विदेशी कंपनी को भारतीय करेंसी छापने का अनुबंध
पकिस्तान के नोट छपाई कारोबार से जुड़ी है वह फर्म
कारखाना लगाने के लिए महाराष्ट्र में 10 एकड़ जमीन एलॉट
7सौ करोड़ रूपए के निवेश के लिए समझौता हस्ताक्षरित
हरिराम पाण्डेय
कोलकता : एक तरफ देश में 2000 के जाली नोटों का खौफ बढ़ता जा रहा है और दूसरी तरफ पकिस्तान से गहरे सम्बन्ध रखने वाली एक ब्रिटिश-स्विस कंपनी को भारतीय नोट छापने के लिए 10 एकड़ जमीन औरंगाबाद में महाराष्ट्र ओद्योगिक विकास निगम के परिसर में मुहैय्या कराई गयी है साथ ही 10 रूपए के प्लास्टिक नोट छापने का कथित तौर पर ठेका भी उसी को दिया गया है। इस कंपनी के निर्माण में 700 करोड़ रुपयों की लागत का बजट है और इसके लिए संझुता हो चुका है।
इस मामले में वित्त मंत्रालय के अफसरों से जब सन्मार्ग जानकारी चाही तो उन्होंने ऐसी किसी बात से साफ़ इंकार कर दिया जबकि प्रधान मंत्री कार्यालय के अधिकारी इसे स्वीकार करते पाए जाते हैं । उस कंपनीके सलाहकार फर्म बर्न्सवीक ने भी इसे स्वीकार किया है।
काफी लंबी पड़ताल के बाद यह पाया गया कि यह कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रक परिवारों के उन्ही लोगों की है जिन्होंने विजय माल्या को शरण दे रखी है। यही नहीं पता चला है कि उसे मध्य प्रदेश में कहीं करेंसी नोट के लिए कागज़ बनाने का कारखाना लगाने के लिए जमीन दी जाने वाली है। यह पहला अवसर है जब भारतीय नोट छापने का ठेका एक विदेशी कंपनी को दिया जा रहा है और वह भी ऐसी कंपनी को जो पकिस्तान की करेंसी छापने के काम से जुडी है। इसके भारत के करेंसी नोट की छपाई से एक और विदेशी कंपनी जुडी है। वह स्विस कंपनी नोट छापने की हाई सिक्युरिटी इंक का उत्पादन करती है। महाराष्ट्र सरकार के अफसरों के मुताबिक वह कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता का 90 प्रतिशत विदेशी नोट छापने में लगाएगी, बाकी 10% क्षमता में भारतीय बड़े नोट छपेगी। सूत्रों के मुताबिक यह ठेका यू के - इंडिया डिफेन्स एंड इंटरनेशनल सिक्युरिटी पार्टनरशिप अग्रीमेंट के तहत दिया गया है और दिलचस्प तथ्य यह है कि यह समझौता 9 नवम्बर 2016 को हुआ जिस के एक दिन पहले नोटबंदी की घोषणा की गई। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उस कंपनी के सी ई ओ मार्टिन सदरलैंड नोट बंदी की घोषणा के पहले ही भारत क्यों आ गए थे? चर्चा तो यह भी भाई कि ब्रिटिश प्रधान मंत्री टेरेसा मई की 7-9 नवम्बर की यात्रा की मध्यस्थता सदरलैंड ने ही की थी। ये अनुत्तरित प्रश्न हैं और सन्मार्ग इसका उत्तर ढूंढ रहा है।
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