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Monday, March 13, 2017

बंगाल सहित देश के कई भागों में बन रहे हैं आई एस के गढ़

बंगाल सहित देश के कई भाग बन रहे हैं  आई एस के गढ़

सीरिया से भागे आतंकियों के पनाह लेने की खबर

हरि राम पाण्डेय

कोलकाता : सीरिया के मोसुल से आई एस के पैर उखड़ने के बाद विदेशों से गये अतिवादी (रेडिकलाइज्ड) नौजवान अब अपने अपने मुल्क लौटने लगे हैं ओर अब उन मुल्कों में खतरा बढ़ने लगा है। सूत्रों की अगर मानें तो आई इस में विदेशों के लड़ाकों की सबसे ज्यादा तादाद अफगानिस्तान , बंगलादेश और भारत के अतिवादी नौजवानों की है। डोनाल्ड ट्रम्प के आने के बाद कुछ गोपनीय खुफिया दस्तावेजों को अवगींकृत किया गया। उनमें अगस्त  2012 की एफ बी आई की फाइल के मुताबिक ‘भारत के पश्चिम बंगाल के माल्दह, मुर्शिदाबाद और दोनों 24 परगनाओं के लगभग 3300 नौजवान वहां लड़ने गये हैं, इनमें से अदिकांश आत्मघाती बमबाज हैं। ’ अभी 4 वर्ष हुये इस घटना के दर्ज हुये। यकीनन ,यह संख्या बढ़ी होगी क्योंकि तबसे मुर्शिदाबाद और माल्दह का व्यापक ‘सलाफीकरण’ हुआ है। अगर संख्या इतनी भी  है तो और नौजवानों के अतिवाद की ओर बढ़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

क्यों लौट रहे हैं ये लोग?

अखबारों में खबर है कि आई एस के सुप्रीम कमांडर अबू अबदुल्ला अल रशीद अल बगदादी के मारे जाने के बाद सीरिया में आई एस का पतन हो गया ओर उनका संगटन बिखर गया। पर गत दिसम्बर में एक आतंकी से पूछताछ के लिये कोलकाता आये एफ बी आई के कुछ अफसरों से मुलाकात के दौरान यह रहस्य खुला कि बगदादी नाम का कोई आदमी था ही नहीं। यह एक विदेशी
खुफिया एजेंसी द्वारा चलाया जा रहा संगठन था और उसे सीरियाई स्वरूप देने के लिये बगदादी का नाम जोड़ दिया गया था। उसके रिकार्डेड बयान को पढ़ने वाला एक सीरियाई अभिनेता था जिसका नाम अब्दुल्ला अल नाइमा था। अभी कुछ माह पहले ‘इंडो यूके काउंटर टेररिज्म ज्वाइंट वर्किग ग्रुप’ की लंदन में एक बैठक में चेतावनी दी गयी थी कि भारत पर आई एस के हमले का खतरा है। इसमें पता चला कि 32 पेज के किसी पाकिस्तानी रिपोर्ट पर चर्चा हुई थी। हालांकि संयुक्त गृहमंत्रालय से  सचिवालय से जब सन्मार्ग ने इस बावत जानकारी चाही तो वहां से इस तरह की बात को ‘बकवास’ करार दिया गया। हो सकता है 32 पेज की यह रपट फर्जी हो लेकिन इंगलैंड की चेतावनी तो मायने रखती है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि जिसतरह ओसामा बिन लादेन सी आई ए की रचना था उसी तरह आई इस ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एम आई 6 की रचना है (इसकी एक लम्बी कथा है जिसका बाद में कभी जिक्र किया जायेगा, अभी सन्मार्ग कथा के बिखरे सूत्रों को जोड़ रहा है)। एफ बी आई के अफसरों से बात चीत के दौरान एक और तथ्य सामने आया की 2013 में हैम्बर्ग बंदरगाह से गुजरने वाले दो कंटेनर्स पर जर्मन खुफिया विभाग ने छापे मारे और 1400 फाइलें जब्त कीं। उनमे से कुछ फाइलों के मुताबिक ओसामा बिन लादेन को कट्स से धन मिलता था। यह एक बैंक है जो रॉयल बैंक ऑफ़ स्कॉटलैंड का एक हिस्सा है और इसी बैंक में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का खाता है। कितना भयावह यह तथ्य है कि भारत विरोधी किसी गतिविधि में चाहे वह आई एस की मदद हो या माल्या की सहायता इंग्लैंड की कोई न कोई भूमिका ज़रूर रहती है। अभी गृह मंत्रालय की "बकवास" वाली टिप्पणी  दिमाग में गूंज ही रही थी कि भारत में आई एस से जुड़े लोगों की गिरफ्तारियां शुरू हो गयीं। जम्मू कश्मीर घाटी में कश्मीरी मूल का एक ब्रिटिश डॉक्टर पकड़ा गया , वह बम लगाने की कोशिश कर रहा था। वह डॉक्टर 2006 से ब्रिटेन में रहता था।

 बंगाल में जिस तरह के हमले की खबर मिल रही है असके अनुसार प्रसिद्ध मंदिर जैसे काली घाट मंदिर और दक्षिणेश्वर मंदिर , रेलवे स्टेशन, भीड़ भरे बाजार, मॉल, स्कूल, विश्वविद्यालय इत्यादि। हमलावर किसी विस्फोटक या इसी तरह की चीजों से हमला नहीं कर सकते हैं वरन जैसी कि खबर मिल रही है उन्होंने इस बार हथियारों की शक्ल बदल दी है और वे अब किसी परिष्कृत हथियार प्रणाली पर निर्भर नहीं रहेंगे। वे इस बार आसानी से उपलब्ध वस्तुओं से एक ऐसा बम तैयार करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं जो सोवियत मोलोतोव और ब्रिटिश नापाम बम का मिला जुला स्वरूप होगा। इन वस्तुओं के बंदोबसत करने में कोई कठिनायी नहीं होगी ओर किसी को संदेह होगा। जैसी कि सूचना मिली है कि इस तरह के बम बनाने के लिये महज ए कनसतर पेट्रोल, कांच की एक बोतल, उस बोतल में भरी जाने के लिये थोड़ी सी गैस और रद्दी कपड़े तथा एक माचिस की डिब्बी।
ऊपर की स्थितियों के विश्लेषण से ऐसा नहीं प्रतीत होता है कुछ देश " जियो पोलिटिकल "  वर्चस्व के लिए खुद आतंकी तैयार करते हैं तथा ज़रूरत ख़त्म होने पर उन्हें वापस बुलाते हैं और दूसरी और झोंक देते हैं। सरकार को कश्मीर मामले में इस कोण से भी तफ्तीश करनी चाहिए।

           

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