्दू कट्टर वोटों से उनका आगे निकल जाना। 2002 के कट्टर हिन्दू की छवि के ऊपर सुशासन की छवि गढ़ने वाले नरेंद्र मोदी ने नौजवानों के जिस समुदाय में आशा जगायी  वह तबका जाति वगैरह नहीं  मानता था। नौजवान गुजरात के दंगे को भूल चुके हैं पर जिस अंदाज में योगी बोलते हैं वह अंदाज़ लोगों को याद है।नौ जवानों का वह समुदाय रोजगार चाहता है, विकास चाहता है , शांति चाहता है। वह लव जिहाद नहीं चाहता, भड़काऊ भाषण नहीं चाहता है । देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रान्त के मुख्य मंत्री के रूप में योगी की नियुक्ति से 2002 के जिन्न को जगा दिया गया है। क्या यही पार्टी का भाविष्य है या बहुलतावादियो का उन्माद पुरानी खुन्नस को मिटाना चाहता है और हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करना चाहता है। योगी के पद संभालने के बाद बाज़ार में उनके विवादास्पद भाषणों के कई वीडियो आये । योगी समर्थकों का कहना है कि उन्हें एक अवसर मिलना चाहिए क्योंकि उन्होंने चार चार बार संसदीय चुनाव जीते हैं। लेकिन क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि योगी जी ने अपने भड़काऊ भाषणों के आधार पर ही चुनाव जीता है और देश के सबसे बड़े राज्य की कमान के लिए उनका चयन जोखिम भरा है। लेकिन इस जोखिम में रख चालाकी ज़रूर है। भा ज पा नें योगी के माध्यम से 2019 में खुद को मीडिया में स्थापित कर लिया। अगर वे कुछ भड़काऊ करते हैं तो मीडिया में भा ज पा छा जायेगी, और विकास की दिशा में वे कुछ कर बैठते हैं तो यह पार्टी के लिए बोनस होगा।

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