... तब क्यों की गयी नोटबंदी
भारतीय रिजर्व बैंक की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट जारी हो चुकी है जिसमें नोट बंदी के बारे में दिए गए आंकड़े 8 नवम्बर को प्रधान मंत्री औइर आगे के दिनों में वित्त मंत्री द्वारा किये गए दावों को झुठला रहे हैं. लगता है कि इन्होने राष्ट्र को गुमराह करने की कोशिश की है. जिस दिन प्रधानमंत्री ने 1 हज़ार और 500 के नोट बंद करने की घोषणा की कि उस समय देश की कुल नगदी का 86 प्रतिशत यही नोट थे. उन्होंने नोट बंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि इन बड़े नोटों का बहुत बड़ा भाग काले धन के रूप में छिपा कर रखा हुआ है, बहुत बड़ी संख्या में जाली नोट चल रहे हैं और आतंकवादियों को धन दिया जा रहा है. सरका ने रातोंरात 1 हज़ार और 500 के नोट का चलन बंद कर दिया. उसके बाद आम जनता को कितनी पीड़ा हुई इसका सच सब जानते हैं. अब रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है जिन नोटों को बंद किया गया गया था उनका 99 प्रतिशत बैंकों में वापस आ गया है. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस समय नोट बंद किये गए थे उस समय 15.44 लाख करोड़ के बड़े नोट थे जिनमें से 31 मार्च 2017 तक 15.28 लाख करोड़ के नोट वापस आ गए. नोट बंदी के पहले 1 हज़ार के 632. 6 करोड़ अदद नोट थे जिनमें से महज 8.9 करोड़ नोट नहीं लौटे हैं. विशेषज्ञों का मानना है की जो नोट अभी आये नहीं हैं वे नेपाल और भूटान के बैंकों में फंसे हैं और प्रवासी भारतियों के पास हैं जिनके लौटाने की अंतिम तिथि 30 जून है. फिलहाल 30 जून के बाद के प्रमाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. अब सवाल उठता है की वह काला धन कहाँ है जिसके बारे में प्रधान मंत्री ने दावा किया था.याद होगा 15 अगस्त 2017 को लाल किले की प्राचीर से प्रधान मंत्री ने कहा था कि 3 लाख करोड़ का काला धन पकड़ा गया है. जबकि रिजर्व बैंक की रिपोर्ट कुछ दूसरी बात कहती है. इसमें कौन गलत है सरकार को जवाब देना चाहिए. यही नहीं जगदीश भगवती और अरविं पानागडिया जैसे अर्थ शास्त्रियों ने जिस तरह आगे बढ़ बढ़ कर नोट बंदी का समर्थन किया था उनकी भी विद्वता की पोल खुल गयी. क्या देश का दुर्भाग्य है की 16 हज़ार करोड़ के नोट को रद्द कर 21 हज़ार करोड़ खर्च कर नए नोट छापे गए.
नोट बंदी के तुरत बाद पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था की इससे “लघु उद्योगों , कृषि क्षेत्र और अनौपचारिक क्षेत्र को काफी आघात पहुंचेगा. यही नहीं इससे जी डी पी में भी गिरावट आएगी. “
जहां तक जाली नोटों का प्रश्न है तो नए नोटों के भी जाली नोट लगाता पकडे जा रहे हैं. इसका मतलब है कि जाली नोटों का आतंक कायम है और काले धन का गुब्बारा फूट चुका है , इसका क्या अर्थ समझा जाय. यह भारतीय अर्थ व्यवस्था को भारी आघात था और इसकी कोई ज़रुरत नहीं थी. क्षमा करें हर आदमी के खाते में 15 -15 लाख रूपए जमा कराने के राजनितिक बडबोलेपण का यह दूसरा अध्याय था. यहाँ सरकार से पूछा जाना चाहिए कि नोट बंदी के हुक्म के बाद ए टी एम् की सर्पीली क्जतारों मरने वाले 120 लोगों की मौत का जिम्मेदार किसे बनाया जाय? मध्य वर्ग और दिहाड़ी पर काम करने वालों की पीड़ा का दोष किसे दिया जाय? प्रधान मंत्री ही नहीं पूरा मंत्री मंडल ही देश को गुमराह करने में लगा है. वित्त मंत्री अरुण जेटली रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा की आयकर देनेवालों की संख्या बढ़ी है. जबकि रिपोर्ट ही बताती है की करदाताओं की संख्या में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है बल्कि कर संग्रह बढ़ा है. इन मामलों में प्रधान मंत्री और वित्त मंत्री को देश को जवाब देना चाहिए. अब वित्त मंत्री यह कहते चल रहे हैं कि जो नोट लौटे हैं उनमें सब सफ़ेद धन नहीं हैं और उन लोगों की जांच की जायेगी जिन्होंने पिछले साल की घोषित आय से अधिक रूपए जामा कराये हैं. यह सच है की सारे नोट सफ़ेद धन नहीं हैं पर यह भी सच है की सारा काला धन नोटों की शक्ल में तिजोरिओं में नहीं रखे जाते है.