मोदी जी की कथनी और करनी में फर्क
मोदी सरकार के वर्तमान कार्यकाल आखिरी चरण में यह प्रश्न उठता है क्या मोदी जी ने और उनकी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था के काम करने के ढंग को बदल दिया है। सरकार का दावा है कि पिछले 4 वर्षों में डिजिटल इकॉनमी जीएसटी और दिवालिया कानून जैसे कदम उठा कर सरकार ने अर्थव्यवस्था का रुख बदल दिया है। सरकार का कहना है भारत की आजादी के बाद ऐसा कदम किसी ने नहीं उठाया। अब सवाल उठता है क्या सचमुच अर्थव्यवस्था का रुख बदला है। अगर निष्पक्ष विश्लेषण करें तो उत्तर मिलेगा नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ है। आजादी के बाद से भारत के आम लोग अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लगातार काम करते रहे। ऐसा इसलिए हुआ की अर्थव्यवस्था का एक अनौपचारिक ढांचा था। जितनी भी सरकारें आई सबने लगातार कहा कि उन्होंने अर्थव्यवस्था के ढांचे में सुधार लेकिन इसके बावजूद एक बहुत बड़ी आबादी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ी रही। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की ताजा रिपोर्ट ने कहा भारत में 85% लोग अपनी आजीविका के लिए अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े हुए हैं केवल 6.5% लोग ही संगठित क्षेत्र में है और 0.8 प्रतिशत लोग पारिवारिक क्षेत्र में है। लगभग7.5% लोग जिनके बच्चे और बूढ़े शामिल है वह किसी कामकाज में नहीं है। इस के मुकाबले चीन में 48.2 4% लोग अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े हैं। इस सवाल के जवाब में तर्क दिए जाते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था हम से 5 गुनी बड़ी है और भारत में जीएसटी तथा डिजिटल पेमेंट के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था पर औपचारिकरण किया गया। लेकिन सरकार की यह बात प्रधानमंत्री के प्रधानमंत्री की उस कार्रवाई से गलत हो जाती है जब वे अनौपचारिक क्षेत्र की प्रशंसा करते हैं और उसमें वृद्धि के लिए मुद्रा ऋण जारी करते हैं। प्रधानमंत्री जी के किसी कार्य का नतीजा यह हुआ अभी हाल में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव कुमार दे ने त्रिपुरा के नौजवानों को इसलिए चेतावनी दी कि वे सरकारी नौकरी के चक्कर में क्यों पड़े हुए हैं अपना काम करें। और कुछ नहीं गाय पाले और उसका दूध निकालकर बेचे इस से 10 साल में 10 लाख रुपए कमा लेंगे। यही नहीं यदि वे पान की दुकान भी लगा लेते हैं और पान बेचते हैं साल भर में ₹5 लाखरुपए कमा लेंगे। राजनीतिक पार्टियों के पीछे पीछे दौड़ने से क्या फायदा है। उस राज्य का मुख्यमंत्री बोल रहा है जहां अभी 19% बेकारी है और चुनाव के दौरान रोजगार बढ़ाने का लंबा चौड़ा वादा कर इस पार्टी ने 25 साल से चली आ रही माणिक सरकार की सरकार को उलट दिया। विप्लव कुमार दे मोदी जी के पार्टी के मुख्यमंत्री हैं और हाल ही में चुनाव जीतकर सत्ता में आए हैं. कुछ दिन पहले अमित शाह ने नौजवानों से कहा था कि अगर रोजगार नहीं मिलता तो पकौड़े बेचे। मोदी जी ने खुद वादा किया था अपने चुनाव भाषण में वह करोड़ों लोगों को रोजगार देंगे लेकिन बदकिस्मती है कि मोदी जी खुद और विभिन्न राज्य में उनके मुख्यमंत्री रोजगार पैदा करने में नाकाम हो गए। अर्थव्यवस्था के औपचारिक करण को तो भूल ही जाइए। कैसी विडंबना है कि अनौपचारिक क्षेत्र मैं कदम आगे बढ़ाने का आह्वान करने वाले खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा शासित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री इन दिनों शहर की सफाई के नाम पर गैरकानूनी निर्माणों झुग्गी-झोपड़ियों और फुटपाथ पर बनी गुमटियों को तोड़ने में लगे हैं। दिल्ली में सैकड़ों दुकाने और हजारों गुमटियों को तोड़ दिया गया है क्योंकि वह दिल्ली के 2021 के मास्टर प्लान के अनुरूप नहीं है। उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यह सही है इस फुटपाथों पर और विभिन्न कॉलोनियों में बनी अवैध दुकानों को तोड़ना कानूनी रूप में सही है पर इससे जो लोग बेकार होंगे उनका क्या होगा इससे हजारों लोग कमाते खाते थे उनका परिवार चलता था उनका क्या होगा। प्रधानमंत्री और अमित शाह ने फरमा दिया पकोड़े बिक्री कीजिए, पान की दुकान लगाइए लेकिन अगर वह ऐसा करते हैं तो यह फुटपाथों का अतिक्रमण होगा और कल ही उनकी दुकान तोड़ दी जाएगी। अगर पांच और पकौड़ा बेचने वाला जमीन खरीद कर अपना धंधा शुरू करता है तो क्या खाएगा और क्या ब्याज देगा पैसा कहां से लाएगा। यही कारण है कि चुनाव प्रचार के दौरान स्मार्ट सिटी का ढोल बजाने वाले मोदी सरकार अब उस बात पर कुछ नहीं बोल रहे हैं क्योंकि भारत का कोई भी ऐसा शहर नहीं है जहां फुटपाथों का अतिक्रमण करके धंधे चले चलाए जा रहे हैं। इसी तरह स्वच्छ भारत क्या यह शगूफा भी तभी सही हो सकता है जब सबको औपचारिक क्षेत्र में नौकरी हो या कारखानों में काम हो लेकिन अगर बस स्टैंड के बगल में एक छोटी सी भी लगा कर अपनी जीविका चलाने वाला आदमी क्या करेगा कहां से लाएगा शौचालय। वह तो सड़क का ही उपयोग करेगा
भारत की जनता खासकर भारत के नौजवानों ने मोदी जी को 2014 में भारी बहुमत से विजई बनाया उन्हें उम्मीद थी कि आदमी कुछ करेगा। विशेषकर हर व्यक्ति के खुशहाली के लिए लेकिन वह तो उसी सदियों पुरानी अर्थव्यवस्था को ढो रहे हैं और अगर 2019 में सरकार नहीं बनती है तो इस अर्थव्यवस्था को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
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