ज़रा सावधान रहें भाई भाई के नारे से
50 के दशक में हिंदी चीनी भाई- भाई का एक नारा लागा था। दोनों देश मुग्ध थे। अचानक वह भाई-भाई का नारा भों – भों में बदल गया। सबलोग हाथ मलते रह गए और वह भारत में घुस आया तथा अपना कब्ज़ा जमा लिया। इसबार फिर वही भाई-भाई का भाव दिखाई पड़ने लगा है। हमारे प्रधान मंत्री जी काम के मामले में जुनूनी हैं और वह इसबार एक वीकएंड मनाने चीन चले गए। तास्वीरें खिंचवाना उनका शगल है और उन तस्वीरों को वाइरल करना उनके भक्तों की आदत। खूब तस्वीरें खिंची गयीं। वुहान नदी के किनारे घूमने के, नौका विहार के दृश्य बेहद नयनाभिराम थे। चीनी शेफ द्वारा बनाए गए गुजराती खाने की वाह-वाह थी। हसीन चीनी युवतियों द्वारा बनायी गयी एक्जोटिक चाय पर बम्बईया फिल्म दंगल की चर्चा ने अलग समां बांधा। यह सब कुछ दिखा और जो नहीं दिखा वह था चीनी नेता और मोदी जी के बीच क्या बात हुई। क्योंकि इनकी वार्ता में दुभाषिये भी आँख की किरकिरी बने हुए थे। लेकिन कुछ कानाफूसी चल रही है कि मोदी जी ने 2019 में चुनाव के नतीजे आने तक युद्ध विराम के लिए निहोरा किया था ताकि आसानी से चुनाव की जंग लड़ सकें। इसके लिए उन्होंने नेहरु जी पंचशील सिद्धांत की तर्ज़ पर एक सिद्धांत भी बनाया था। इसमें “स” अनुप्रास वाले पांच शब्द थे- सपने, सहयोग,संकल्प, सोच और सम्मान। लेकिन सुनते हैं कि चीनी राष्ट्रपति ने मोदी जी के इस शब्द चमत्कार को सिरे से ही खारिज कर दिया। इसे लेकर चीनी प्रधान मंत्री ने बहुत बेरुखी दिखाई। भारत और चीन के बीच एक पतला सा दर्रा है _ चिकेन नेक यानी मुर्गी की गर्दन। अब यह नाम क्यों और कैसे पडा यह तो मालूम नहीं पर समरनीतिक रूप में इसका बड़ा महत्व है। चीन विगत डो सालों से मुर्गी की उस गर्दन ( चिकेन नेक ) पर अपना फंदा कसता जा रहा है। हिन्द महासागर में भी उसकी हरकतें तेजी से बढ़ रहीं हैं। हमारे पड़ोसी देशों में उसने हमें रणनीतिक रूप में पछाड़ दिया है। डोक्लाम की घटना अभी सबको याद ही होगी। यही नहीं 2017 में चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का 425 बार उल्लंघन किया। डोक्लाम में भारत बेशक अपने रुख पर डाटा रहा लेकिन शक है कि अगर 2019 के पहले ऐसा हिता है तो भारी गड़बड़ हो सकती है। क्योंकि ट्विटर और टी वी पर जंग की सनक को भड़काने वाले सूरमा खतरनाक हो सकते हैं। यदि ऐसे में मोदी जी को फौजी कारवाई करने का दुस्साहस करना पडा तो बाजी उलटी भी हो सकती है। 2019 का दंगल हाथ निकल सकता है। इसी कारण मोदी जी चमन की अर्जी देने चीन गए थे। लेकिन राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ढोकला खाने में अपना वक़्त क्यों बर्बाद किया? शायद उन्होंने माओ के सिद्धांत को अपनाया। माओ ने एक जगह लिखा है कि “ आगे बढ़ने के लिए मुख्य विरोधाभास को हल करना ज़रूरी है।“ यदि चाणक्य के लहजे में इसका तर्जुमा करें तो यह कहा जाएगा कि सबसे ज्यादा ताक़त उस समस्या के समाधान में लगानी चाहिए जो उस समय सबसे बड़ी हो, बाकि छोटी – छोटी समस्यायों को यूँ ही छोड़ देना चाहिए। शी जिनपिंग की मुश्किल है कि वे डोनाल्ड ट्रम्प के आगे खुद को बौखलाया हुआ सा महसूस करते हैं। उत्तर-दक्षिण कोरिया में सुलह की संभावनाओं में से चीन को दरकिना कर दिया गया है। इसमें कोरिया के दोनों भागों के एकीकरण और परमाणु हथियार के खात्में की बात भी शामिल है। इसके बारे में पहले किसी ने सोचा भी नहीं था। ज़रा सोंचें कि अगर अमरीका ने इरान के परमाणु सम्झुते को रद्द कर दिया तो क्या होगा? उसके बाद लागू होने वाले कठोर प्रतिबंधों पर चीन कैसे रिएक्ट करेगा? यही नहीं अगर भारत को मिला कर अमरीका-जापान – आस्ट्रेलिया और भारत की एक चौकड़ी बन गयी तो क्या होगा? इस हालत में शी जिनपिंग ने भारत को वुहान की मीठी गोली दे दी और शांत कर दिया। ताकि ट्रंप की चालों से निपटा जा सके।
लेकिन वुहान के कुछ सकारात्मक नतीजे भी हुए हैं और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। चीन अगर भारत को बराबरी का दर्जा दे रहा है तो यह अपने आप में एक बड़ी विजय है। परन्तु च्गिन के दोहरेपन से सावधान रहना भी ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर चीन ने घोषणा की कि एक मई से २८ दवाओं पर से आयात शुल्क हटा दिया है और यह भविष्य में उठाये जाने वाले कदमों में पहला है। इस तरह उसने संकेत दिया कि यह रियायत वुहान वार्ता के बाद दी गयी है। हमारे वाणिज्य मंत्री ने जमकर इसकी तारीफ़ की। लेकिन नहीं यह कदम भारत के लिए नहीं डब्लू टी ओ के सभी सदस्यों के लिए है है केवल भारत के लिए नहीं। चीन का यह भाई-भाई कब भों-भों में बदल जाएगा इससे सावधान रहने की ज़रुरत है।
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