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Thursday, March 23, 2017

बिन पानी सब सून

बिन पानी सब सून 
पानी पर और जल स्रोतों के विकास पर बहुत कुछ कहा जा चुका है। कई लोगों ने तो यह भी कहा है कि अगला विश्व युद्ध जल के लिए ही होगा। लेकिन यह सुन कर हैरत होगी की देश 12 पंचवर्षीय योजनाएं गुजर गयीं और विकास के बड़े- बड़े दावे किए गए पर आज भी देश के गांवों में लगभग साढ़े 6 करोड़ आबादी को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता है।" वाइल्ड वाटर, स्टेट ऑफ़ थे वर्ल्ड वाटर 2017 " की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 6.34 करोड़ आबादी को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता। यह सुन कर हैरत हो सकती है कि पंजाब , हरियाणा, उत्तराखंड की समग्र आबादी आस्ट्रेलिया, स्वीडन , श्रीलंका और बुल्गारिया की कुल  आबादी से ज्यादा है। "वाटर एड इंडिया " के अनुसार देश के 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 ऐसे राज्य हैं जो महाविपदा प्रवृत्त हैं जहां हाशिये पर रहने वाले लोग घनघोर मौसमी दुर्घटनाओं या भरी मौसमी बदलाव के सबसे ज्यादा शिकार हो सकते हैं, उनके लिए इसे झेलना बहुत कठिन हो सकता है। क्या दुर्भाग्य ही कि " शस्य श्यामलां मातरम " का गीत गाने वाले इस देश की 67 प्रतिशत आबादी गाँव में रहती है और जिसमें 7 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्हें पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता। देश के ये सात प्रतिशत भयानक मौसमी दुर्घटनाओं के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। वैसे आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के गरीब लोग ही मौसमी कोप के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। 6 फरवारी 2017 को राज्यसभा में प्रस्तुत पेय जल स्वच्छता मंत्रेअले की रिपोर्ट में कहा गया है कि  ग्रामीण भारत के 16 करोड़ 78 लाख घरों में से महज 2 करोड़ 69 लाख घरों में ही पीने का पानी पाइप के माध्यम से उपलब्ध है। रिपोर्ट के अनुसार 17 लाख घरों को राष्ट्रीय ग्रामीण योजना के तहत पेय जल मुहैय्या कराया जाता है। इनमें से 13 लाख घरों प्रचुर जल दिया जाता यानि उन्हें एक दिन में 40 लीटर पानी दिया जाता है। सरकार के प्रचुर पेय जल की माप है प्रति घर को रोजाना 40 लीटर , यानी दो बड़ी बाल्टी , पीने का पानी। 3 ला\कह 30 हज़ार 86 घरों को इससे काम पानी मिलता है और 64094 घरों को साफ़ पानी नहीं मिलता है।  20 मार्च 2017 को राज्य सभा में यह जानकारी दी गयी है। लोक सभा में 16 मार्च 2017 को दिए गए उत्तर के अनुसार 19720 ग्रामीण घरों में जो पानी उपयोग में लाया जाता है उसमें बहुत ज्यादा आयरन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पेय जल में आयरन की ज्यादा उपस्थिति स्वांस प्रणाली की खराबियों को जन्म देती हैं। पेय जल में आर्सेनिक की मौजूदगी से कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं। देश के गाँव में 30 प्रतिशत घरों में उपयोग में लाया जाने वाले  पानी  में आर्सेनिक पाया गया है। ग्रामीण आवासों की बात दूर हमारे महानगर कोलकाता तथा आस पास के इलाकों मानें पानी में आर्सेनिक पाए जाने की रपटें आ चुकी हैं। 
सरकार की योजना है कि चालू वर्ष के अंत तक देश के आधे ग्रामीण घरों में पाइप के जरिये पीने के पानी की व्यवस्था कर दी जायेगी और 35% घरों में तो नल लगवा दिए जाएंगे। 2022 तक 90% घरों में पाइप के जरिये पानी आपूर्ति की योजना है। वैसे भी देश में आबादी बढ़ने के कारण जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटती जा रही है। एक आंकड़े के मुताबिक 2001 में देश में प्रति व्यक्ति जल की वार्षिक उपलब्धता 1820 घन मीटर थी  जो 2011 में घाट कर 1545 घन मीटर हो गयी। इस अवधि में भारत की आबादी में 17.6% वृद्धि हुई। आबादी 2001 के 102 करोड़ से बढ़ कर 2011 में 121 करोड़ हो गयी। पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता  1341 घन मीटर हो जाने की आशंका है। यानी जल्दी ही जल की आपूर्ति और मांग में भारी अंतर आने की आशंका है।  काम वर्षा के कारण देश के बड़े जलागारों में पानी कम होता जा रहा है। देश जल संकट की ओर बढ़ रहा है और सरकार निरुपाय सी दिख रही है। इसके साथ ही पर्यावरण परिवर्तन की मार को झेलने के अपर्याप्त साधन इस पीड़ा को और बढ़ा देंगे।

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