मजनूंगीरी के खिलाफ या महिलाओं के खिलाफ
उत्तर प्रदेश में इन दिनों एक अजीब सी व्यवस्था शुईरू हुई है जो अबतक केवल मध्यपूर्व एशिया के देशों में सुनी या देखी गयी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को सत्ता संभाले अभी फकत हफ्ता ही गुजरा है और वहाँ सरकार ने कालेज, मॉल, पार्क और अन्य सार्वजानिक स्थानों पर " एंटी रोमियो दस्ते " तैनात्कर दिया है ताकि लड़कियों से गन्दी छेड़ छाड़ ना की जा सके। यहाँ इस बात से किसी को असहमति नहीं है कि भारत में लड़कियों के छेड़ छाड़ एक गंभीर समस्या है लेकिन हमारे देश में क़ानून की व्यवस्था लागू करने का जो इतिहास है उसके मद्देनजर यह नयी व्यवस्था चंद दिनों में " नैतिक आचरण या मोरल पुलिसिंग" व्यवस्था में बदल जायेगी। आपातकाल के वे दिन बहुतों को याद होंगे जब परिवार नियोजन के प्रचार की व्यवस्था जबरन नसबंदी में बदल गयी और इसी उत्तर प्रदेश में गुंडा क़ानून नौजवानों को धमका कर पैसे वसूलने के हथकंडे में बदल गया । यही नहीं सत्तर के दशक में बंगाल का नक्सल दमन अनगिनत निर्दोष नौजवानों का दमन कर गया। इसी शंका के समाधान के लिए शुक्रवार की रात जब उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जाविद अहमद से पूछा गया तो उन्होंने कहा " जमाना बदल गया है और पुलिस संवेदनशील हो चुकी है, वैसा कुछ नहीं होगा।" डी जी पी के इस आश्वासन के बावजोड़ यू पी से जो खबरें मिल रहीं हैं उनसे लगता है कि पुलिस वही है जो 1946 में थी और पुलिस का यह दृढ मत है कि लड़के और लडकियां दोस्त हो ही नहीं सकते। जो खबरें मिल रहीं हैं उससे पता चलता है कि महिलाओं को रोका जा रहा है , उन्हें नैतिकता और शुचिता का पाठ पढ़ाया जा रहा है, उन्हें तंग किया जा रहा है। पुलिस का तो यह दवा है कि वे आँखें देख कर कह देंगे कि कौन " मजनूं " है , लिहाजा कालेजों के सामने खड़े वे लड़के भी पकड़ लिए जा रहे हैं जो किसी अन्य काम से खड़े हैं। इसासे प्रोत्साहित होकर युवा हिन्दू वाहिनि और अन्य दक्षिण पंथी गिरोह भी पुलिस की " मदद"के लिए मैदान में उतर गए हैं। इसी लहार में पुलिस वाले अभिभावकों को भी नहीं छोड़ रहे हैं । नौजवानों को पकड़ कर वे अभिभावकों को बुलाते हैं और उन्हें भी भला बुरा कह कर लड़के को सौंपते हैं। देश के कई शहरों में लड़कियों से गन्दी छेड़छाड़ होती है इसासे किसी को असहमति नहीं है। लेकिन अहमद साहब कोलकाता का यह अखबार आपसे एक सवाल पूछना छाता है कि " आपको संवेदनशील पुलिस तंग जीन्स और शर्ट पहन कर कड़ी एक लड़की को क्यों पकड़ ले रही है और उसे नैतिकता के सबक के सिखाने की आड़ में जमकर डांट पिलाती है? " विश्व इतिहास में ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलता कि कोई धार्मिक नेता शासन कर रहा हो और आम आदमी सामान्य जीवन जीता हो और उसके जीवन में " मोरल पुलिस " दखल ना दे। निजी जीवन में शासन की दखलंदाजी वहीँ से शुरू होती है जहां नेता और अफसर यह तय करने लगते हैं कि आम जन को क्या खाना है, क्या पहनना है।यहीं से तो शुरू होता है धर्मतंत्रिक शासन का निर्देशक सिद्धान्त। इसका विरोध किया जाना भारत के आदर्श का समर्थन है। इस देश में सबको जीने, प्रेम करने, पसंद के अनुरूप वस्त्र पहनने और पूजा पद्धति अपनाने की आज़ादी है। योगी आदित्य नाथ बेहद ईमानदार, निष्ठावान और कर्मठ व्यक्ति हैं पर उइके शासन काल में यह जो हो रहा है उसमें पुलिस तंत्र द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग की व्यापक आशंका नज़र आ रही है।
Sunday, March 26, 2017
माजनूंगीरी के खिलाफ या महिलाओं के खिलाफ
Posted by pandeyhariram at 6:39 PM
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